अंतरराष्ट्रीय
रूस और यूक्रेन के बीच काले सागर के रास्ते अनाज निर्यात को लेकर अहम समझौता हुआ है, जिसके चौबीस घमटों में यूक्रेन के बंदरगाह शहर ओडेसा पर मिसाइल हमले की ख़बर आई है.
यूक्रेनी सेना ने कहा है कि ओडेसा पर चार मिसाइलें दागी गई थीं जिसमें से दो को नष्ट कर दिया गया और दो कैलिबर क्रूज़ मिसाइलें बंदरगाह पर गिरीं. वहीं, यूक्रेन ने कहा है कि हमले से बंदरगाह को नुकसान पहुंचा है लेकिन इसके बावजूद निर्यात की तैयारियां जारी हैं.
यूक्रेनी विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा है कि अगर अनाज निर्यात को लेकर हुई डील नाकाम हुई तो ज़िम्मेदार रूस होगा.
ओडेसा से मंत्री ओलेक्सी गोन्चारेन्को ने कहा, "इस समझौते के अनुसार रूस किसी बंदरगाह पर हमला नहीं करेगा क्योंकि इससे निर्यात प्रभावित होगा. इस हमले का नतीजा हम नहीं जानते लेकिन इससे अनाज की ढुलाई और अनाज ले जा रहे जहाज़ों के आनेजाने पर असर पड़ सकता है. ये साफ तौर पर समझौते का उल्लंघन है. ये ऐसा है जैसे संयुक्त राष्ट्र और तुर्की के मुंह पर उनका अपमान किया गया हो. रूस ने एक बार फिर दुनिया को दिखाया दिया है कि वो समझौतों का सम्मान नहीं करता."
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने भी हमले की निंदा की है और कहा है कि अनाज समझौते को लागू करना बेहद ज़रूरी है.
वहीं, यूरोपीय संघ के विदेश नीति मामलों के प्रमुख जुसेप बुरेल ने कहा है कि आनाज निर्यात के लिए अहम ठिकाने पर हमला कर रूस अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन कर रहा है. रूस ने अब तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं दी है.
बीते कल देर शाम रूस यूक्रेन के बीच हुए समझौते के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में गेहूं की कीमत तीन फीसदी तक गिरी है और युद्ध के पहले के स्तर तक यानी 800 डॉलर प्रति बुशेल तक पहुंच गई है.
युद्ध शुरू होने के बाद गेहूं की कीमत अधिकतम 1300 डॉलर प्रति बुशेल कर पहुंच गई थी. तुर्की और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से इस्तांबुल में हए समझौते के तहत यूक्रेन के बंदरगाहों से गेंहू और मक्का काले सागर के रास्ते दूसरे मुल्कों तक पहुंचाया जाएगा.
इसके तहत रूस ने कहा है कि न तो वो अनाज और खाद ले जा रहे जहाज़ों पर हमला करेगा और न ही उन बंदरगाहों पर, जहां से अनाज की ढुलाई होगी. वहीं, यूक्रेन ने कहा है कि वो जहाज़ों की जांच की इजाज़त देगा ताकि इसकी पुष्टि हो सके कि उनमें हथियार नहीं छिपाए गए हैं.
समझौते की बातचीत में शामिल रहीं यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवेलपमेन्ट की महासचिव रेबेका ग्रिनस्पैन ने बीबीसी से कहा, "ये वाकई में ऐसा समझौता है जिसकी इस दुनिया को ज़रूरत थी क्योंकि इसका असर हज़ारों लाखों लोगों ख़ासकर विकासशील देशों के नागरिकों पर पड़ेगा. ये बेहद ज़रूरी है कि यूक्रेन से आने वाला अनाज वैश्विक बाज़ार तक पहुंचाया जाए."
यूक्रेन और रूस दुनिया के सबसे बड़े गेहूं और मक्का निर्यातकों में शामिल हैं, कई देशों के लिए यूक्रेन उनके गेहूं के कुल आयात का पचास फीसदी से अधिक सप्लाई करता है. ये दोनों देश दुनिया के कई मुल्कों को खाद की भी सप्लाई करते हैं.
फरवरी के आख़िरी सप्ताह में शुरू हुए रूस यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक अनाज संकट पैदा हो गया था. माना जा रहा है कि आने वाले कुछ सप्ताह में अनाज की सप्लाई फिर शुरू हो सकेगी और ये संकट कुछ हद तक सुलझेगा.
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामापोसा ने समझौते का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि ये समझौता पहले ही हो जाना चाहिए था. युद्ध की वजह से दुनिया के कई हिस्सों में अनाज के साथ साथ खाद और दूसरी ज़रूरत की चीज़ों का आयात रुक गया था. हम खुश हैं कि आखिर में ये समझौता हो गया है."
समझौते पर अमल हो, इसके लिए इस्तांबुल में एक मॉनिटरिंग सेंटर बनाया जाएगा, जिसमें तुर्की, संयुक्त राष्ट्र, रूस और यूक्रेन के अधिकारी होंगे.
क्ले सागर से गुज़रने वाले अनाज के जहाज़ों की सुरक्षा के लिए यूक्रेनी जहाज़ साथ चलेंगे जो माइन्स का पता लगाएंगे. क़रीब दो महीनों की कोशिशों से हुआ ये समझौता 120 दिनों यानी 4 महीनों तक लागू रहेगा, जिसके बाद आपसी सहमति से इसे आगे बढ़ाया जा सकेगा. (bbc.com)