संपादकीय
उत्तरप्रदेश के कल तक के इलाहाबाद और आज के प्रयागराज की कुछ अटपटी खबर है। आमतौर पर तो यह माना जाना चाहिए था कि शहर को धार्मिक नाम मिलने के बाद वहां का माहौल अधिक धार्मिक या आध्यात्मिक होगा, लेकिन बीबीसी की एक रिपोर्ट कहती है कि इस शहर के स्कूली बच्चों में एक अजीब किस्म की हिंसा फैल रही है, जैसी कि बमों के शौकीन पश्चिम बंगाल में भी दिखाई-सुनाई नहीं पड़ी है। पुलिस ने वहां स्कूली बच्चों के कुछ गिरोह पकड़े हैं जो बम बनाकर उन्हें दूसरी स्कूलों के बाहर फोड़ रहे थे। ऐसे 35 स्कूली बच्चे प्रयागराज पुलिस की हिरासत में है, और रिपोर्ट कहती है कि पिछले कई महीनों से वहां पर सरेआम देसी बम मारने की वारदातें हो रही थीं। पुलिस का कहना है कि ये सभी बच्चे प्रयागराज के जाने-माने स्कूलों में पढ़ते हैं, और शुरुआती जांच में पता लगा है कि ओटीटी वेब सीरिज से प्रभावित होकर, उन्हीं के नामों पर इन छात्रों ने तांडव ग्रुप, जैगुआर ग्रुप, इम्मॉर्टल ग्रुप, माया ग्रुप जैसे गिरोह बनाए, इंटरनेट पर यूट्यूब से देखकर घरेलू बम बनाए, और एक दूसरे समूह पर दबदबा कायम करने के लिए, दहशत फैलाने के लिए ऐसे बम फोड़े, और सोशल मीडिया पर इन वारदातों की शोहरत भी बढ़ाने की कोशिश की। पुलिस ने बताया कि ऐसे किसी-किसी ग्रुप में तो छात्रों की संख्या सौ से लेकर तीन सौ तक भी है।
यह बड़ी अजीब सी खबर है, और लोगों को याद होगा कि अभी कुछ दिन पहले ही जब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक शायद नाबालिग लडक़ी ने सडक़ पर एक साइकिल वाले के किनारे न होने पर उसका गला ही काटकर मार डाला, तब भी हमने ऐसी हिंसा के विश्लेषण की जरूरत बताई थी। बाद में आई खबरों में पता लगा कि वह लडक़ी एक गिरोह-सरगना बनना चाहती थी, और वह नशे के कारोबार से भी जुड़ी बताई गई थी। नाबालिग पीढ़ी की हिंसा और उसके जुर्म की बात अधिक बड़ी फिक्र इसलिए खड़ी करती है कि उसे शायद कानूनी जटिलताओं और जिंदगी के खतरों का पूरा अहसास नहीं रहता है। और भारत में नाबालिग बच्चों के किए हुए जुर्म पर उनके सुधार का इंतजाम इतना खराब है कि छत्तीसगढ़ में एक जगह ऐसे सरकारी केन्द्र पर इक_ा बच्चों ने छत पर चढक़र बाहर पुलिस या अफसरों पर गैस सिलेंडर फेंककर हमला करने की कोशिश की थी। जानकार लोगों का यह भी कहना है कि ऐसे सभी बाल सुधारगृह बच्चों को कई नए किस्म के जुर्म करना सिखाकर बिदा करते हैं, और कई तरह के नशे की भी आदत डालकर। हिन्दुस्तान में बच्चों को सुधारने का कोई भी असरदार सरकारी इंतजाम नहीं है, और इसलिए भी ऐसी नौबत आने देने से बचना चाहिए।
आज जब अलग-अलग कमरों में टीवी, या कि हर मोबाइल फोन पर तरह-तरह के वीडियो की सहूलियत, और उसका खतरा, दोनों ही मौजूद हैं, तो मां-बाप को चाहिए कि वे अपने बच्चों की हरकतों पर ध्यान दें, और पहली शिकायत का मौका आने के भी पहले उन्हें लेकर सम्हल जाएं। लोगों को याद होगा कि जो देश का सबसे चर्चित बलात्कार कांड था, उसमें निर्भया से बलात्कार और सबसे खूंखार दर्जे की हिंसा करने वालों में एक नाबालिग भी था। और एक नाबालिग के ऐसी हिंसा में शामिल होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक यह बहस भी हुई थी कि क्या नाबालिगों को ऐसे जुर्म में भी उम्र की रियायत देना जायज है? अब दुनिया के अलग-अलग देशों में, और उनके अलग-अलग प्रदेशों में बच्चों की उम्र के पैमाने अलग-अलग हैं। उनके गाड़ी चलाने से लेकर उनके सिगरेट-शराब पीने तक की उम्र अलग-अलग है। जुर्म को लेकर भी, शादी की उम्र को लेकर भी ये नियम अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग हैं। ऐसे में हिन्दुस्तान में मौजूदा नियम-कानून को देखना चाहिए जिसमें किसी नाबालिग से कोई गलती होने पर, या उसके कोई गलत काम करने पर उसे जिस किस्म के सुधारगृह में भेजा जाएगा, वहां से उसका और बुरा मुजरिम होकर निकलना तय रहेगा। लोगों का पैसा, उनकी राजनीतिक पहुंच, और उनकी किसी और किस्म की ताकत उनके बच्चों को हमेशा ही कानून के शिकंजे से नहीं निकाल सकती। पुलिस और न्याय व्यवस्था कितनी भी भ्रष्ट क्यों न हो, आज वीडियो-सुबूतों की वजह से बहुत से नाबालिग भी अदालत में ले जाकर मुजरिम साबित किए जा सकते हैं, और उन्हें कई बरस सुधारगृह में रखा जा सकता है। हर मां-बाप को ऐसे सुधारगृहों के खतरों को बारीकी से समझ लेना चाहिए, और ऐसी नौबत नहीं आने देनी चाहिए कि उनके बच्चे ऐसी जगहों पर भेजे जाएं, और वे वहां से पूरी तरह बर्बाद होकर निकलें। उन्हें यह खतरा भी समझना चाहिए कि आज उनके बच्चे नाबालिग उम्र में सुधारगृह पहुंचेंगे, और फिर 18 बरस के होने पर उन्हें आम जेल भेजा जाएगा, और वहां की जिंदगी के तमाम किस्म के खतरों को यहां पर गिनाना भी मुमकिन नहीं है, लोगों को सिर्फ इतना समझना चाहिए कि इन जगहों से उनके बच्चे बलात्कार के शिकार होकर भी निकल सकते हैं, जो कि इन जगहों पर एक आम बात है।
अब जिस घटना से आज का यह लिखना शुरू किया गया है, उस प्रयागराज में लौटें, तो यह बड़ी अजीब बात है कि एक तरफ तो उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में पुलिस चारों तरफ, हर किस्म की मुठभेड़ भी कर रही है जिसमें जुर्म के आरोपियों को सडक़ पर ही निपटा दिया जा रहा है। यह तरीका ऐसी शोहरत पा चुका है कि अभी कर्नाटक में साम्प्रदायिक हत्या के जवाब में वहां के हिन्दू संगठनों और भाजपा नेताओं ने इसी योगी-शैली का राज कर्नाटक में भी मांगा है, और वहां कल ही एक मंत्री ने यह भरोसा भी दिलाया है कि जरूरत रहेगी तो यूपी से अधिक बड़े पैमाने पर मुठभेड़ कर्नाटक में भी की जाएगी। ऐसी बड़ी कानूनी कार्रवाई वाले उत्तरप्रदेश में धार्मिक नाम वाले प्रयागराज में अगर नामी-गिरामी स्कूलों के बच्चे ऐसे औपचारिक गिरोह बनाकर एक-दूसरे पर सार्वजनिक हमलों का काम कर रहे हैं, तो यह बहुत भयानक नौबत है, यह उत्तरप्रदेश की ताजा समस्या तो है ही, यह बाकी हिन्दुस्तान के लिए भी खतरे की एक घंटी है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आने वाली हिंसक वेब सिरीज और हिंसक वीडियो गेम्स का असर अगर इस तरह सिर चढक़र बोल रहा है, तो सरकार और समाज दोनों को इसके बारे में सोचना चाहिए। इस ताजा मामले को एक स्थानीय घटना मानने के बजाय नई पीढ़ी पर मंडराते एक व्यापक खतरे की तरह देखना बेहतर होगा, और बाकी जगहों पर ऐसी नौबत आए उसके पहले सबको सम्हल जाना होगा।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)