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इंसान चेहरे से नहीं चरित्र से महान-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
31-Jul-2022 12:52 PM
इंसान चेहरे से नहीं चरित्र से महान-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी

रायपुर, 31 जुलाई। ‘‘आनंद और खुशियां जिंदगी की सबसे बड़ी दौलत है। यह दौलत किसी किस्मत वाले को मिलती है। तिजोरी की दौलत तो हर किसी को मिल जाती है पर ये खुशियोंभरी जिंदगी की दौलत किसी-किसी को नसीब होती है।

हर आदमी को अपने जीवन मेंं अच्छे स्वभाव, अच्छी सोच का मालिक होना ही चाहिए। क्योंकि यही वे सद्गुण हैं जो आदमी के वर्तमान को भी उज्जवल बनाते हैं और उसके भविष्य को भी तय करते हैं। तय है- जैसा आदमी का नेचर होता है, वैसा ही आदमी का फ्यूचर होता है।

यह जिंदगी अच्छे रंग के साथ नहीं अच्छे ढंग से जी जानी चाहिए। अच्छे नेचर का मालिक बनना चाहते हो तो अपने स्वभाव में पलने वाले गुस्से को गुड बाय कर दो।’’

ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग ‘जीने की कला’ के अंतर्गत स्वास्थ्य सप्ताह के छठवें दिन शनिवार को ‘सुधारेंगे नेचर, तभी सुधरेगा फ्यूचर’ विषय पर व्यक्त किए।

राष्ट्र्संत चंद्रप्रभजी द्वारा रचित प्रेरक गीत ‘चंद दिनों का जीना रे बंदे, ये दुनिया मकड़ी का जाल। क्यों डूबा विषयों में पगले, हाल हुआ तेरा बेहाल...’ के गायन से दिव्य सत्संग का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि लोगों के साथ हमारे रिश्ते कैसे रहेंगे, ये भी हमारा स्वभाव और व्यवहार तय करता है।

क्योंकि जैसा होता है आदमी का स्वभाव, वैसा ही पड़ता है दूसरों पर प्रभाव। अगर आपको लगता है कि आपका चेहरा सुंदर नहीं है तो कोई दिक्कत नहीं, अपने स्वभाव को सुंदर बना लो। क्योंकि आपका स्वभाव सुंदर बन गया तो आप लोगों के दिलों में राज करोगे।

सुंदर चेहरा दो दिन अच्छा लगता है। ज्यादा धन दो महीने अच्छा लगता है पर आदमी का सुंदर स्वभाव ये दूसरों को जिंदगीभर अच्छा लगता है। जिंदगी यदि हमें आनंद से जीनी है, तो यह आत्मनिरीक्षण कर लें कि क्या मैं जिंदगी में छोटीे-छोटी बातों में क्रोध और कसाय में घिर जाता हूं, क्या मैं किसी के दो टेढ़े शब्द कहने पर अपने-आपको अपमानित महसूस कर लेता हूं, या उसे क्षमा कर देता हूं।

आदमी को आइने के सामने जाकर केवल चेहरे को श्रृंगारित करने की जरूरत नहीं है, अगर श्रृंगारित करने की जरूरत है तो अपने मन, विचार और स्वभाव को श्रृंगारित करने की जरूरत है। क्योंकि जिंदगी अच्छे रंग के साथ नहीं, जिंदगी अच्छे ढंग से जी जाती है। सूरत हमारी कैसी हो ये खास बात नहीं है, सीरत हमारी कैसी हो यह खास बात है।

चेहरे से हजार गुना महान आदमी का चरित्र होता है। 

मिट्टी को मिट्टी से सजाने में क्यों लगे हो

संतप्रवर ने कहा कि आदमी का शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाता है, यानि यह शरीर भी मिट्टी हैं और सोना-चांदी, हीरा ये मिट्टी के ही कलेवर हैं तो फिर मिट्टी को मिट्टी से सजाने के लिए काहे के लिए इतनी माथाफोड़ी करते हो। इसी का नाम तो मिथ्यात्व है, इसी का नाम संसार है, इसी का नाम दुनिया में फंसना है। अनगढ़े पत्थर को भी जब तराशकर प्रतिमा बनाया जा सकता है, जब पत्थर में से भी प्रतिमा को प्रकट किया जा सकता है, मूर्ति तो पत्थर के अंदर है, आजू-बाजू का कचरा हटाओ तो मूर्ति अपनेआप बाहर निकलकर आ जाती है। ऐसे ही आदमी का अच्छा नेचर होता है, जो बाहर से डाला नहीं जाता, फालतू का कचरा जो आपने भीतर में इक्_ा कर रखा है उसे हटा दो तो आपको लगेगा कि मैं कितना बढिय़ा क्वालिटी का इंसान बन गया। जब पत्थर में से प्रतिमा को प्रकट किया जा सकता है तो आदमी को क्यों नहीं सुधारा जा सकता।

तीन सांस की है जिंदगी

संतप्रवर ने आगे कहा कि जब हम दुनिया में आते हैं तो केवल तीन सांसों की जिंदगी लेकर आते हैं। लेकिन फिर भी इस छोटी-सी जिंदगी में वह न जाने कितने कलह के साधन अपने मन में पैदा कर लेता है। केवल तीन सांस की जिंदगी है। पहली सांस है जन्म की। दूसरी सांस लेता है जवान की। तीसरी होती है बुढ़ापे की। एक चैथी सांस और होती है, जिसे चैथी सांस नहीं अंतिम सांस कहते हैं।

अच्छे नेचर के लिए जीवन से इन पांच को कर दो डिलिट

संतप्रवर ने कहा कि अच्छे नेचर का मालिक बनने और जिंदगी को स्वर्ग सरीखे आनंद और मिठासभरी बनना चाहते हो तो अपने जीवन से इन पांच दोषों को हमेशा के लिए डिलिट कर दो। वे हैं- स्वभाव में पलने वाला गुस्सा, भीतर में पलने वाला अहंकार-अभिमान या ईगो, छल-प्रपंच या माया, लोभ और ईष्र्या। अपने गुस्से को जीवन से हटाने के लिए भीतर में पे्रम और क्षमा को सेव कर लो। अभिमान को हटाने विनम्रता को अपना लो। माया को हटाने मित्रता को अपना लो। लोभ को हटाने संतोष को अपना लो। संतोष से बड़ा सुख और धन दुनिया में और कुछ होता नहीं है। ईष्र्या को हटाने सबको अपना मान लो। औरों की खुशी में खुश होना और औरों के दुख को बांटना सीख लो।

बनें सरल स्वभाव के मालिक

संतश्री ने कहा कि अगर आप जीवनभर खुश रहना चाहते हैं तो अपने नेचर को सॉफ्ट-सरल बना लीजिए, आप जीवन की बाजी जीत जाएंगे। क्रोध कसाय, बैर-विरोध, मानसिक तनाव इनसे अपने-आपको बचाएं क्योंकि ये आपकी जिंदगी को नर्क बना देते हैं। इनसे अगर आदमी बच जाए तो जिंदगी स्वर्ग हो जाएगी। कपड़े बदलकर साधु बनने में आदमी को एक घंटा लगता है पर आदमी को अपना स्वभाव बदलने में पूरी जिंदगी लग जाती है। आदमी सच्चा संत तब बनता है जब वह जीवन में अपने नेचर को बदलने में सफल हो जाता है।

दिल हो बड़ा, दिमाग हो ठंडा और जुबान हो मीठी

संतश्री ने कहा कि अपने जीवन से क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कसायों को दूर करने के लिए तीन गुणों को अपना लें। पहला अपने दिल को बड़ा रखें, दूसरा अपने दिमाग को हमेशा ठंडा रखें और तीसरा अपनी जुबान को हमेशा मीठी बनाए रखें। जिसके पास इन सद्गुणों की दौलत है दुनिया में उससे ज्यादा सुखी-उससे बड़ा धनवान और कोई नहीं। भगवान श्रीमहावीर ने हमें ढाई हजार साल पहले यह मंत्र दिया था- तुम औरों पर नहीं अपनेआप पर अनुशासन करना सीख लो। अच्छे स्वभाव का मालिक बनने आज से यह संकल्प ले लेवें- मैं अहम् में नहीं जीउंगा, मैं अर्हम् में जीउंगा। अर्हम् अर्थात् राग-द्वेष से मुक्त आत्मा। याद रहे आप आसमान में तब तक ही उड़ पाएंगे जब तक आप विनम्र बने रहेंगे।

चेहरे की खुशी और मन की प्रसन्नता से बड़ी और कोई दौलत नहीं: डॉ. मुनि शांतिप्रियजी

दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि जीवन में स्वस्थ रहने के लिए जितनी जरूरत ध्यान, योग और प्राणायाम की होती है, उतनी ही जहरूरत हंसी और खुशी की भी हुआ करती है। अक्सर आदमी बाहर से कम, भीतर से ज्यादा बीमार होता है। अन्तरमन को जो प्रसन्न और खुश रखते हैं उन पर बीमारियां हावी नहीं होती। चिंता और तनाव को दूर करने की एक ही औषधि है हर हाल में आनंदित और प्रसन्न रहो। जीवन को खुशियों से भरकर जीने का राज यही है कि आप परेशानियों को हाथ में लेकर ढोना छोड़ दो, परेशानियों के बोझ को भीतर से बाहर निकालकर फेंक दो। अन्तरमन की खुशियां परमानेंट होती हैं। स्वयं खुश रहो और दूसरों को खुशियां बांटते रहो। जो हर सुबह एक मिनट मुस्कुरा लेता है, उसके जीवन में कभी हार्ट अटैक की नौबत नहीं आती।

इन अतिथियों ने प्रज्जवलित किया ज्ञानदीप

श्रीऋषभदेव मंदिर ट्र्स्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्र्स्टीगण तिलोकचंद बरडिय़ा, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि शनिवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथि गण प्रकाशचंद मोदी, प्रदीप जैन, नरेन्द्र जैन-गुरूकृपा, राजेश जोशी, डॉ. रमेश ओसवाल, डॉ. सुनील जैन, शुभराज चोरडिय़ा-विजयनगर, अशोक पगारिया, भंवरलाल छाजेड़ द्वारा ज्ञान का दीप प्रज्जवलित कर किया गया। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञानपुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। आज के दिव्य सत्संग में राष्ट्र्संत श्रीचंद्रप्रभजी द्वारा रचित ‘शांति, सिद्धि और मुक्ति पाने का सरल रास्ता’ नामक किताब समस्त श्रद्धालुओं को भेंट की गई। जिसके लाभार्थी स्व. नरभेराम कानजी दोशी स्व. श्रीमती मंछा गौरी दोशी स्मृति में अश्विन-नयना, जितेंद्र-पूनम, शैलेश-दक्षा, कपिल-कृपाली, चिराग-एकता, चार्ली-नेहा, वैदिक दर्श कल्प व मोक्षा दोशी परिवार रायपुर का बहुमान किया गया। सूचना सत्र का संचालन श्रीमती अंकिता जैन ने किया।

तपस्वियों का हुआ बहुमान

धर्मसभा में आज तपस्वी गण सोमन जैन, अमन जैन, विवेक जैन बागबाहरा का बहुमान दिव्य चातुर्मास समिति व श्री ऋषभदेव मंदिर ट्र्स्ट की ओर से किया गया।

आज प्रवचन ‘स्वयं को कैसे बनाएं संस्कारी-व्यसनमुक्त’ विषय पर

दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरडिय़ा, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत व स्वागताध्यक्ष कमल भंसाली ने बताया कि स्वास्थ्य सप्ताह के सातवें दिन रविवार 31 जुलाई को सुबह 8:45 बजे से ‘स्वयं को कैसे बनाएं संस्कारी-व्यसनमुक्त’ विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।

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