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इमेज स्रोत,INSTAGRAM/RAJKUMMAR_RAO
कभी गैंग्स ऑफ वासेपुर के शमशाद, तो कभी बरेली की बर्फी के प्रीतम विद्रोही या न्यूटन के न्यूटन कुमार, हर किरदार में जान भर देने वाले राजकुमार राव ने बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई है.
इस मुक़ाम तक पहुंचने का सपना राजकुमार राव ने बचपन में ही देख लिया था. स्कूल से ही नाटकों का जो सिलसिला शुरू हुआ वो कॉलेज में थियेटर, एफटीआईआई में सिनेमा की पढ़ाई और फिर फिल्मों में बतौर लीड एक्टर बनने तक जारी है. राजकुमार राव इसका क्रेडिट शाहरुख़ ख़ान को भी देते हैं.
बीबीसी हिन्दी के लिए नयनदीप रक्षित ने राजकुमार राव से ख़ास बातचीत की है.
बचपन से ही एक्टर बनना चाहते थे राजकुमार राव
राजकुमार का कहना है कि बचपन से ही उनका मकसद साफ़ था, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ एक्टर ही बनना चाहते थे. वो कहते हैं, ''स्कूल टाइम से ही तय कर लिया था. किसी और चीज़ के लिए न कभी सोचा न कभी कोशिश की. स्कूल में ही प्ले करना शुरू कर दिया था, कॉलेज में थियेटर किया, उसके बाद फिल्म स्कूल गया.''
राजकुमार बताते हैं कि उस वक्त भले ही एक्टिंग को प्रोफेशन के तौर पर मानना मध्यमवर्गीय परिवार के लिए मुश्किल था लेकिन उनके सपने को पूरा करने में उनके परिवार ने ख़ूब मदद की, कभी किसी चीज़ के लिए रोका नहीं और इसकी वजह शाहरुख़ ख़ान भी थे.
राजकुमार आगे कहते हैं, ''शाहरुख़ ख़ान... एक दिल्ली का लड़का, मुंबई जाकर इतना बड़ा स्टार बन गया. उनकी फिल्में देखकर हम बड़े हुए हैं. ये लगा कि ये कर सकते हैं तो उम्मीद तो है. उसके बाद चीज़ें बदलीं और नजरिया बदलता गया.''
राजकुमार राव का मानना है कि मध्यमवर्गीय परिवार से होने के नाते उन्हें ज़मीन से जुड़े रहने में मदद मिलती है. वो कहते हैं कि उन्होंने कई मुश्किल हालात देखे हैं और ये समझा है कि अगर सब खुश रहें तो किसी भी मुश्किल हालात से छुटकारा मिल सकता है.
एक ऐसा ही किस्सा वो अपने पिता से जुड़ा बताते हैं जब उनके पिता की सैलरी बंद हो गई थी.''मेरे फ़ादर की सैलरी आनी बंद हो गई थी. हम तीन भाई बहन थे तीनों एक ही स्कूल में जाते थे. टीचरों को लगता था कि ये तीनों हमेशा से कुछ न कुछ एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी में रहते हैं तो वो हमें प्यार किया करते थे. टीचर्स ने हमारा ख़ूब सपोर्ट किया, उन्होंने हमें 2 साल तक पढ़ाया, हमारी स्कूल फीस दी. अच्छे लोगों के साथ अच्छा हो जाता है.''
'बूगी वूगी ' का ऑडिशन देने पहली बार मुंबई आए थे राजकुमार
अब मुंबई में अपनी धाक जमा चुके राजकुमार राव पहली बार क़रीब 16-17 साल की उम्र में मुंबई आए थे. उस वक्त वो डांस रियलिटी शो 'बूगी वूगी' का ऑडिशन देने अपने छोटे भाई के साथ मुंबई पहुंचे थे.
ये किस्सा सुनाते हुए राजकुमार कहते हैं, ''बूगी-वूगी का ऑडिशन चल रहा था, कुछ पता नहीं था, अचानक से इसका प्लान बन गया. मुझे मुंबई आना था, मुझे ये शहर देखना था. वो 90 के दशक में जो हम शॉट देखते थे ना कि चर्च गेट के सामने से जो ज़ूम आउट होता था, एक आदमी रोड क्रॉस करता है और टैक्सी को बुलाता है. लेकिन हम चर्च गेट तो नहीं जा पाए क्योंकि हमारे पास बिलकुल पैसे नहीं थे.''
इस दौरान राजकुमार ये भी बताते हैं कि पहली बार मुंबई पहुंचने के बाद वो शाहरुख़ ख़ान के घर ''मन्नत'' के बाहर बैठे रहते थे, ''मैं मन्नत के पास जाकर बैठा रहता था कि शाहरुख़ ख़ान सर दिख जाए, वो तो नहीं दिखे गौरी मैम एक बार गाड़ी में जाती हुई दिखी थीं.''
साल 2008 में काम की तलाश में मुंबई पहुंचे
राजकुमार राव फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे के पासआउट हैं. पढ़ाई के बाद साल 2008 में वो मुंबई पहुंचे.
राजकुमार राव बताते हैं, ''उस वक्त पुणे में मेरे पास एक बाइक हुआ करती थी, उसी पर मैं अपना सामान लादकर लाया था. हम तीन लोग एक साथ एक छोटे से घर में रहते थे. बहुत छोटा घर था, एक गद्दा था मेरा, उसके बगल में एक छोटा टेबल था जिसपर मैं अपना सामान रखता था.''
साल 2008 से 2010 के बीच राजकुमार राव के लिए संघर्ष का दौर था, उस दौर के बारे में वो कहते हैं, ''एक बार मेरे अकाउंट में 18 रुपये थे उसके अकाउंट में 27 रुपये थे, फिर लगा कि खाना कैसे खाएंगे. सौभाग्यशाली हूं मैं कि मैं एफ़टीआईआई से हूं, बहुत स्ट्रॉन्ग कम्युनिटी है तो मैंने एक दोस्त को फोन किया और बोला कि मैं खाने आ रहा हूं. फिर परिवार को फोन किया कि कुछ पैसे भेज दीजिए.''
वो आगे कहते हैं, ''पहली बार जब मुझे ऐड में काम मिला था तो बोला गया कि 5 हज़ार दिन का मिलेगा तो मैं बहुत खुश था कि 8 घंटे काम करने के 5 हज़ार रुपये मिलते हैं.''
'आपका शरीर ऐसा नहीं कि हीरो बन सकें'
राजकुमार राव का कहना है कि करियर की शुरुआत में जब वो काम ढूंढ रहे थे तब उन्हें कई तरह के कमेंट सुनने को मिले थे. ''बहुत लोगों ने बहुत चीज़ों पर कमेंट किया. किसी ने कहा कि आपकी शारीरिक बनावट ऐसी नहीं कि हीरो बन सकें, मैं सोचता था कि मुझे हीरो का टैग तो चाहिए ही नहीं मुझे एक्टर बनना है. लेकिन ये सब सफर का हिस्सा है, मुझे दिल में कोई मलाल नहीं है.''
राजकुमार राव बताते हैं कि बाद में कुछ ऐसे मेकर्स भी साथ काम करने आए जो पहले ऐसी टिप्पणियां कर चुके थे लेकिन राजकुमार इसे सफ़र का हिस्सा मानते हैं और कहते हैं कि कोई मलाल नहीं है.
राजकुमार राव ने हमेशा से तय कर रखा था कि काम करते रहना ज़रूरी है, इसलिए शुरुआत में उन्होंने छोटे-छोटे रोल भी किए. वो बरेली की बर्फी और स्त्री को ऐसी फिल्में बताते हैं, जिनकी वजह से उनकी लोकप्रियता और बढ़ी है.
अपने फिल्मी करियर को लेकर वो कहते हैं, ''मुझे पता था कि एलएसडी ऐसी फिल्म है जो 100 करोड़ नहीं कमाएगी लेकिन ये पता था कि दिबाकर बनर्जी की फिल्म है तो डायरेक्टर देखेंगे और ऐसा हुआ भी. अनुराग कश्यप ने मुझे गैंग्स ऑफ वॉसेपुर में लिया फिर शाहिद फिल्म मुझे मिली. बरेली की बर्फी और स्त्री के बाद मैंने देखा कि मेरी तरफ़ परसेप्शन बदला है. इससे पहले मैं ड्रामा जॉनर ज़्यादा कर रहा था, इंटेंस और बायोपिक रोल कर रहा था. बरेली और स्त्री ने मुझे लोगों तक पहुंचाया.''
राजकुमार को इस बात का अफसोस है...
राजकुमार राव के पेरेंट्स अब इस दुनिया में नहीं है. वो कहते हैं कि हर रोज़ इस बात का पछतावा होता है कि मां साथ में नहीं हैं.
राजकुमार कहते हैं, '' ये अफसोस हर रोज रहता है, ये जाता नहीं है. मैं खुश हूं कि मैं जब नेशनल अवॉर्ड हासिल कर रहा था तब वो थीं तालियां बजा रही थीं. लेकिन अफसोस रहता है कि काश वो अभी रहतीं, मैं उन्हें मुंबई लाता. लेकिन मैं मानता हूं कि वो अभी भी मुझे देख रही हैं.'' (bbc.com)