संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सडक़ों पर नियम तोडऩे का हक महज जुर्माने से अधिक सजा का हकदार
05-Aug-2022 4:17 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सडक़ों पर नियम तोडऩे का हक महज जुर्माने से अधिक सजा का हकदार

छत्तीसगढ़ में कल एक बुरा सडक़ हादसा हुआ, जिसमें मौतें तो कुल तीन हुईं, लेकिन उनसे सरकार के इंतजाम की कमजोरी उजागर हुई है। एक नौजवान लडक़े ने अपनी गर्लफ्रेंड को कार का स्टियरिंग थमा दिया जिसे कि कार चलाना आता ही नहीं था। नतीजा यह हुआ कि उसने इलाज के लिए अस्पताल जाते हुए एक बाईक पर सवार तीन लोगों को कार से बहुत बुरी तरह ठोकर मारी, और उसमें तीनों लोगों की मौत हो गई। जख्मी कार सवार लोगों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है, और कार को जब्त किया है। सडक़ों पर इस तरह की गैरकानूनी बददिमाग हरकत छत्तीसगढ़ के शहरों में बड़ी आम बात है। यहां आबादी के एक छोटे तबके के पास इतना अधिक पैसा है कि वह सिर चढक़र बोलता है। शहरों में महंगी गाडिय़ों पर सवार बददिमागी दूसरों के लिए खतरा बनी हुई दिखती ही रहती है। कहने के लिए पुलिस यह आंकड़े पेश कर सकती है कि उसने पिछले कितने हफ्तों में कितने लोगों पर क्या-क्या चालानी कार्रवाई की है, लेकिन कानून तोडऩे वालों के मुकाबले चालान पटाने वालों का अनुपात बड़ा छोटा सा दिखता है, और यही नतीजा है कि सडक़ों पर दूसरों के हक कुचलते हुए बददिमागी दिखाने वाले लोग कभी कम होते नहीं दिखते हैं। अब हिन्दुस्तानी सडक़ों पर बड़ी से बड़ी गाडिय़ां आम दिखने लगी हैं, और एक-एक शहर में लाखों रूपये से अधिक दाम वाली हजारों मोटरसाइकिलें भी दौड़ती हैं। नतीजा यह होता है कि जेब में रखे क्रेडिट कार्ड की ताकत के साथ जब गाड़ी का हॉर्सपॉवर मिलता है, तो मिजाज नीम चढ़े करेले सरीखा हो जाता है।

आज एक दिक्कत यह भी है कि पुलिस अपनी बुनियादी जिम्मेदारी को पूरा करने के बजाय हर नौबत में यह तौलने में लगी रहती है कि किसी ऐसे का चालान न हो जाए जो कि उनका ही ट्रैफिक से बस्तर के किसी थाने में तबादला करवाने की ताकत रखता हो। और यह डर छोटे-छोटे सिपाहियों का ही नहीं रहता है, आज इस प्रदेश में बड़े से बड़े पुलिस अफसर लगातार इस तनाव में काम करते हैं कि उनके काम से सत्ता में ताकत रखने वाले कोई लोग नाराज न हो जाएं। नतीजा यह होता है कि सत्तारूढ़ बददिमागी या सत्ता तक पहुंच रखने वाली बददिमागी लोगों को रौंदते चलती है। इस नौबत को सुधारने का एक अच्छा तरीका कुछ हफ्ते पहले केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सुझाया था। उन्होंने बताया था कि ऐसा एक कानून लाया जा रहा है जिसमें ट्रैफिक नियम तोडऩे वाले लोगों के वीडियो बनाकर लोग पुलिस को भेज सकेंगे, और अगर वे चालान करने लायक होंगे, तो जुर्माने का एक हिस्सा वीडियो भेजने वाले लोगों को भी मिलेगा। हमने इसकी तारीफ में इसी जगह लिखा था कि इससे लोगों में नियम का सम्मान बढऩे तक कई लोगों को एक मजदूरी या रोजगार सरीखा भी मिल सकेगा। लेकिन इस पर कई जागरूक लोगों ने यह लिखना शुरू कर दिया था कि सरकार की ऐसी सोच लोगों को आपस में लड़वाने की है। यह लोगों का काम नहीं है कि वे ट्रैफिक सुधारें, सरकार अपने हिस्से का काम लोगों पर डाल रही है। ऐसी सोच पर हमें बड़ा अफसोस हुआ था क्योंकि किसी भी सभ्य समाज में नियम-कानून लागू करने का काम अकेले सरकार का नहीं होता है, यह पूरे समाज की जिम्मेदारी होती है। और अगर समाज अपनी किसी भी तरह की जिम्मेदारी से पूरी तरह मुक्त हो जाना चाहता है, तो फिर इसकी कीमत उसे बहुत बड़ी संख्या में पुलिस  बढ़ाकर देनी होगी, जिसका आर्थिक बोझ जनता पर ही आएगा। जनता के बीच से अगर ऐसी जागरूकता निकलती है जो कि सडक़ों पर अराजकता करने वाले लोगों को कैमरों पर कैद करके पुलिस को भेजे, और एक ईनाम पाए, तो इससे दोहरा फायदा होगा। जरूरतमंदों को आर्थिक मदद मिलेगी, और नियम तोडऩे वाले लोगों को यह पता होगा कि आसपास पुलिस नहीं दिख रही है तो भी उनके गैरकानूनी काम के सुबूत पुलिस तक पहुंच सकते हैं।

देश भर के बहुत से प्रदेशों में ऐसा हाल होगा कि लोग अपने छोटे बच्चों को गाडिय़ां देकर खुश होते होंगे। लेकिन ऐसे बच्चे सडक़ों पर औरों के लिए बड़ा खतरा बनते हैं। इनके अलावा नशे में गाड़ी चलाने वाले, अंधाधुंध रफ्तार से गाड़ी चलाने वाले लोग भी कम नहीं हैं। हम तो आसपास यह देखकर थक जाते हैं कि एक चौथाई दुपहिया वाले एक हाथ में मोबाइल पकडक़र, या सिर और कंधे के बीच उसे फंसाकर सामने तिरछा देखते हुए गाड़ी चलाते जाते हैं। अब इस सिलसिले को रोकने की भी जरूरत है, और कड़े नियमों का इस्तेमाल करके इन लोगों की गाडिय़ां भी राजसात करनी चाहिए, और इनके लाइसेंस भी रद्द करने चाहिए। सडक़ों पर नियम तोडऩे का सीधा मतलब दूसरों की जान के लिए खतरा खड़ा करना होता है, और पुलिस या आरटीओ के लोग ऐसे भ्रष्ट और अराजक लोगों को किसी की जिंदगी नहीं देख सकते। हिन्दुस्तान के प्रदेशों को सभ्य और सुरक्षित बनना चाहिए, और नियम तोडऩे वाले लोगों की सुबूत सहित शिकायत पुलिस को करनी चाहिए, यह काम पुलिस की मुखबिरी करने जैसा नहीं है, यह काम अपने आपको सुरक्षित रखने का भी है। रोजाना कई मौतें छत्तीसगढ़ जैसे छोटे से प्रदेश में भी सडक़ों पर हो रही हैं, और सडक़ से जुड़े सरकारी महकमों को अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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