कारोबार
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत धर्म सप्ताह के तृतीय दिवस बुधवार को व्यक्त किए। वे आज ‘समाज में एकता लाने के लिए क्या करें’ विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि अनेक धर्मों का होना बहुत अच्छी बात है। अलग-अलग धर्मों के बारे में आप यूं सोचें कि जैसे आप बगीचे में जाते हैं, तो उस बगीचे में एक ही तरह के फूल नहीं रहते, वे विविध फूल ही बगीचे की शोभा बढ़ाया करते हैं। तब अलग-अलग परम्पराएं हैं तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन दिक्कत तब आ जाती है जब व्यक्ति के मन से पथ तो चला जाता है पर पंथ का आग्रह रह जाता है। एक बात तो तय है कि आदमी को कभी पंथ नहीं तारता अपितु एक अच्छा पथ तारता है। आदमी जैसा कर्म करता है, जीवन में वैसा परिणाम पाता है। आदमी कल्याण के रास्ते पर तब जाता है जब उसका अच्छे रास्ते पर चलना शुरू हो जाता है।
साथ रहने के सुख हजार होते हैं
संतप्रवर ने कहा कि आदमी अपने परिवार, समाज और धर्म में एकता का माहौल बनाए रखने सदा तत्पर रहे क्योंकि एकता में वह ताकत होती है, जिसे कोई भी तोड़ नहीं सकता। जिस परिवार में भाई-भाई अलग हो जाते हैं, उन पर पड़ोसी भी हावी हो जाता है। साथ रहने के हजार सुख होते हैं और टूटने का केवल एक ही सुख होता है कि आदमी अपनी मनचाही जिंदगी जी सकता है। पंचतंत्र की कहानी में हमने यह पढ़ा कि शिकारी के जाल में फंसे हुए कबूतरों ने जब एक साथ अपनी चोंच से जाल को ऊपर उठाया और एक साथ पंख खोलकर उड़ान लगाई तो वे पूरे जाल को ले उड़ने में सफल हो गए। ये ताकत कबूतरों के पंखों व चोंच की ही नहीं, ये ताकत थी एकता की। जब सारे कबूतर एक हो गए तो वे पूरे जाल को उड़ाने में सफल हो गए।
जिसके पास एकता का बल वह सबसे शक्तिशाली
संतश्री ने आगे कहा कि जिसके पास धन का बल है वह शक्तिशाली नहीं, जिसके पास तन का बल है वह भी शक्तिशाली नहीं, दुनिया में सबसे शक्तिशाली वह है जिसका परिवार में-समाज में-शहर में एकता का बल है। साथ में रहने का, प्रेम और मिठास से रहने का बड़ा ही सुख होता है। इंसान को तकलीफ तब नहीं होती जब कोई दूर जाकर दूर हो जाता है। असली तकलीफ तब होती है जब कोई एक छत की नीचे रहकर आपस में दूरियां बना लेता है। घर में चार लोग यदि आपस में हिल-मिलकर रह गए तो समझो आप जीवन की बाजी जीत गए।
कण-कण के जुड़ने में छिपा है दुनिया की खुशिहाली का राज
संतश्री ने कहा कि कार्यक्रम का आयोजन कर कहीं पर विश्व मैत्री दिवस की स्थापना करना बहुत सरल है, विश्व मैत्री की स्थापना जब भी शुरू होती है तो आदमी के अपने घर से होती है। जब मिट्टी के कण आपस में जुड़ते हैं तब र्इंट बनती है, जब हम र्इंट पर र्इंट सजाते हैं तो दीवार बनती है, जब चार दीवारों की खड़ी हो जाती हैं और छत ढलता है तब मकान बनता है, जब सौ मकान पास-पास बनते हैं तो मोहल्ला बन जाता है, जब सारे मोहल्लो मिल-जुल जाते हैं तब नगर बनता है, जब अनेक नगर साथ मिल जाते हैं तो राज्य बनता है। और देश तब सुधरता है जब ऐसे सारे राज्य मिल-जुल कर रहते हैं तब देश में खुशहाली रहती है। अब जरा सोचो दुनिया में खुशिहाली कब रहती है, जब सारे देश मिल-जुलकर रहते हैं। दुनिया की खुशहाली को पैदा करने के लिए एक-एक मिट्टी के कण को आपस में जुड़ना पड़ता है। यदि दुनिया को अच्छा बनाना है तो हमें पहले एक आदमी को अच्छा बनाना पड़ेगा।
सृजन यह भगवान की भूमिका है और विध्वंस शैतान की
संतप्रवर ने कहा कि अपने बच्चों में परिवार के प्रति प्रेम के सूत्र का बीजारोपण करें। जब भाई-भाई आपस में झगड़ लेते हैं तो दोनों ही नुकसान में होते हैं और जब आपस में हिल-मिलकर रहते हैं तो दोनों ही लाभ रहते हैं। एक तिनके की कोई औकात नहीं होती पर बहुत से तिनके आपस में मिलकर मोटा रस्सा बन जाते हैं तो हाथी को भी बांधने में कामयाब हो जाते हैं। हथेली की पांचों अंगुलियां कभी अभिमान न करे कि मैं जो काम करती हूं वह और कोई नहीं कर सकता, ये पांचों जब तक साथ हैं तभी तक इनकी ताकत है अन्य ये यदि अलग-अलग हो गर्इं तो इनकी कोई ताकत नहीं। एक धागे में पिरोकर अलग-अलग मोती माला कहलाने लगते हैं। 108 मणियों को सुई-धागे से होकर गुजरना पड़ा तब जाकर यह माला बनी लेकिन इन्हें बिखरने-अलग करने के लिए केवल एक सेकंड की कैची ही काफी है। सावधान रहना, जिंदगीभर सेक्रिफाइस करते रहे तब भाई-भाई साथ रहे पर पर एक छोटी-सी चूक भाई-भाई को जुदा कर सकती है। भगवान की भूमिका होती है जो माला बनाता है और शैतान की भूमिका होती है जो कैची चलाकर माला को बिखेर देता है। सृजन करना यह भगवान की भूमिका है और विध्वंस करना यह शैतान की भूमिका है। अगर आपमें साधना-आराधना की ताकत हो-चारित्र्य का बल हो तो गॉड बन जाना, पर अगर आपको लगता है कि आप गॉड नहीं बन पाए तो आप अपने-आपसे वादा करो कि मैं गॉड नहीं बन पाया तो कम से कम गुड जरूर बन जाउंगा। जो गुड बन जाता है, उसकी यात्रा गॉड बनने की ओर शुरू हो जाती है।
समाज-परिवार में रहें सुई-धागा बनकर
संतश्री ने कहा कि जब हम जुड़ते हैं तो हमारे भीतर में भाव सेक्रिफाइस के, त्याग के होते हैं, और जब हम टूटते या अलग हैं तो हमारे भीतर के भाव स्वार्थ के होते हैं। परिवार में सुई-धागा बनकर रहिए जो सबको जोड़ने का काम करते हैं, प्लीज कैंची बनकर न रहिए। नारी जाति पर लगे इस कलंक को, कि शादी होते ही साथ में रहने वाले दो भाई अलग-अलग हो जाते हैं, आज से अपने इस कलंग को धोने अपनी मानसिकता को बदल लो कि दो भाई भले अलग हो जाएं पर हम देवरानी-जेठानी कभी अलग नहीं होंगे। फिर देखते हैं कि इन भाइयों की क्या औकात होती है कि अपनी-अपनी बीवियों को छोड़कर ये अलग कैसे होते हैं। नारी जाति अपने पर लगने वाले इस झूठे आरोप को साफ करें कि महिलाएं घर तो तोड़ती हैं, नए युग की शुरुआत हो कि महिलाएं हमेशा घर को जोड़ कर रखती हैं। अब हमें नई सोच-नई दिशा, नया नजरिया अपने जीवन में बनाना पड़ेगा। हम संकल्पबद्ध हो जाएं मैं जहां रहूं वहां फूल की भूमिका अदा करूं, कांटों की नहीं। जहां रहूं वहां बाग लगाने का काम करुं-आग लगाने का नहीं।
हिल-मिल कर रहने का लें आनंद
श्रद्धेय संतश्री ने कहा कि देखो उन समाजों को जो आपस में हिल-मिलकर रहते हैं, उनकी ताकत को देखो। उनके जीने के तरीके को देखो। साथ रहने का आनंद क्या होता है, इसे जानना-सीखना हो तो अंगूरों से सीखना। जब अंगूर गुच्छे से लगे होते हैं तो 80 रुपए किलो होते हैं और जब गुच्छे से अलग हो जाए तो 20 रुपए किलो के हो जाते हैं। यह बात हमें यह सिखाती है कि हमारी औकात तभी रहेगी जब हम साथ-साथ रहेंगे। परिवार में हम एक-दूसरे से हिल-मिल कर रहने का आनंद लेना शुरू कर दें। हम घर में रोज दिवाली आ जाएगी। सभी मानवों का रक्त लाल होता है, इसका अर्थ है हम स्वयं ही बंट गए हैं, वास्तव में तो पूरी दुनिया के मानव एक ही हैं। राजनीति में धर्म होना चाहिए-देश का कल्याण होगा, पर धर्म में कभी-भी राजनीति नहीं होनी चाहिए अन्यथा धर्म का विनाश होगा। वे लोग महान होते हैं जो धंधे में भी धर्म करते हैं। और उससे बड़ा पापी कौन जो धर्म में भी धंधे करते हैं। दुनिया में सच्चा कार्यकर्ता वही होता है जिसका कार्य तो दिखता है पर कर्ता कभी नहीं दिखता।
परिवार-समाज को बिखराव से बचाने बरतें ये सावधानियां
संतश्री ने बताया कि अपने समाज व परिवार को बिखराव से बचाने के लिए हम अपने जीवन में इन सावधानियों को अपना लें। वे हैं- नंबर एक ईर्ष्या और अहंकार को कभी भी पैदा न होने दो। संकीर्ण सोच कभी-भी नहीं रखनी चाहिए क्योंकि यह समाज को तोड़ती है। इसी तरह समाज-परिवार के मधुर बनाए रखने के लिए हमें इन चार मंत्रों को जीवन से जोड़ लेना चाहिए। उनमें पहला है- संगठन। दीवारें भले ही रहें कोई बात नहीं पर दीवारों में दरवाजे खुले रहने चाहिए। दूसरा है- सहयोग की भावना। तीसरा है- समाज में समानता रहे। और चौथा है- समन्वय का भाव हो।
अतिथियों को मिली ज्ञानपुष्प की भेंट: श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि बुधवार को दिव्य सत्संग सभा में आये सभी अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञानपुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। अतिथि सत्कार श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली व दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया द्वारा किया गया। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया।
आज प्रवचन ‘प्रेम का पवित्र पर्व: रक्षाबंधन’ विषय पर
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत व स्वागताध्यक्ष कमल भंसाली ने बताया कि गुरूवार, 11 अगस्त को दिव्य सत्संग के अंतर्गत धर्म सप्ताह के चतुर्थ दिवस ‘प्रेम का पवित्र पर्व: रक्षाबंधन’ विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।