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प्रार्थना से होती है ईष्ट की प्राप्ति, अनिष्ट का निवारण: राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
14-Aug-2022 4:23 PM
प्रार्थना से होती है ईष्ट की प्राप्ति, अनिष्ट का निवारण: राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
रायपुर, 14 अगस्त। ‘‘प्रार्थना की ताकत आप देखना चाहते हैं, दुनिया में इससे ज्यादा शक्तिशाली, गतिशील और कोई चीज हो ही नहीं सकती की हृदय से उठकर होंठ तक आए उससे पहले ही जो भगवान तक पहुंच जाए उसका नाम है प्रार्थना। हृदय से होंठ तक की पांच इंच की दूरी यह बाद में तय करती है, उससे पहले भगवान तक पहुंच जाती है। अगर ईष्ट की प्राप्ति करनी हो तो प्रार्थना काम आती है, अनिष्ट का निवारण करना हो तो प्रार्थना काम आती है। संकट की बेला में जो संकटमोचक बनकर हमारी जिंदगी में सुख का वाहक बन जाती है, उसका नाम मनुष्य के हृदय से उठने वाली प्रार्थना है। प्रार्थना वो नहीं जो होठों से उठती है प्रार्थना वो है जो आदमी के हृदय से उठती है। जिनके पास ईश्वर सुंदर कंठ देता है उन्हें तो पुरस्कार मिलता है, जिनके पास सुंदर हृदय होता है उनको परमात्मा खुद मिलता है।
 
परमात्मा की भक्ति करने के लिए अच्छे मन की जरूरत होती है। उसकी इतनी जबरदस्त ताकत है यदि न सुनना हो तो चाहे चिल्ला-चिल्ला कर बोल लो तो भी वह नहीं सुनता है और अगर सुनना हो तो चींटी की पदचाप भी वह सुन लिया करता है। ’’ ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत धर्म सप्ताह के छठवें दिन शनिवार को ‘भक्ति की शक्ति और प्रार्थना का चमत्कार’  विषय पर व्यक्त किए। भाव बिन मिले नहीं भगवान, ओ भगवान को भजने वाले मन में धर ले ध्यान...इस प्रेरक भजन से दिव्य सत्संग का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि ईष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के निवारण के लिए दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अगर कोई है तो वह है ईश्वर की प्रार्थना। जब हम गाते हैं- तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो...तब हमारा हृदय कितना आत्मविश्वास से भर जाता है कि ईश्वर मेरे साथ है।
 

जब हम गाते हैं- इतनी शक्ति हमें देना दाता...तो एक नैतिक और पवित्र जीवन जीने का मार्ग हमारे मन में आता है। जब हम यह प्रार्थना करते हैं- मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान तुम्हारे चरणों में...ये प्रार्थनाएं हमारे जीवन को ईश्वर से जोड़कर रखती हैं। जब हम बचपन में स्कूलों में गुनगुनाया करते थे- हे प्रभु आनंद दाता, ज्ञान हमको दीजिए...स्कूल जाते ही हमारा पहला काम होता था प्रार्थना करना। क्या आपको अपने उस बचपन से जीने की प्रेरणा नहीं मिली कि जीवन में कोई भी काम शुरू करो उससे पहले प्रार्थना शुरू करो। दुकान, प्रतिष्ठान, संयंत्र का जैसे ही शटर ऊपर हो- काम या व्यापार बाद में शुरू कीजिए, पहले सब एक जगह इक्ट्ठा होकर तीन मिनट की प्रार्थना करो। अगर आपका व्यापार, आपकी फैक्ट्री का उत्पादन दुगुना न हो जाए तो कहना। काम की शुरुआत में ही जिसने ईश्वर को अपना मान लिया उसका काम अवश्य फलीभूत होता है। आज ही से अपने घर पर नित्य प्रार्थना की आदत डालो। सुबह-सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु, हम करते हैं शुरू आज का काम प्रभु। प्रार्थना का अद्भुत चमत्कार आप देखेंगे।

 
सब पर है परम पिता परमेश्वर का सहारा
संतप्रवर ने आगे कहा कि मानता हूं आप अकेले नहीं हैं, पत्नी को पति का और पति को पत्नी का सहारा है। एक बार आंख बंद कर सोचो, आप दोनों को एक-दूजे का सहारा है, वक्त आने पर दोनों को किसका सहारा है? उस परम पिता परमेश्वर का सहारा है। जब इंसान असहाय हो जाता है तब पांच मिनट ईश्वर की प्रार्थना कीजिए, अपने हृदय के तार परमात्मा से जोड़कर तो देखिए, बड़े निष्काम भाव से परमात्मा से निवेदन कीजिए कि हे ईश्वर तू सर्वशक्तिमान है, तू असंभव को भी संभव कर देता है। प्रतिकूल वातावरण में भी जब हम अपने अन्तरहृदय को परम पिता परमेश्वर के श्रीचरणों में ले जाकर प्रार्थना के तार उनसे जोड़ देते हैं, वो कितना भी दूर हमसे हो हमारी आवाज जरूर सुनता है।

 
हमारी प्रार्थना परमात्मा को पाने के लिए हो
संतश्री ने कहा कि मैं कहूंगा आप रोज भगवान से प्रार्थना किया करो कि हे ईश्वर अगर मैंने स्वर्ग को पाने  लिए तुम्हारी पूजा-अर्चना-सेवा की है तो मुझे स्वर्ग मत भेजना वंचित कर देना, अगर मैंने नर्क से बचने के लिए पूजा-अर्चना सेवा की है तो मुझे जरूर नर्क में डाल देना, पर हे भगवन अगर मैंने तुम्हें पाने के लिए तुम्हारी पूजा-अर्चना, सेवा भक्ति की है तो तुम मुझे जरूर मिल जाना। क्योंकि मैंने भक्ति न तो स्वर्ग को पाने के लिए और न तो नर्क से बचने के लिए की है, मैंने भक्ति केवल भगवन आपको पाने के लिए की है। आचार्यश्री मानतुंगाचार्य ने कारागार में भगवान श्रीआदिनाथ की प्रार्थना में महान स्तोत्र भक्ताम्बर की रचना की और कारागार के संपूर्ण द्वार-ताले खुल गए, ये है भक्ति की शक्ति। ये भक्ति की ही शक्ति है कि कभी द्रोपदी का चीर हरण हो रहा हो तो वो रुक जाता है, मीरा के द्वार पर मोहन आ जाते हैं, भगवानश्री आदिनाथ स्वयं मुक्ति बाद में पाते हैं और पहले अपनी माता मरुदेवी को मुक्ति पहले दे देते हैं, यह भक्ति की शक्ति है कि राजुल जो पत्नी न बन पड़ी पर साध्वी बनकर भगवान श्रीनेमीनाथ के मोक्ष मार्ग पर जाती है। यह भक्ति की अद्भुत शक्ति है कि कभी करमा बाई का खीचड़ा खा लिया जाता है और कभी नानी बाई का मायरा भर दिया जाता है। जिन्होंने भक्ति की शक्ति देखी है वे सदा गाया करते हैं- भक्ति करता छूटे रे म्हारा प्राण, प्रभुजी ऐ नू मांगू छूं...।

 
धर्म का सबसे सरल स्वरूप है प्रार्थना
संतप्रवर ने कहा कि यदि कोई मुझसे पूछे कि धर्म का सबसे सरल स्वरूप क्या होता है, तो मैं यही कहूंगा- धर्म का सबसे सरल स्वरूप है प्रार्थना। भगवान से की हुई हर प्रार्थना हमारी मानसिक शक्ति, हमारी भावदशा को निर्मल करती है, आत्मा को परमात्मा में विलीन करती है। अगर श्रद्धापूर्वक तीर्थंकर परमात्मा को एक बार वंदन कर लिया जाए तो जीव जन्म-मरण की धारा से व्यक्ति बाहर निकल जाता है। भगवान को भोग नही ंचाहिए, भगवान को भाव चाहिए। भगवान को साधन नहीं, साधना चाहिए। भगवान को भवन नहीं, भावना चाहिए। वे तो आदमी की भावना के भूखे हैं, भोग के भूखे नहीं हैं। भगवान बोल के भूखे नहीं होते, भगवान भाव के भूखे होते हैं। दादा गुरूदेव के भावपूर्ण भजन- जब कोई नहीं आता, मेरे दादा आते हैं, मेरे दुख के दिनों में वो बड़े काम आते हैं...। जब कोई व्यक्ति श्रद्धापूर्वक अपने गुरुजनों को, अपने ईश्वर को, अपने आराध्य को याद करता है तब उसके कार्य जीवन में पूर्ण हो जाते हैं।

 
संघर्ष, दिक्कतें ये तो जिंदगी के हिस्से हैं
संतप्रवर ने कहा कि मन का अगर सबसे बड़ा कोई सहारा होता है तो वो है भगवान पर श्रद्धा-विश्वास। पत्नी को एक ही बात सात बार कहोगे तो उसका माथा ठनक जाएगा पर भगवान को एक बात हजार बार कहोगे तो न तो उनका माथ ठनकेगा अपितु आपकी विपत्ति दूर करने में वे मददगार बन जाएंगे। भगवान को अगर एक बात हजार बार कहोगे तो भगवान यही कहेंगे धीरज धर, तेरा काम बन जाएगा। जिंदगी में आने वाली उठापटकों को जिंदगी की उठापटके मत समझो, क्योंकि भगवान यह साबित करना चाहता है कि अभी तू जिंदा है। ईसीजी की रिपोर्ट में भी रेखाओं का ग्राफ ऊपर-नीचे दिखाई देता है जो आदमी के जिंदा होने का संकेत है, यदि वह रेखा सीधी हो जाए तो समझ लेना आदमी मर गया है। इसीलिए जीवन में आने वाले संघर्षों, तकलीफों से घबराना नहीं, ये सब तो जीवन के हिस्से हैं। जो चलेगा उसे ही ठोकर लगेगी, जो चलेगा ही नहीं उसे ठोकर कहां से लगेगी।

 
परमात्मा से जोड़े लें अंतरहृदय के तार
संतप्रवर ने कहा कि जो व्यक्ति अपने अंतरहृदय का तार परमात्मा से जोड़कर रखता है, उसके दुष्कर कार्य भी सरल हो जाते हैं। जिंदगी में भगवान को केवल संकट की बेला में ही याद न करो, सुख के समय भी याद करो। यदि सुख के समय याद कर पुण्य का बैलेंस बढ़ाए रखा तो वह तुम्हें दुख के समय जरूर काम आएगा। आर्त, याचना और निष्काम इन तीन तरह की भक्तियों में तुम केवल भगवान की निष्काम भक्ति करो। यह निष्काम भक्ति तुममें धैर्य पैदा करेगी, विचारों को सकारात्मक बना देगी, वाणी में शिष्टता-मिठास भर देगी, दिमाग हमेशा निर्मल होगा और तब तुम यदि मिट्टी में भी हाथ डालोगे तो वह मिट्टी भी सोना बन जाएगी।
 

भगवान की निष्काम भक्ति करने वाला भक्त दिक्कतों से वैसे ही पार हो जाता है जैसे जंगलों के बीच से रेलगाड़ी निकल जाया करती है। लोग कहते हैं कि भगवान दिखता थोड़े ही है,तो  पूजा किसकी करूं। तय है मैं भगवान की पूजा इसीलिए नहीं करता कि भगवान मुझे दिखता है, मैं इसीलिए पूजा करता हूं कि भगवान मुझे देखता है। मुझमें तो ये ताकत नहीं कि मैं भगवान को देख सकूं पर भगवान में ये ताकत है वे मुझे देख सकते हैं। भगवान कहते हैं- न तो मैं ज्ञान से जाना जाता हूं और न मैं तप से जाना जाता हूं, न मैं शास्त्रों से जाना जाता हूं, मुझे वही व्यक्ति पा सकता है जो मेरी भक्ति करता है। जो निष्काम भाव से मेरी भक्ति करता है, वही मुझे पा सकता है। ‘प्रभु आपकी कृपा से सब काम हो रहा है...’ और हे ईश्वर सबको सन्मति दो, आरोग्य दो, आनंद और ऐश्वर्य दो। सबका भला कर-सबपे दया कर, और तेरा मीठा नाम सबके हृदय में रहने दे। इस प्रार्थना के साथ संतश्री ने आज की धर्मसभा का समापन किया।

मंदिर और तीर्थ हमारी आस्था के प्रतीक: डॉ. मुनिश्री शांतिप्रियजी
धर्मसभा के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि मंदिर और तीर्थ हमारी आस्था के प्रतीक हैं। तन-मन, आत्मा को परिष्कृत-परिमार्जित करने के स्थान हैं मंदिर और तीर्थ। प्रभु के घर को मंदिर कहा जाता है और जहां पर हम अपने मन में उतरते हैं उसे मंदिर कहते हैं।

 
अतिथियों को भेंट में मिले ज्ञान पुष्प
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि आज दिव्य सत्संग का शुभारंभ अतिथिगण हर्ष डागा कोलकाता, राजेश गोठी बैतूल, दिलीप बैद, अमर बरलोटा, मुकेश निम्माणी, श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, सुमित कांकरिया द्वारा ज्ञान का दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञानपुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। अतिथि सत्कार दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया द्वारा किया गया। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया।

 
तपस्वियों का हुआ बहुमान
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं श्रीदिव्य चातुर्मास समिति की ओर से आज धर्मसभा में 8 उपवास की तपस्विनी बालिका पाखी भंसाली पुत्री सुरेश भंसाली का बहुमान किया गया।

आज प्रवचन  ‘1 घंटे में समझें सभी धर्मों के रहस्य’ विषय पर
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख व प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि रविवार, 14 अगस्त को दिव्य सत्संग के अंतर्गत धर्म सप्ताह के सातवें दिन ‘1 घंटे में समझें सभी धर्मों के रहस्य’ विषय पर प्रवचन होगा। 15 अगस्त से 4 सितम्बर तक श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी एमजी रोड में दादा गुरूदेव इक्तीसे का आयोजन किया जाएगा। जिसके लिए कल रविवार की धर्मसभा में दादा गुरूदेव प्रतिमा की स्थापना एवं अखंड दीपक का लाभ भी सौभाग्यशाली श्रद्धालुओं को प्राप्त होगा। अक्षय निधि, समवशरण, विजय कसाय, तप 16 अगस्त से प्रारंभ होंगे। इन तपों की आराधना दादाबाड़ी में ही रहेगी। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।

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