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आगे पीछे देख, रोड पार करना और बात करना सीखो - आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज
14-Aug-2022 4:24 PM
आगे पीछे देख, रोड पार करना और बात करना सीखो - आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज
रायपुर, 14 अगस्त। सन्मति नगर फाफाडीह में ससंघ चातुर्मास कर रहे आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने शुक्रवार को धर्मसभा में कहा कि सड़क पर यदि चलो तो आगे पीछे देख कर चलना सीखो। बगैर आगे पीछे देख कर रोड पार करोगे तो जीवन चला जाएगा और बगैर आगे पीछे देख कर बात करोगे तो बात बिगड़ जाएगी। दुर्घटना से बचना है तो आगे पीछे देख कर सड़क पार करना और बात करना सीखो। आंखों को खोलने का पुरुषार्थ करो,जिसके पास अनेकांत की दृष्टि होगी वह व्यक्ति हर विषय को धीर के साथ बोलेगा और धीर के साथ सुनेगा। आचार्य श्री ने कहा कि एक शब्द प्रमाण और दूसरा ज्ञान प्रमाण होता है। शब्द प्रमाण नहीं बताओगे तो आगम प्रमाण नहीं होगा, जिसे आप पूज रहे हो वह शब्द प्रमाण है। जिसे तुम सुन रहे हो वह बुद्धि प्रमाण है। बगैर शब्द प्रमाण के बुद्धि प्रमाण बोलता नहीं है, जब तक शब्द प्रमाण नहीं होगा बुद्धि प्रमाण लंगड़ा है। शब्द प्रमाण के पोस्टर लग गए लेकिन बुद्धि प्रमाण नहीं है तो कल्याण नहीं होगा। शब्द प्रमाण दूसरों को समझाने के लिए है,स्वयं को समझाने के लिए बुद्धि प्रमाण काम आएगा।
 
आचार्य श्री ने कहा कि ज्ञानी होना कठिन नहीं है,हम साम्य स्वभावी हैं यह कठिन है। ज्ञान अक्षरों का प्राप्त तो सभी करते हैं लेकिन समय पर निर्णय लेने की क्षमता,समय पर विवेक पूर्वक बोलने की क्षमता, समय पर जीवन को तदस्वरूप ढालने की क्षमता, ये हर व्यक्ति के पास नहीं है। सहजता में दूसरों की सुनने की योग्यता लाना, मध्यस्थ भाव के साथ जीना और विपरीत समय में अपने आप को संभाल कर रखना। आचार्य श्री ने कहा कि जीवन में लोग आड़े तिरछे मिल सकते हैं ध्यान रखना कि आपके परिणाम आड़े तिरछे न हो,आपकी भाषा आड़ी तिरछी न हो। भोजन नीरज मिल सकता है लेकिन परिणाम निराश न हो पाए। भोजन गर्म मिल सकता है परिणाम गर्म न हो पाए,पानी ठंडा मिल सकता है बुद्धि ठंडी न हो पाए।
 
आचार्य श्री ने कहा कि इतना विवेक होना चाहिए कि उस विवेक का श्रेय किसी दूसरे को देने की कोशिश मत करो। बहुत सारे जीव 24 घंटे दूसरे को श्रेय देकर श्रेय लूटना चाहते हैं,वे लोग 24 घंटे परेशान रहने वाले लोग हैं। दूसरों को श्रेय देने की कोशिश व्यर्थ है। इतना श्रेष्ठ हो जाओ कि दूसरों को श्रेय देने की आवश्यकता और अपनी श्रेष्ठता का प्रचार करने की आवश्यकता न पड़े। विफल वे लोग हैं जो स्वयं के पुरुषार्थ से सफलता नहीं चाहते, दूसरों के मुख से अपनी प्रशंसा सुनने में सफलता मानते हैं। जो लोग दूसरे के मुख से अपनी प्रशंसा सुनने के लिए हर काम में आगे बढ़ रहे वे लोग भी विफल है। पर प्रशंसा पाने के लिए किसी को आगे बढ़ाना श्रेष्ठ नहीं है,अपने श्रेष्ठ काम करके दूसरे को भी आगे लेकर जाओ,श्रेय के लिए नहीं निश्रेय के लिए।
 
जीवन में दया-करुणा को धारण कर आत्मकल्याण करो : मुनिश्री यशोधर सागर जी
मुनि श्री यशोधर सागर जी ने कहा कि जैन दर्शन दया, करुणा और अहिंसा की बात सिखाता है। जीवन में दया करुणा को धारण करो और अपना आत्म कल्याण करो। कितना पुण्य है कि सुबह से उठकर आप भगवान के दर्शन,पूजन और गुरुओं की आराधना करते हो। जैन दर्शन जीवों पर दया करना सिखाता है, जो जैन कुल में जन्म लेता है वह बचपन से ही जीवो पर दया करना शुरू कर देता है। जो सुबह उठकर हिंसा करते हैं स्वयं अपने पाप का बंध करते हैं।  भगवान के दर्शन के साथ अपनी आत्मा के दर्शन करना सीखो, तभी कर्मों का क्षय हो सकता। जिसके जीवन में दया नहीं वह अपना आत्मकल्याण नहीं कर पाएगा। जीवन में ऐसे मित्र बनाना जो सुबह उठकर देवालय जाते हैं। यदि ऐसे  पुण्यात्मा मित्र मिल जाए तो आपका पुण्य होगा, ऐसे मित्र मिलना बहुत दुर्लभ होता है।
 
गुरु भक्तों ने आचार्यश्री को अर्घ्य समर्पित कर लिया आशीर्वाद 
विशुद्ध वर्षा योग समिति के कोषाध्यक्ष निकेश गोधा और मनोज सेठी ने बताया कि आज मंगलाचरण नंदा सोनी अशोकनगर ने किया। दीप प्रज्वलन रतनलाल महेश कुमार काला,अक्षय जी, मांगीलाल जी मुंबई, प्रकाशचंद्र दीपक जी,रोहित जी इंदौर,अभिनंदन जी हैदराबाद ने किया। आचार्यश्री को शास्त्र भेंट शिखरचंद जैन आगरा ने किया। आज मुनिश्री सुव्रत सागर जी महाराज के गृहस्थ अवस्था के पिताजी आचार्य संघ के दर्शन के लिए आए। विशुद्ध वर्षायोग समिति के संरक्षक महावीरजी बाकलीवाल, सुधीरजी बाकलीवाल,पारस पापडीवाल,राजकुमार गंगवाल ने उनका स्वागत अभिनंदन किया।
 
साथ ही ब्रह्मचारिणी नीतू दीदी के गृहस्थ जीवन के परिजनों ने आचार्यश्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। धार्मिक क्रियाओं धर्म प्रचार के लिए ऑस्ट्रेलिया जा रहे ब्रह्मचारी अक्षय भैय्या जी का सम्मान कमेटी की ओर से किया गया। धर्मसभा में उपस्थित गुरु भक्तों ने आचार्यश्री को अर्घ्य समर्पित कर आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम का संचालन अरविंद जैन और दिनेश काला ने किया। कार्यक्रम के अंत में जिनवाणी मां की स्तुति का पाठ किया गया। 14 अगस्त। सन्मति नगर फाफाडीह में ससंघ चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने शुक्रवार को धर्मसभा में कहा कि सड़क पर यदि चलो तो आगे पीछे देख कर चलना सीखो। बगैर आगे पीछे देख कर रोड पार करोगे तो जीवन चला जाएगा और बगैर आगे पीछे देख कर बात करोगे तो बात बिगड़ जाएगी। दुर्घटना से बचना है तो आगे पीछे देख कर सड़क पार करना और बात करना सीखो। आंखों को खोलने का पुरुषार्थ करो,जिसके पास अनेकांत की दृष्टि होगी वह व्यक्ति हर विषय को धीर के साथ बोलेगा और धीर के साथ सुनेगा।
 
आचार्यश्री ने कहा कि एक शब्द प्रमाण और दूसरा ज्ञान प्रमाण होता है। शब्द प्रमाण नहीं बताओगे तो आगम प्रमाण नहीं होगा, जिसे आप पूज रहे हो वह शब्द प्रमाण है। जिसे तुम सुन रहे हो वह बुद्धि प्रमाण है। बगैर शब्द प्रमाण के बुद्धि प्रमाण बोलता नहीं है, जब तक शब्द प्रमाण नहीं होगा बुद्धि प्रमाण लंगड़ा है। शब्द प्रमाण के पोस्टर लग गए लेकिन बुद्धि प्रमाण नहीं है तो कल्याण नहीं होगा। शब्द प्रमाण दूसरों को समझाने के लिए है,स्वयं को समझाने के लिए बुद्धि प्रमाण काम आएगा। आचार्यश्री ने कहा कि ज्ञानी होना कठिन नहीं है,हम साम्य स्वभावी हैं यह कठिन है। ज्ञान अक्षरों का प्राप्त तो सभी करते हैं लेकिन समय पर निर्णय लेने की क्षमता,समय पर विवेक पूर्वक बोलने की क्षमता, समय पर जीवन को तदस्वरूप ढालने की क्षमता, ये हर व्यक्ति के पास नहीं है। सहजता में दूसरों की सुनने की योग्यता लाना, मध्यस्थ भाव के साथ जीना और विपरीत समय में अपने आप को संभाल कर रखना। 
 
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में लोग आड़े तिरछे मिल सकते हैं ध्यान रखना कि आपके परिणाम आड़े तिरछे न हो,आपकी भाषा आड़ी तिरछी न हो। भोजन निरस मिल सकता है लेकिन परिणाम निरस न हो पाए। भोजन गर्म मिल सकता है परिणाम गर्म न हो पाए,पानी ठंडा मिल सकता है बुद्धि ठंडी न हो पाए। आचार्यश्री ने कहा कि इतना विवेक होना चाहिए कि उस विवेक का श्रेय किसी दूसरे को देने की कोशिश मत करो। बहुत सारे जीव 24 घंटे दूसरे को श्रेय देकर श्रेय लूटना चाहते हैं,वे लोग 24 घंटे परेशान रहने वाले लोग हैं। दूसरों को श्रेय देने की कोशिश व्यर्थ है। इतना श्रेष्ठ हो जाओ कि दूसरों को श्रेय देने की आवश्यकता और अपनी श्रेष्ठता का प्रचार करने की आवश्यकता न पड़े। विफल वे लोग हैं जो स्वयं के पुरुषार्थ से सफलता नहीं चाहते, दूसरों के मुख से अपनी प्रशंसा सुनने में सफलता मानते हैं। जो लोग दूसरे के मुख से अपनी प्रशंसा सुनने के लिए हर काम में आगे बढ़ रहे वे लोग भी विफल है। पर प्रशंसा पाने के लिए किसी को आगे बढ़ाना श्रेष्ठ नहीं है,अपने श्रेष्ठ काम करके दूसरे को भी आगे लेकर जाओ,श्रेय के लिए नहीं निश्रेय के लिए।
 
जीवन में दया-करुणा को धारण कर आत्मकल्याण करो : मुनिश्री यशोधर सागर जी
मुनिश्री यशोधर सागर जी ने कहा कि जैन दर्शन दया, करुणा और अहिंसा की बात सिखाता है। जीवन में दया करुणा को धारण करो और अपना आत्म कल्याण करो। कितना पुण्य है कि सुबह से उठकर आप भगवान के दर्शन,पूजन और गुरुओं की आराधना करते हो। जैन दर्शन जीवों पर दया करना सिखाता है, जो जैन कुल में जन्म लेता है वह बचपन से ही जीवो पर दया करना शुरू कर देता है। जो सुबह उठकर हिंसा करते हैं स्वयं अपने पाप का बंध करते हैं।  भगवान के दर्शन के साथ अपनी आत्मा के दर्शन करना सीखो, तभी कर्मों का क्षय हो सकता। जिसके जीवन में दया नहीं वह अपना आत्मकल्याण नहीं कर पाएगा। जीवन में ऐसे मित्र बनाना जो सुबह उठकर देवालय जाते हैं। यदि ऐसे  पुण्यात्मा मित्र मिल जाए तो आपका पुण्य होगा, ऐसे मित्र मिलना बहुत दुर्लभ होता है।
 
गुरु भक्तों ने आचार्यश्री को अर्घ्य समर्पित कर लिया आशीर्वाद 
विशुद्ध वर्षा योग समिति के कोषाध्यक्ष निकेश गोधा और मनोज सेठी ने बताया कि आज मंगलाचरण नंदा सोनी अशोकनगर ने किया। दीप प्रज्वलन रतनलाल महेश कुमार काला,अक्षय जी, मांगीलाल जी मुंबई, प्रकाशचंद्र दीपक जी,रोहित जी इंदौर,अभिनंदन जी हैदराबाद ने किया। आचार्यश्री को शास्त्र भेंट शिखरचंद जैन आगरा ने किया। आज मुनिश्री सुव्रत सागर जी महाराज के गृहस्थ अवस्था के पिताजी आचार्य संघ के दर्शन के लिए आए। विशुद्ध वर्षायोग समिति के संरक्षक महावीरजी बाकलीवाल, सुधीरजी बाकलीवाल,पारस पापडीवाल,राजकुमार गंगवाल ने उनका स्वागत अभिनंदन किया। साथ ही ब्रह्मचारिणी नीतू दीदी के गृहस्थ जीवन के परिजनों ने आचार्यश्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। धार्मिक क्रियाओं धर्म प्रचार के लिए ऑस्ट्रेलिया जा रहे ब्रह्मचारी अक्षय भैय्या जी का सम्मान कमेटी की ओर से किया गया। धर्मसभा में उपस्थित गुरु भक्तों ने आचार्यश्री को अर्घ्य समर्पित कर आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम का संचालन अरविंद जैन और दिनेश काला ने किया। कार्यक्रम के अंत में जिनवाणी मां की स्तुति का पाठ किया गया।

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