संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गुजरात में हत्यारे-बलात्कारी लोगों की रिहाई को दिसंबर के चुनाव से जोडक़र देखें!
17-Aug-2022 4:02 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गुजरात में हत्यारे-बलात्कारी लोगों की रिहाई को दिसंबर के चुनाव से जोडक़र देखें!

Photo : Twitter

गुजरात में गोधरा कांड के बाद 2002 में हुए मुस्लिम विरोधी दंगों में एक मुस्लिम युवती बिलकिस बानो के परिवार पर हमला हुआ था, भीड़ ने इस पांच महीने की गर्भवती युवती की तीन साल की बेटी को मार डाला था, परिवार के सात लोगों का कत्ल कर दिया था, और बिलकिस के साथ गैंगरैप किया था। 2002 के इस मामले पर प्रदेश के बाहर हुई सुनवाई में 2008 में सीबीआई कोर्ट ने मुंबई में ग्यारह लोगों को उम्रकैद सुनाई थी जिसे कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी कायम रखा था। इसके बाद पन्द्रह बरस कैद काटने के बाद इन्होंने सजा माफी के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की, और अदालत ने राज्य सरकार को इस पर विचार करने कहा। राज्य सरकार की एक कमेटी ने इन सारे लोगों को पन्द्रह अगस्त को उस वक्त रिहा किया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ घंटे पहले ही लालकिले पर से महिलाओं के सम्मान की अपील करके हटे थे। सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों की सजा माफी करने को नहीं कहा था, उस पर विचार करने कहा था, और यह गुजरात सरकार का अपना फैसला है, जिसे वह आज सुप्रीम कोर्ट का नाम लेकर बचने की कोशिश कर रही है। इस एक खबर ने प्रधानमंत्री की एक बड़ी घोषणा को पल भर में खोखला साबित कर दिया क्योंकि गुजरात की राज्य सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपनी ही है, और ऐसा तो हो नहीं सकता कि वह राज्य सरकार अपनी पार्टी और अपने गृहमंत्री, प्रधानमंत्री को बताए बिना इतना नाजुक फैसला ले। यह भी समझने की जरूरत है कि केन्द्र सरकार के ऐसे बहुत से निर्देश पहले से हैं, 2014 की एक सजामाफी नीति भी है जिसमें साफ लिखा है कि बलात्कार जैसे भयानक अपराधों के मुजरिमों को माफी नहीं दी जाएगी। गुजरात सरकार के इस फैसले के बाद जानकार वकीलों का कहना है कि राज्य का यह फैसला केन्द्र की इसी नीति के तहत होना था।

लोगों को याद होगा कि कुछ महीने पहले भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के मुख्य न्यायाधीश की मौजूदगी में अदालतों से विचाराधीन कैदियों को जल्द छोडऩे के बारे में कुछ कहा था। यह मामला विचाराधीन कैदियों का तो नहीं है, लेकिन यह राज्य सरकार के विवेक का मामला जरूर है जो कि सजा का एक वक्त पूरा हो जाने के बाद सजामाफी की अपील पर विचार कर सकती है। अब जब गुजरात सरकार के इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री की हाल ही में कैदियों की रिहाई के बारे में कही गई बातों को देखें तो ऐसा लगता है कि क्या वे गुजरात की इस कार्रवाई के पहले एक जमीन तैयार कर रहे थे?

स्वतंत्रता दिवस के दिन जब इन कैदियों को रिहा किया जा रहा था तो जिस तरह से उन्हें मालाएं पहनाई गईं, उनकी आरती उतारी गई, उससे भी देश बहुत विचलित है। प्रधानमंत्री के भाषण को लेकर देश भर में यह विवाद चल ही रहा था कि देश में उनके समर्थक और प्रशंसक महिलाओं पर सबसे अधिक ओछे हमले करने के लिए जाने जाते हैं, और खुद प्रधानमंत्री ने पिछले बरसों में महिलाओं के बारे में बहुत से आपत्तिजनक बयान दिए थे। इसके ठीक बाद जब गुजरात में हत्यारों और बलात्कारियों की रिहाई ऐसे दिन को छांटकर की गई, तो उसकी तस्वीरें और उसके वीडियो देखकर लोग हक्का-बक्का रह गए। यहां पर इस बात को समझने की जरूरत है कि चार महीने बाद दिसंबर में गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने हैं, और वहां के पिछले कई चुनाव हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच एक आक्रामक ध्रुवीकरण करके भाजपा ने जीते थे, और 2014 के पहले तक तो नरेन्द्र मोदी ही वहां के कई बार के मुख्यमंत्री थे। ऐसे में अभी हिन्दुस्तान के इतिहास के सबसे चर्चित साम्प्रदायिक हमले के इन ग्यारह गुनहगारों को जिस तरह जेल से छोड़ा गया है, जिस तरह उनका स्वागत हुआ है, उससे लगता है कि यह चुनाव के ठीक पहले का एक ऐसा सरकारी फैसला है जिसका निशाना तात्कालिक ध्रुवीकरण पर है। देश के सबसे मुखर मुस्लिम नेता, असदुद्दीन ओवैसी ने कल से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा, और गुजरात की भाजपा सरकार पर बड़ा तीखा हमला शुरू कर दिया है, और कल ही विश्व हिन्दू परिषद ने उसका बड़ा लंबा आक्रामक जवाब दिया है। मतलब यह कि यह नूरा कुश्ती अगले कुछ महीनों में चुनाव का एक अखाड़ा बनाने में लग गई है। ओवैसी को हम पहले भी भाजपा के चुनाव अभियान में शामियाना खड़ा करने वाला लिख चुके हैं, और आज वे जितने अधिक हमलावर तेवर दिखाएंगे, वह दिसंबर के चुनाव में भाजपा के उतने ही अधिक काम आएगा। जाहिर है कि इस रिहाई से गुजरात की मुस्लिम बिरादरी बहुत बुरी तरह विचलित रहेगी, और गुजरात का इतिहास बताता है कि विचलित मुस्लिम बिरादरी हिन्दुओं के ध्रुवीकरण का काम करती है। इस बात को कुछ हफ्ते पहले उन दो लोगों की गिरफ्तारी से न जोडऩा ठीक नहीं होगा जिन्हें गुजरात दंगों के बाद मोदी सरकार के खिलाफ बागी तेवरों वाला माना गया था क्योंकि वे मुस्लिमों के हक की लड़ाई लड़ रहे थे, या दंगों में मोदी सरकार के रूख को लेकर जिन्होंने बयान दिए थे। सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, और एक रिटायर्ड आईपीएस पुलिस अफसर आर.बी. श्रीकुमार को गिरफ्तार किया गया, और जिला अदालत से उन्हें जमानत देने से मना कर दिया गया है। दिसंबर के चुनावों के पहले कुछ महीने पहले की इन घटनाओं को चुनाव से न जोड़ऩा मुमकिन नहीं है, खासकर तब, जब मोदी की भाजपा चुनाव के वक्त के एक-एक दिन को अपने पक्ष में तय करने की चतुराई रखती है। वह हिन्दुस्तान के किसी मतदान के दिन नरेन्द्र मोदी को नेपाल के मंदिरों में घूमता दिखाती है, तो किसी और मतदान के दिन बांग्लादेश के मंदिरों में। टीवी पर दिन-दिन भर मंदिरों में छाए हुए मोदी भारत की किसी चुनावी आचार संहिता से भी बचे रहते हैं। इसलिए अभी गुजरात में हक्का-बक्का कर देने वाली यह रिहाई पूरी तरह से कानून की भावना के खिलाफ है, केन्द्र सरकार की 2014 की नीतियों के खिलाफ है, और चुनावी ध्रुवीकरण की गारंटी करने वाली है।
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