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तीन तलाक के बाद चर्चा में आया तलाक-ए-हसन
18-Aug-2022 4:27 PM
तीन तलाक के बाद चर्चा में आया तलाक-ए-हसन

भारत में तीन तलाक के मुद्दे के बाद अब तलाक-ए-हसन का मुद्दा उठा है. हालांकि सर्वोच्च अदालत ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत नहीं चाहती कि इसका इस्तेमाल किसी एजेंडे के लिए किया जाए.

    डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट- 

सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक घोषित करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह पहली नजर में अनुचित नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिना किसी कारण इसे एजेंडा नहीं बनाना चाहिए. दरअसल एक मुस्लिम महिला पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर तलाक-ए-हसन के जरिए तलाक की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए इसे महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया था.

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार, 16 अगस्त को कहा था कि प्रथम दृष्टया तलाक-ए-हसन इतना अनुचित नहीं लगता है और इसमें महिला के पास भी "खुला" के रूप में एक विकल्प है.

याचिकाकर्ता पत्रकार बेनजीर हीना ने अपनी याचिका के बारे में डीडब्ल्यू हिंदी से कहा कि वह निजी तौर पर तलाक-ए-हसन की पीड़ित हैं और वे इसे अदालत में चुनौती देकर असंवैधानिक घोषित करवाना चाहती हैं.

हीना का दावा है कि उनके शौहर ने उन्हें खत के जरिए पिछले साल तलाक-ए-हसन दिया, जबकि दोनों साथ नहीं रह रहे थे. तलाक-ए-हसन की एक शर्त यह भी है कि शौहर और बीवी को साथ रहना होगा और इस दौरान सुलह-समझौते की कोशिश की जानी चाहिए.

हीना ने डीडब्ल्यू से कहा, "मुझे जिस तरीके से तलाक-ए-हसन मिला वह एकतरफा तलाक है. मेरी कोई भी सुनवाई नहीं हुई. मुझे अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया."

याचिकाकर्ता का आरोप 

हीना का आरोप है कि पिछले साल उनके शौहर (यूफुफ नकी) और उनकी बहन ने उन्हें घर से निकाल दिया और उसके बाद दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई. हीना कहती हैं 19 अप्रैल 2021 को तलाक-ए-हसन का पहला नोटिस उन्हें खत के जरिए मिला. उनका कहना है कि उनके पति ने जो तलाक-ए-हसन का नोटिस भेजा वह उनके दोस्त और सहयोगी के लेटर हेड पर था. हीना के पति पेशे से वकील हैं. इस साल उन्होंने मई में तलाक-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.

हीना बताती हैं कि याचिका दायर करने के बाद उन्हें दूसरा और तीसरा नोटिस मिला. हीना का दावा है कि दोनों नोटिस में उन पर कई गंभीर आरोप लगाए.

हीना का कहना है कि तलाक के पहले नोटिस पर 30 से अधिक आरोप लगाए गए थे और उन्हें आरोपों को झूठा साबित करने का कोई मौका नहीं दिया गया.

तलाक-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की है उसका स्वागत मुस्लिम धर्म गुरू कर रहे हैं और उनका कहना है कि भारत के संविधान ने सभी धर्मों के पर्सनल लॉ की अनुमति दी है. मुस्लिम धर्म गुरू खालिद रशीद फरंगी महली ने डीडब्ल्यू से कहा, "तलाक-ए-हसन इस्लामी शरीयत का हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर जो टिप्पणी की है वह स्वागत के लायक है."

खालिद रशीद कहते हैं अगर शौहर और बीवी में बन नहीं रही है तो शौहर के पास तलाक-ए-हसन के जरिए रिश्ता खत्म करने का अधिकार है.

इस्लाम में तलाक के तरीके

तलाक-ए-हसन तलाक का एक जरिया है जिसके द्वारा एक मुस्लिम व्यक्ति तीन महीने की अवधि में हर महीने एक बार तलाक का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है. इस दौरान पति और पत्नी में सुलह-समझौते की कोशिश होनी चाहिए. अगर किसी सूरत में समझौता नहीं हो जाता है तो तीसरी बार तलाक कहने पर पति-पत्नी अलग हो जाते हैं.

तलाक देने के और भी तरीके हैं. जैसे कि तलाक-ए-अहसान. इसमें एक ही बार तलाक बोलना होता है, जब पत्नी मेंस्ट्रुअल साइकिल से न गुजर रही हो. इसे शादी खत्म करने का सबसे अस्वीकृत तरीका बताया जाता है. तलाक के बाद पति एक ही घर में पत्नी से अलग रहता है और पत्नी 90 दिन इद्दत में बिताती है. इस अवधि में पति दो गवाहों या अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाकर तलाक वापस ले सकता है.

एक बार में तीन तलाक बोलकर भी शादी तोड़ा जा सकता है लेकिन अब ऐसा करना भारत में गैर कानूनी है. 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन तलाक पर बैन लगाने के लिए संसद में कानून पारित कराया था. इससे पहले 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को बैन कर दिया था.

मुस्लिम महिलाओं के पास भी तलाक लेने के विकल्प हैं. वह खुला के जरिए अपने पति से तलाक ले सकती हैं. इस तलाक में पत्नी को निकाह के वक्त दी गई मेहर की राशि पति को लौटानी होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने हीना की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था, "विवाह एक तरह का करार होने के कारण आपके पास खुला का विकल्प भी है. अगर दो लोग एक साथ नहीं रह सकते, तो हम भी शादी तोड़ने का इरादा न बदलने के आधार पर तलाक की अनुमति देते हैं."

खालिद रशीद कहते हैं कि मुस्लिम महिलाओं को शरीयत के मुताबिक शादी को खत्म करने का अधिकार है और वे खुला के जरिए शादी खत्म कर सकती हैं. 

हीना ने अपनी याचिका में कहा है कि "तलाक-ए-हसन अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करता है. यानी यह प्रावधान समानता के अधिकार, जीवन और स्वच्छंदता के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है."

हीना का कहना है कि वह अपनी याचिका के जरिए उन मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को बचाना चाहती हैं जो इस तरह के तलाक की पीड़ित हैं.

खालिद रशीद कहते हैं, "बेहतर तो यही है कि जिस मजहब के लिए पर्सनल लॉ हैं उसमें किसी तरह का दखल नहीं दिया जाना चाहिए. संविधान के तहत भी सभी को इसका अधिकार है."

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच इस मामले की अगली सुनवाई अब 29 अगस्त को करेगी. (dw.com)

 

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