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इमरान ख़ान ने सलमान रुश्दी पर हमले को लेकर क्या दिया बयान
19-Aug-2022 7:56 PM
इमरान ख़ान ने सलमान रुश्दी पर हमले को लेकर क्या दिया बयान

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के प्रमुख इमरान ख़ान ने लेखक सलमान रुश्दी पर हमले की निंदा करते हुए इसे भयानक और दुखभरा बताया है.

इमरान ख़ान ने ब्रितानी अख़बार 'द गार्डियन' को दिए साक्षात्कार में कहा कि रुश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेज़' को लेकर इस्लामिक दुनिया का गुस्सा समझा जा सकता है, लेकिन इस हमले को सही नहीं ठहराया जा सकता.

रुश्दी पर चाकू से हुए हमले को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि ये भयानक है. रुश्दी एक मुसलमान परिवार से हैं. वो हमारे दिलों में बसने वाले पैगंबर के लिए प्यार, सम्मान और आस्था को जानते हैं. इसलिए गुस्से को समझा जा सकता है, लेकिन जो हुआ आप उसे सही नहीं ठहरा सकते.''

द 'सैटेनिक वर्सेज़' समेत कई किताबों के लेखक सलमान रुश्दी पर 12 अगस्त को एक कार्यक्रम के दौरान चाकू से हमला किया गया था. सलमान रुश्दी की 1988 में प्रकाशित हुई किताब 'द सैटेनिक वर्सेज़' के कुछ हिस्सों पर ईशनिंदा का आरोप है. उनके ख़िलाफ़ फतवा भी जारी हो चुका है.

हालांकि, इमरान ख़ान भी सलमान रुश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेस' की आलोचना कर चुके हैं. उन्होंने क़रीब 10 साल पहले 2012 में कोलकाता पुस्तक मेले में कहा था, ''मसला ये नहीं है कि रुश्दी ने क्या लिखा है. असल मुद्दा ये है कि किसी को भी समाज को तकलीफ़ देने का अधिकार नहीं है.''

इमरान ख़ान के बयान पर सलमान रुश्दी ने ट्वीट किया, ''30 साल पहले 1982 में मेरे दिल्ली लेक्चर में इमरान ख़ान मेरे फ़ैन थे और 100 प्रतिशत धर्मनिरपेक्ष थे. अब मेरा काम उनकी आस्था का अपमान करता है. असली इमरान कौन है?''

भारत-पाकिस्तान ने साधी चुप्पी
लेकिन, सलमान रुश्दी पर हुए हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों से कोई बयान नहीं आया है. सलमान रुश्दी का भारत में ही जन्म हुआ, लेकिन हमले को लेकर यहां से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.

भारत सरकार या भारत में राजनीतिक दलों ने इस घटना पर चुप्पी साध रखी है. यहां तक कि भारत के मुस्लिम समाज के नेताओं और नामचीन लोगों ने भी रुश्दी पर हमले के मामले पर बोलने से परहेज़ ही किया है.

बेंगलुरू में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रुश्दी पर हमले के बारे में पूछे गए सवाल पर कहा था, ''मैंने भी इस बारे में पढ़ा है. मेरा मानना है कि यह एक ऐसी घटना है जिसका पूरी दुनिया ने नोटिस लिया है और ज़ाहिर है इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. ''

जिन कुछ नेताओं ने निजी तौर पर रुश्दी पर हमले की निंदा की है उनमें माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, कांग्रेस सांसद शशि थरूर, पार्टी के मीडिया प्रमुख पवन खेड़ा और शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी शामिल हैं. लेकिन ना बीजेपी और ना मोदी सरकार और ना ही कांग्रेस ने इस पर कोई आधिकारिक बयान दिया है.

रुश्दी की किताब से जुड़ा विवाद
75 साल के सलमान रुश्दी को हमले के तुरंत बाद अस्पताल ले जाया गया. उनकी हालत बहुत नाज़ुक बताई जा रही थी. लेकिन, दो दिन तक वेंटिलेटर पर रखने के बाद वेंटिलेटर हटा लिया गया है और वो बात करने में सक्षम हैं.

उन पर हमले के अभियुक्त हादी मतर ने ख़ुद को निर्दोष बताते हुए आरोप को स्वीकार नहीं किया है.

सलमान रुश्दी भारत में पैदा हुए और फिर ब्रिटेन चले गए और अब अमेरिका के नागरिक हैं. 1988 में 'सैटेनिक वर्सेज़' के प्रकाशन के बाद जो विवाद हुआ उसका भी भारत से गहरा नाता है. उस वक्त भारत में राजीव गांधी की सरकार थी. उनकी सरकार ने 'सैटेनिक वर्सेज़' को प्रतिबंधित करने का फ़ैसला लिया था. इस तरह भारत इस किताब को बैन करने वाला पहला देश बन गया था.

उस वक्त ख़ुद रुश्दी ने राजीव गांधी को चिट्ठी लिख कर किताब को प्रतिबंधित करने पर अपनी नाख़ुशी ज़ाहिर की थी. 1990 में लिखे गए एक लेख में उन्होंने कहा,'' किताब बैन करने की मांग मुस्लिम वोटों की ताक़त का पावर प्ले है. कांग्रेस इस वोट बैंक पर निर्भर रही है और इसे खोने का जोख़िम नहीं ले सकती.''

80 के दशक के उत्तरार्ध में आई इस किताब को लेकर ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों में विरोध प्रदर्शन हुए थे.

किताब के प्रकाशन के एक साल बाद 1989 में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़ुमैनी ने उनकी हत्या का फ़तवा जारी कर दिया था. इसके बाद रुश्दी एक दशक तक अज्ञातवास में रहे. हालांकि, इस दौरान उन्हें सुरक्षा दी जा रही थी.

ईरान ने 1998 में कहा कि वह रुश्दी की हत्या का समर्थन नहीं करेगा, लेकिन फ़तवा अपनी जगह बना रहा.

पांच दशकों से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय रुश्दी अपने काम की वजह से धमकियां और जान से मारने की चेतावनियां झेलते रहे हैं.

सलमान रुश्दी की कई किताबें बेहद लोकप्रिय हुई हैं. इनमें उनकी दूसरी किताब 'मिडनाइट चिल्ड्रन' भी शामिल है जिसे साल 1981 का बुकर पुरस्कार मिला था. (bbc.com)

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