संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सूरज की रौशनी पर टिकी एक नई तकनीक मिटा सकती है दुनिया की भूख
21-Aug-2022 1:31 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  सूरज की रौशनी पर टिकी एक नई तकनीक मिटा सकती है दुनिया की भूख

एक ताजा वैज्ञानिक कामयाबी मिली है जिसमें सोयाबीन के पौधों को सूरज की रौशनी को बेहतर तरीके से सोखने के लायक तैयार किया गया है, और इससे उन पौधों से फसल 20 से 24 फीसदी तक अधिक मिली है। वैज्ञानिकों का यह मानना है कि बाकी पौधों में भी सूरज की रौशनी से खुराक पाने की फोटो सिंथेसिस की प्रक्रिया इसी तरह की रहती है, और ऐसी कामयाबी उन फसलों में भी पाई जा सकती है। अमरीका के एक विश्वविद्यालय ने अपने नए शोध के ये नतीजे अभी प्रकाशित किए हैं, और इन्हें दुनिया की भूख मिटाने के लिए एक सबसे बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। सूरज की रौशनी से पौधों में अनाज या दूसरी उपज प्रभावित होती है, और सोयाबीन में जेनेटिक फेरबदल करके यह कामयाबी पाई गई है। लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगशाला से निकलकर ये नतीजे जब तक खेतों तक पहुंचेंगे, और लोगों के खाने में शामिल होंगे तब तक हो सकता है कि इसमें कुछ और सकारात्मक या नकारात्मक बातें सामने आएं, लेकिन आज जब दुनिया में चारों तरफ हर किस्म की निराशा की खबरें आ रही हैं, यह एक खबर भुखमरी की शिकार इस धरती पर एक उम्मीद जगाने वाली है।

आज बहुत से लोगों को जीएम फसलों से परहेज है, और तरह-तरह की आशंका भी है। जेनेटिकली मॉडीफाईड फसलों का कारोबार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथ में है, और बहुत से मामलों में किसानों को हर फसल के लिए नए बीज खरीदने पड़ते हैं, जिसकी लागत अधिक रहती है। बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि जीएम बीजों से दुनिया की खेती पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक नाजायज काबू हो जाएगा। हम ऐसी किसी भी तरह की फिक्र को खारिज किए बिना केवल वैज्ञानिक नजरिये से यह देख रहे हैं कि किसी तकनीक से अगर फसल 20 फीसदी या उससे अधिक बढ़ सकती है, तो यह दुनिया की भूख मिटाने में एक बहुत कारगर कदम होगा। हम अपने आसपास यह देखते हैं कि एक वक्त जो देसी अमरूद मिलते थे, वे अब नए किस्म के पौधों से निकलने वाले बड़े-बड़े अमरूद रहते हैं, जिनका स्वाद पुराने देसी अमरूदों जितना अच्छा नहीं रहता है, लेकिन वे धीरे-धीरे बिकने लगे हैं, और लोगों के बीच उसकी जगह बन गई है। यह तो फलों की बात हुई, जिसमें छोटे आकार के देसी पपीते के मुकाबले दो-तीन गुना वजन के नए हाईब्रीड पपीते आने लगे हैं, और भी कई फल-सब्जियों का ऐसा ही नया अवतार सामने आया है।

इससे परे जब अनाज की बात आती है, तो आज दुनिया में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा करीब 70 करोड़ लोगों के भूखे रहने का अंदाज है। यह दुनिया की आबादी का करीब 9 फीसदी है, और यह संख्या बढ़ती चल रही है। कई देश तो इस बुरी तरह भुखमरी के शिकार हैं कि अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों ने अब आबादी के कुछ हिस्से को ही पेट भर अनाज देना शुरू किया है कि पूरी आबादी को तो बचाना मुमकिन नहीं है, इसलिए आबादी के कुछ हिस्से को ही पेट भर अनाज देकर बचा लेना बेहतर है। कुछ दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों का अंदाज संयुक्त राष्ट्र से भी अधिक खराब है, और 2022 का एक अनुमान करीब 83 करोड़ लोगों के भूखे रहने का है, और यह दुनिया की आबादी का 10 फीसदी है। जब भूख के ऐसे आंकड़ों को देखा जाए तब यह समझ आता है कि अगर किसी तरह से अनाज की उपज 20 फीसदी बढ़ाई जा सकती है, तो उससे दुनिया के भूखे पेटों को भर पेट खाना दिया जा सकता है। अभी यहां पर हम इस पर जाना नहीं चाहते कि ऐसे गरीब देशों के पास अनाज को खरीदने की ताकत कहां से रहेगी। आज भी संयुक्त राष्ट्र सहित कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन लगातार बहुत से देशों में भूखे लोगों को अनाज पहुंचा रहे हैं, और आज तो एक दिक्कत यह भी है कि रूस और यूक्रेन के बीच जंग के चलते हुए अनाज की उपलब्धता ही घट गई है। इसलिए अगर सोयाबीन पर किया गया यह प्रयोग, वैज्ञानिकों की उम्मीद के मुताबिक अगर बाकी फसलों पर भी कामयाब होता है, तो इससे दुनिया को एक बहुत बड़ी मदद मिल सकती है, दुनिया भुखमरी से उबर सकती है।

हिन्दुस्तान के कुछ पीढ़ी पहले के लोगों को याद होगा कि किस तरह हरित क्रांति के पहले तक यहां पर अनाज की कमी थी, और हिन्दुस्तान 1960 के पहले अमरीका के साथ हुए एक खाद्यान्न समझौते पीएल480 (पब्लिक लॉ 480) के तहत अनाज पाता था, और लोग अमरीकी गेहूं के लाल होने, और उससे रोटियां बहुत कड़ी बनने की शिकायत करते थे, लेकिन वैसी मदद से ही उस वक्त हिन्दुस्तानी राशन दुकानों के रास्ते लोगों का पेट भरता था, और लोग भूखे मरने से बचते थे। जब धीरे-धीरे हिन्दुस्तान में अनाज का उत्पादन बढ़ा, और यह देश अनाज के मामले में दुनिया के दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रह गया, तब यहां पर भुखमरी धीरे-धीरे खत्म हुई। लेकिन आज दुनिया के दर्जनों देश भुखमरी के शिकार हैं, और जहां पर भूख से मौत हो रही है, वहां पर जिंदा बचे हुए लोगों में भी कुपोषण का कैसा बुरा हाल होगा, यह अंदाज लगाया जा सकता है। इसलिए आज अगर कोई वैज्ञानिक तरीका ऐसा निकल रहा है जो कि महज सूरज की रौशनी के बेहतर इस्तेमाल से उपज बढ़ा सकता है, तो यह बहुत बड़ी कामयाबी है।

जाहिर है कि एक अमरीकी विश्वविद्यालय की ऐसी खोज अमरीका की सरकार या कंपनियों के रास्ते दुनिया भर में तेजी से फैल सकती है, और हिन्दुस्तान कृषि अनुसंधान में एक विकसित देश है। आने वाले बरसों में हम हिन्दुस्तानी खेतों में उपज बढऩे का सपना देख सकते हैं, और आज हिन्दुस्तानी किसान जिस तकलीफ से इस काम को करता है, उसे भी ऐसी नई तकनीक एक नई राहत दे सकती है। हम खबर आने के दो दिन के भीतर ही इतनी सारी उम्मीदें लिख रहे हैं, लेकिन उम्मीदों पर ही तो दुनिया जिंदा है।
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