संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आम हो या खास, वीडियो और सोशल मीडिया दबाव से कार्रवाई आसान हुई है..
22-Aug-2022 5:56 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  आम हो या खास, वीडियो और सोशल मीडिया दबाव से कार्रवाई आसान हुई है..

Photo : Twitter

पिछले दस दिनों में हिन्दुस्तान की राजधानी दिल्ली के आसपास के इलाकों से निकले कुछ ऐसे वीडियो आए हैं जिनमें संपन्न तबके की महिलाएं अपनी दौलत और अपनी ताकत का दंभ दिखाते हुए रिहायशी इलाकों के सुरक्षा कर्मचारियों को पीट रही हैं। इसके साथ-साथ वे उन्हें ऐसी गंदी गालियां भी दे रही हैं जिन्हें आमतौर पर मर्दों की जुबान से ही सुना जाता है। ये महिलाएं सिर्फ संपन्नता के नशे में थीं या उन्होंने कोई और भी नशा कर रखा था, इसे वे ही जानें। लेकिन भारत की आम संस्कृति में महिला का सार्वजनिक रूप से ऐसा अश्लील बर्ताव करना भी अटपटा लगता है, और जब संपन्नता की गुंडागर्दी छोटे और मजबूर कर्मचारियों पर हिंसा करती है, तो वह गैरकानूनी तो होता ही है। ताजा मामले में नोएडा में सुरक्षा कर्मचारी को पीटने वाली और अश्लील बर्ताव करने वाली, वीडियो पर कैद महिला को गिरफ्तार करके 14 दिन की हिरासत में भेज दिया गया है। यहां पर हम मर्दों के किए हुए ऐसे ही जुर्म की बात नहीं कर रहे हैं, जिनके बारे में अक्सर ही लिखना हो जाता है, और वे बहुत आम भी हैं। एक महिला का मर्दों के साथ ऐसा करना कोई अतिरिक्त बड़ा जुर्म नहीं है, लेकिन इसमें जिस बात को समझना चाहिए वह संपन्नता से जुड़ी हिंसा की है। एक अकेली महिला तीन-चार वर्दीधारी सुरक्षा कर्मचारियों को मां-बहन की गालियां देते हुए धक्के दे रही है, और अधिक हिंसा करने की धमकी दे रही है, तो उस हिंसक अहंकार को जरूर समझना चाहिए।

आज हिन्दुस्तान में मोबाइल फोन के कैमरों की मेहरबानी से ऐसे सुबूत जुट जा रहे हैं जो कि तरह-तरह के जुर्म, और ज्यादतियों को साबित करते हैं। अगर ये न रहें तो संपन्न तबके के लोगों के खिलाफ छोटे कर्मचारी भला कौन सी शिकायत कहां कर सकते हैं, और उसे किस तरह से साबित कर सकते हैं? इस हिसाब से अगर देखें तो एक छोटे से सामान ने आज समाज के सबसे कमजोर लोगों को भी एक अभूतपूर्व ताकत दे दी है, और वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की कुछ उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन इन दो-चार महिलाओं के जो वीडियो सामने आए हैं, उनमें से एक वीडियो में वह इलाके के कुत्ते भगाने के खिलाफ सुरक्षा कर्मचारियों को लाठी से पीट भी रही है, और उसे धमकी भी दे रही है कि वह मेनका गांधी को फोन करने वाली है। लोगों को याद होगा कि एक-दो बरस पहले मेनका गांधी के एक सरकारी पशु चिकित्सक को फोन पर धमकाने की रिकॉर्डिंग सामने आई थी जिसमें वे उस सरकारी डॉक्टर को सेक्स से जुड़ी बड़ी असंभव किस्म की हरकतों वाली धमकियां दे रही थीं। मेनका गांधी केन्द्रीय मंत्री और सांसद रहते हुए भी इस तरह की जुबान और धमकियों के लिए जानी जाती हैं, और इसीलिए खुद हिंसा कर रही एक संपन्न महिला गंदी गालियां बकते हुए मेनका गांधी को भी बीच में लाने की बात कहती है।

कुल मिलाकर यह संपन्न तबके का एक ऐसा हिंसक अहंकार है जो कि संपन्न बस्तियों में अलग-अलग कई शक्लों में देखने मिलता है। बीच-बीच में सोशल मीडिया पर महानगरों के कई ऐसे नोटिस दिखते हैं जिनमें बहुमंजिली इमारतों में काम करने वाले लोगों के लिफ्ट इस्तेमाल करने पर मनाही लिखी रहती है। अब पांच-दस मंजिल ऊपर बसे घरों तक काम वाले लोग किस तरह जाएंगे, किस तरह सामान ले जाएंगे, यह आसानी से समझा जा सकता है। ऐसी इमारतों में जब कामगारों या बाहर से पार्सल लेकर आने वाले लोगों के लिफ्ट इस्तेमाल करने पर रोक रहती है, तो वह मानवाधिकारों के खिलाफ रहती है। हमारा ख्याल है कि इन प्रदेशों के मानवाधिकार आयोगों को ऐसे किसी भी नोटिस पर तुरंत कार्रवाई करना चाहिए, और इमारत का मैनेजमेंट देखने वालों पर जुर्माना लगाना चाहिए।

आम जिंदगी में यही देखने में आता है कि जैसे-जैसे संपन्नता बढ़ती है, वैसे-वैसे इंसानियत घटने लगती है। ये महिलाएं अपने महिला होने की वजह से हिंसा नहीं कर रहीं, ये अपनी संपन्नता की बददिमागी में हिंसा कर रही हैं, और इसे उनकी संपन्नता से ही जोडक़र देखना चाहिए। फिलहाल तो ऐसी एक महिला की गिरफ्तारी से सभी किस्म के संपन्न औरत-मर्दों को थोड़ी सी समझ मिल सकती है कि उनकी बदसलूकी की वीडियो रिकॉर्डिंग उन्हें जेल भेज सकती है, और सोशल मीडिया पर उन्हें बदनाम तो कर ही सकती है। कमजोर तबकों को अपने बराबरी के लोगों का साथ देने के लिए ऐसे वीडियो सुबूत जुटाने की कोशिश करनी चाहिए, जहां कहीं सरकारी अमला ज्यादती करे, या कोई भी ताकतवर अमला कमजोर पर जुल्म करे, उसकी रिकॉर्डिंग करके उसे फैलाना चाहिए, और पुलिस तक भी पहुंचाना चाहिए। अगर ऐसे सुबूत न रहें तो भला कमजोर की बात का कौन भरोसा करे? करोड़ों रूपये के फ्लैट में रहने वाले अरबपति के खिलाफ एक मामूली सुरक्षा कर्मचारी की शिकायत पर शायद जिंदगी भर कोई पुलिस कार्रवाई न करती, लेकिन वीडियो सुबूत सोशल मीडिया पर फैल जाने के बाद इन दोनों के मिलेजुले दबाव ने पुलिस से कार्रवाई करवाई। इसलिए आम लोगों को इन दोनों चीजों की ताकत को अच्छी तरह समझना चाहिए, ऑडियो-वीडियो सुबूत भी जुटाने चाहिए, और उन्हें सोशल मीडिया पर फैलाना भी चाहिए।

अब आम और संपन्न लोगों की इस चर्चा के बीच एक खास आदमी की चर्चा और हो जानी चाहिए। राजस्थान के एक भूतपूर्व भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वे लोगों के बीच में गर्व से कहते दिख रहे हैं कि उन्होंने अब तक पांच (लोगों को) मारे हैं, लालवंडी में मारा, चाहे बहरोड़ में मारा, अब तक पांच मारे हैं। आहूजा लोगों को कह रहे हैं कि मैंने खुल्लम-खुल्ला छूट दे रखी है कार्यकर्ताओं को कि जो गाय को मारते दिखे, उसे मारो, हम जमानत भी करवाएंगे, बरी भी करवा देंगे। आहूजा जिन दो गांवों का जिक्र कर रहे हैं, उनमें लालवंडी में 2018 में रकबर खान, और बहरोड़ में पहलू खान की भीड़त्या की गई थी। कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इस वीडियो सुबूत पर कार्रवाई करने की मांग की थी, और राजस्थान पुलिस ने अभी जुर्म दर्ज कर लिया है। इस सुबूत को देखते हुए राजस्थान भाजपा ने पार्टी को अपने पूर्व विधायक के बयान से अलग कर लिया है, और कहा है कि पार्टी कानून अपने हाथ में लेने के पक्ष में नहीं है। कुल मिलाकर बात यह है कि वीडियो सुबूतों के आधार पर कई तरह की कार्रवाई मुमकिन है, और पुलिस को इसका इस्तेमाल करते हुए तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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