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रायपुर, 21 अगस्त। ‘‘परिवार में कैसे जीना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीराम से सीखो। दुनिया में कैसे जीना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीकृष्ण से सीखो और मुक्ति का मार्ग कैसे हासिल करना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीमहावीर से सीखो। हम लोग दिमाग में सोच बना लेते हैं- ये मेरे भगवान, ये तेरे भगवान।
भगवान किसी धर्म के नहीं, भगवान तो सबके और पूरी मानवता के होते हैं। हर धर्म के भगवान और गुरुओं ने जो भी बातें कहीं, वे पूरी धरती के लिए, अखिल ब्रह्माण्ड के लिए और पूरी मानवता के लिए कहीं।
आगमों में जो जीने की बातें कहीं गर्इं हैं तो वो केवल जैनियों के लिए नहीं कही गर्इं और गीता में जो बातें कहीं गर्इं वे केवल हिंदुओं के लिए नहीं कही गर्इं हैं, पूरी मानवता के लिए कहीं गर्इं हैं।
दुनिया के सारे शास्त्रों में अच्छी बातें होती हैं, तय हमें करना है कि हम श्रोता बनकर सुनते हैं, कि सरोता बनकर। श्रद्धा और विवेकपूर्वक जो जीवन में क्रियाओं को संपादित करता है उसका नाम श्रावक है।
जैन वो है जो जयनापूर्वक, अहिंसापूर्वक जीवन जीता है, जैन वो है जो इंसानियत के साथ जीता है और जो नवकार मंत्र का जाप करने वाला होता है।
भगवान श्रीमहावीर कहते हैं- जन्म से कोई भी व्यक्ति न तो जैन होता है, न ब्राह्मण होता है, न क्षत्रिय होता, न वैश्य होता है और न ही शूद्र। आदमी जो भी होता है अपने कर्म से होता है। केवल अपने नजरिए को बड़ा करना होता है।
ये प्रेरक उद्गार राष्ट:संत श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म सप्ताह के पांचवे दिन शुक्रवार को ‘एक घंटे में समझें आगमों और गीता का रहस्य’ विषय पर व्यक्त किए।
भक्तिगीत ‘रोज थोड़ा-थोड़ा प्रभु का भजन कर लैं, मुक्ति का प्यारे तू जतन कर लै...’ के मधुर गायन से अपूर्व भक्तिभाव जागृत करते हुए उन्होंने कहा कि एक ऐसे देवदूत का आज जन्म दिन है जिनका जन्म तो कारागार में हुआ था।
और जब दुनिया से गए तो अपने जीवन के दिव्य गुणों की छाप छोड़ इस दुनिया के दिलों पर राज करके चले गए। जीवन इसी का नाम है कि उन्होंने पूरी जिंदगी मुस्कुराते-हंसते हुए, खिलते और आनंद से जीकर और धरती को स्वर्ग बनाकर जिया। और हाथ में एक ऐसी चीज ले ली, वो थी बांसुरी। बांसुरी बड़ी गजब की चीज होती है, उसकी पहली खासियत होती है- बिना बुलाए वो कभी बोलती नहीं। उसकी दूसरी खासियत है- वो जब भी बोलती है तो मीठी बोलती है। प्रकृति से उन्हें कैसा प्रेम भरा रहा कि सिर पे लगाया तो कोई सोने का मुकुट नहीं लगाया, मोर पंख लगा दिया जिससे प्रकृति का लगाव बना रहा। हाथ में जिंदगी में कभी धनुष-बाण नहीं उठाया, हाथ में बांसुरी लेकर हमेशा धरती पर मधुर तान बिखेरने में लगे रहे।
संतप्रवर ने आगे कहा कि श्रीकृष्ण का जन्म ऐसे कुल में हुआ, जहां उन्होंने दोनों परम्पराओं में राज किया। यह कहते हुए गौरव है कि भगवान श्रीनेमिनाथ और भगवान श्रीकृष्ण दोनों सगे चचेरे भाई थे। दोनों ने ही भगवत्ता को हासिल किया, एक जैन धर्म के तीर्थंकर हुए और एक हिन्दू धर्म के भगवान बने। और श्रीकृष्ण की खासियत तो देखो वे हिन्दू धर्म के तो भगवान हैं और आने वाली चौबीसी में वे जैन धर्म के भी भगवान बनने वाले हैं। ये ऐसे महापुरुष हैं, जिन्होंने धरती को हंसता-खिलता, मुस्कुराता हुआ जीवन दिया।
आज की तारीख में धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र आदमी के भीतर है
संतप्रवर ने कहा कि अगर हम सभी लोग अपने नजरिए को बड़ा लेकर चलते हैं तो तय मानकर चलना दुनिया में कोई भी धर्म में भेद नहीं है, केवल हमें हमारी मानसिकता को पॉजीटिव बनाना है। दुनिया के हर धर्म में अच्छी बातें कहीं गर्इं हैं, जिन्हें हमें सीखने की सतत् कोशिश करनी चाहिए। गीता का जन्म धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र में हुआ था। आज की तारीख में भी धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र है और वह कोई बाहर नहीं आदमी के अपने भीतर है। आज की तारीख में भी महाभारत है, वह कहीं बाहर नहीं आदमी के अपने ही घर, मकान, जिंदगी और दुनिया में है। शांतिदूत बनकर भगवान कृष्ण गये थे, उन्होंने कभी-भी युद्ध की प्रेरणा नहीं दी, वे तो हमेशा कहा करते थे- जंग केवल एक मसला है, जंग क्या खाक मसलों का समाधान करेगी। इसीलिए शमां जलती रहे तो बेहतर है, हमारे-तुम्हारे घर में शांति बनी रहे तो बेहतर है। दुनिया में कभी भी लड़ाई और जंग से मसलों का हल नहीं होता, मसलों का हल जब भी होता है तो प्रेम और शांति से होता है।
गीता की मानवता को दी गर्इं प्रेरणाएं
संतश्री ने बताया कि गीता की मानवता को तीन प्रमुख प्रेरणाएं हैं- उनमें पहली है निष्काम कर्मयोग। बिना किसी कामना के जीवन में कर्म करते रहो, ये मत सोचो कि मेरे काम से मेरा समाज में नाम हुआ या नहीं, मेरा सम्मान-यश हुआ या नहीं। क्योंकि जिंदगी में सच्चा कार्यकर्ता वही होता है जिसका कार्य तो दिखता है पर कर्ता कभी नहीं दिखता। गीता का अखिल मानवता को यह संदेश है कि हर व्यक्ति कर्मशील रहे वह कभी भी निठल्ला होकर न बैठ। मरने से पहले आदमी को कभी बूढ़ा नहीं होना चाहिए। कर्म किए जा फल चिंता मत कर रे इंसान, ये है गीता का ज्ञान। जिंदगी में कर्मयोग से कभी जी मत चुराओ। जिंदगी में वो नहीं हारता जो हार जाता है, जिंदगी में वो हारता है जो हार मान जाता है। क्योंकि हर हार में जीत छिपी हुई है। लगन से आदमी लगा रहा तो आज नहीं तो कल वह परिणाम जरूर पाता है लेकिन जिंदगी में वो आदमी क्या परिणाम पाएगा जो कभी लगे रहने को भी तैयार नहीं होता। हमेशा याद रखें-शरीर श्वांस से चलता है पर जिंदगी में आदमी आत्मविश्वास से चलता है। गीता का हमें दूसरा मार्गदर्शन है- ज्ञानयोग, अर्थात् ज्ञान का पक्ष हमारा सदा मजबूत रहना चाहिए। जिंदगी में आदमी को जैसे ही जीवन जीने का विवेक मिल जाता है फिर कभी वह गलत राहों पर नहीं चलता। इसीलिए हमेशा जीवन में कम से कम रोज आधे घंटा अच्छे शास्त्रों का अध्ययन जरूर करना चाहिए। गीता की तीसरी महान प्रेरणा है- भक्ति योग। मरने के वक्त आत्मा के साथ कुछ भी जाने वाला नहीं है केवल भगवान की भक्ति ही साथ जाने वाली है।