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रायपुर, 23 अगस्त। ‘‘संसार में रहते हुए भी निर्मल जीवन जीने के मंत्र यही हैं कि जो भी धन कमाएं वह न्यायोचित रूप या रीति से कमाएं। दूसरा- हमारा जीवन शीलवान हो। तीसरा- अपना जीवन हमेशा सदाचार मय जीएं।
चौथा- संगत हमेशा अच्छी रखें। पांचवा- जीवन में सदा मातृ-पितृ भक्ति और सेवा करें। छठवां- प्रतिदिन धर्म का श्रवण करें- अर्थात् अच्छा देखें अच्छा सुनें अच्छा बोलें और अच्छा सोचें। संसार में रहते हुए भी निर्मल जीवन जीने का सातवां मंत्र है- अतिथि की सेवा और जरूरतमंद की मदद करें।
आठवां है- अपने जीवन को हमेशा दुराग्रह रहित जीना चाहिए। संबंधों में सदा मधुरना बनाए रखना चाहते हैं तो कहना मनवाने की आदत मत डालो, कहना मानने की आदत डालो। छोटी-छोटी बातों पर दुराग्रह करने की बजाय अगर हम थोड़े-से उदार बन जाते हैं, एक-दूजे के विचारों के प्रति पॉजीटिव बन जाते हैं तो हमारे हर संबंध सदा टिके रहते हैं, जीवन में उनके आनंद और शांति होती है।’’
ये प्रेरक उद्गार राष्ट:संत श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म सप्ताह के छठवें दिन शनिवार को व्यक्त किए। ‘गृहस्थ में कैसे जिएं आध्यात्मिक जीवन’ विषय पर व्यक्त किए।
भावगीत ‘जंगल में जोगी रहता है ऊँ प्रभु ऊँ, कभी हंसता है कभी रोता है, दिल उसका कहीं न फंसता है, तन-मन में चैन बरसता है।।...’ के मधुर गायन से धर्मसभा का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि हर व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि वह साधु बन जाए, साधु सा जीने के लिए वो सोच तो सकता है।
भगवान कहते हैं कि जीवन को जीने के दो आध्यात्मिक तरीके हैं- एक संत बनकर अपनी आध्यात्मिक साधना करें और दूसरा- संसार में रहते हुए जल कमल वत् निर्लिप्त और शांत जीवन जीकर भी गृहस्थ संत बना रहे। हमारे शास्त्रों में वर्णन है कि कुछ गृहस्थ ऐसे हुए या हैं जिन्होंने संत से भी श्रेष्ठ जीवन जिया है। श्रीमद् राजचंद्र जैसे महापुरुष इस बात के लिए हमारे सामने उदाहरण हैं। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी आत्म साधना की ऊंचाइयों को उन्होंने हासिल किया है।
संसार में रहना बुरा नहीं है, लेकिन अपने भीतर संसार को बसा लेना बस यहीं से बुराई शुरू हो जाती है।
कमल की तरह जो संसार में निर्लिप्त जीवन जी रहा है और मुक्ति का भाव अंतरहृदय में निरंतर चलता रहता है तो आदमी का संसार में रहना भी मुक्ति के करीब जाना है।
त्यागी मरने के बाद भी पूजे जाते हैं
संतप्रवर ने कहा कि एक बात तो तय है कि इस दुनिया में जीते-जी तीन तरह के लोग पूजे जाते हैं। पहले वे जिनके पास सत्ता है, दूसरे वे हैं जिनके पास समृद्धि है और तीसरे वे जिनके पास सौंदर्य है। सत्ताशील, समृद्धिशील और सौंदर्यवान ये केवल जीते-जी पूजे जाते हैं पर त्यागी मरने के बाद भी सदियों तक पूजे जाते हैं। वे दुनिया में सदा अजर-अमर रहते हैं। जितना जरूरी जीवन में धन है उतनी ही जरूरी जीवन में नैतिकता है। नैतिकता भी जीवन का सबसे बड़ा धन है। जिसके पास नैतिकता का धन है वह दुनिया में रहेगा तब भी पूजा जाएगा और चला जाएगा तब भी पूजा जाएगा। जिसके घर में अनुचित मार्ग से धन आया है तो वह बाहर निकलने के दस बहाने खड़े कर देगा, कभी डॉक्टर तो कभी पुलिस, वकील और कभी प्रशासन के बहाने वह चला जाएगा। बहाने बदलते रहेंगे पर जाने के रास्ते उसके चालू रहेंगे। जीवन में जो भी धन कमाएं वह न्यायोचित रूप से कमाएं।
जीएसटी को अपने जीवन में ले आएं
संतश्री ने कहा कि जीएसटी ये केवल व्यापार के लिए लागू नहीं होता है। ये हमारे जीवन की व्यवस्था के लिए भी लागू होता है। जीएसटी का पहला अक्षर जी हमें कहता है अपनी थिंकिंग को हमेशा गुड रखो, दूसरा अक्षर एस कहता है हमेशा सिम्पल लिविंग हो और तीसरा अक्षर- टी हमें कहता है टेंशन फ्री लाइफ जियो। जो आदमी सादा जीवन-उच्च विचार को जिया करता है वह हमेशा टेंशन फ्री लाइफ जीता है। अपनी जिंदगी को हमेशा टेंशन फ्री रखो। की फरक पेंदा... इसे अपनी जिंदगी का मंत्र बना लो। क्या फर्क पड़ता है, अगर मनचाहा हो गया तो भी ठीक है और अगर न हुआ तो भी ठीक है। अतिथि की सेवा के साथ-साथ हर गृहस्थ को चौबीस घंटे में एक बार किसी को अपनी ओर से जरूर कुछ देना चाहिए। क्योंकि गृहस्थ के लिए दान से बढक़र और कोई सरल धर्म नहीं है।