संपादकीय
कुछ दिन पहले जापान में एक चुनाव प्रचार में लगे हुए वहां के एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री शिंजो एब पर एक नौजवान ने सार्वजनिक जगह पर ही घरेलू बनाई बंदूक से हमला कर दिया था, और इन्हीं जख्मों से शिंजो की मौत हो गई थी। अब खबर आई है कि इस हत्यारे ने इसलिए कत्ल किया था कि शिंजो जापान के एक विवादित धार्मिक सम्प्रदाय, यूनिफिकेशन चर्च से जुड़े हुए थे, और हत्यारे की मां ने अपनी पूरी दौलत चर्च को दान कर दी थी, और इससे वह भयानक गरीबी का शिकार हो गया था। अब जब हत्यारे के कम्प्यूटर से यह चिट्ठी मिली है तो इस चर्च की तरफ लोगों का ध्यान गया है, और यह खबर भी सामने आई कि जापान के मौजूदा प्रधानमंत्री फुकियो किशिदा ने हाल ही में अपने कई मंत्रियों को इस वजह से बर्खास्त कर दिया है कि वे इसी विवादास्पद यूनिफिकेशन चर्चा से जुड़े हुए थे।
ईसाई धर्म के तहत बहुत से अलग-अलग किस्म के सम्प्रदायों वाले अलग-अलग चर्च रहते हैं, इनकी रीति-नीति अलग रहती है, और इनके धार्मिक संस्कारों में भी फर्क रहता है। कुछ देशों में तो इस किस्म के चर्च भी हैं जो कि पूरी तरह से अंधविश्वासों पर भरोसा करते हैं, और वहां की प्रार्थना सभाओं में लोग अजगर और सांप लेकर नाचते हैं। यूनिफिकेशन चर्च नाम का यह नया धार्मिक आंदोलन दक्षिण कोरिया के सियोल में 1954 में शुरू हुआ और इसके तीस लाख सदस्य बताए जाते हैं। कोरिया और जापान बौद्ध धर्म से भी जुड़े हुए देश हैं, लेकिन इस ईसाई चर्च की कुछ नीतियों की वजह से इसे खतरनाक सम्प्रदाय भी माना जाता है। विकीपीडिया की जानकारी के मुताबिक यह चर्च राजनीति में खुलकर हिस्सा लेता है, यह घोर साम्यवादविरोधी चर्च है, और यह शैक्षणिक, राजनीतिक, और कारोबारी संगठनों से भी जुड़ा रहता है। यह चर्च उत्तर और दक्षिण कोरिया को एक करने के राजनीतिक अभियान में भी लगे रहता है, और यह अपने कोरियाई और जापानी अनुयाईयों के बीच बड़े-बड़े सामूहिक विवाह करवाता है ताकि दोनों देशों के बीच एकता बढ़ सके।
लेकिन इस चर्च पर अधिक लिखने का हमारा इरादा नहीं है। हम सिर्फ एक ऐसी खतरनाक नौबत के बारे में लिखना चाहते हैं जिसकी राजनीतिक सरगर्मी से उसके धार्मिक पहलू का नुकसान हो रहा है, और उसके साथ संबंधों को लेकर एक देश की सत्तारूढ़ पार्टी तोहमतें झेल रही है, और उसके मंत्रियों को बर्खास्त करना पड़ रहा है। और तो और अभी कातिल का शिकार बने पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो एब के भाई को भी मंत्री पद खोना पड़ा क्योंकि जनता इस चर्च को लेकर बौराई हुई है। जापान की इन बातों से दुनिया के बाकी देशों को भी सबक लेना चाहिए कि धर्म और राजनीति का घालमेल लोगों को कहां ले जा सकता है। अभी तक हमने इस्लामिक आतंकी संगठनों की दुनिया भर में हिंसक वारदातें देखी हैं, और म्यांमार और श्रीलंका जैसे देशों में बौद्ध लोगों की की गई हिंसा के शिकार मुस्लिमों और तमिलों को भी देखा है। हिंदुस्तान में हिंदू हिंसक संगठनों की जगह-जगह की जा रही हिंसा बीच-बीच में सामने आते ही रहती है। इजराइल में यहूदियों की कट्टरता पूरी तरह से फिलिस्तीन पर हो रहे जुल्मों के साथ रहती है।
दुनिया में धर्म का इतिहास हमेशा से हिंसक रहा है। एक ही धर्म के भीतर अलग-अलग सम्प्रदायों के लोग एक-दूसरे को मारने में भी लगे रहते हैं। ईरान से लेकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक हर कहीं मुस्लिमों के बीच एक-दूसरे को सम्प्रदायों के नाम पर मारने की होड़ लगी रहती है। हिंदुस्तान का पुराना इतिहास बताता है कि किस तरह अपने आप के शांतिप्रिय होने का दावा करने वाले हिंदू और बौद्ध सम्प्रदायों के बीच एक-दूसरे के सिर काटने का मुकाबला चलता था। इसलिए आज जब जापान के इन ताजा विवादों से यह बात सामने आ रही है कि किस तरह धर्म और राजनीति, धर्म और कारोबार का घालमेल न सिर्फ जानलेवा हो सकता है, बल्कि वह देश के लोगों के भीतर ऐसे धर्म के लिए नफरत भी खड़ी कर सकता है।
खासकर हिंदुस्तान के संदर्भ में इस बात को समझने की जरूरत है क्योंकि यहां पर आज सत्ता की मेहरबानी से, हिंदुत्व के नाम पर कई तरह की हिंसा चल रही है, देश में हिंदू-मुस्लिम विभाजन किया जा रहा है, मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार का फतवा दिया जा रहा है, हिंदू धर्म और योग के नाम पर देश का एक सबसे बड़ा कारोबार खड़ा किया जा चुका है। भारत में आज हिंदुत्व के आक्रामक संस्करण को राजनीति, कारोबार, लोकतंत्र के संस्थानों सभी पर लादा जा रहा है। इस देश के लोगों को जापान के इन विवादों को कुछ अधिक ध्यान से देखना चाहिए कि वहां जब धर्म अखंड कोरिया, अखंड जापान-कोरिया बनाने की मुहिम में इस तरह लग गया है कि उससे जनता को नफरत होने लगी है, और प्रधानमंत्री को इस चर्च से जुड़े मंत्रियों को बर्खास्त करना पड़ा है। लोगों के लिए भी यह सोचने का मौका है कि जिंदगी में धर्म का महत्व कितना होना चाहिए, और इसमें से कितना हिस्सा निजी आस्था की तरह रहना चाहिए और उसका कितना हिस्सा सार्वजनिक जीवन का रहना चाहिए। लोग जब दुनिया के इतिहास से सबक लेने की बात करते हैं, तो उसका मतलब महज इतिहास से सबक लेना नहीं रहता, वह दुनिया के दूसरे हिस्सों के वर्तमान से भी सबक लेने का रहता है। देखें कि कुछ देशों के धर्म के हिंसक या राजनीतिक पहलुओं से बाकी देशों के लोग क्या सबक लेते हैं।
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