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महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय: फ़र्ज़ की राह में समर्पण की लंबी यात्रा
09-Sep-2022 9:53 AM
महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय: फ़र्ज़ की राह में समर्पण की लंबी यात्रा

ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ का क़रीब सात दशक लंबा राजकाज भारी उथल-पुथल वाला रहा. वो सबसे लंबे वक़्त तक ब्रिटेन पर राज करने वाली महारानी थीं. क्वीन एलिज़ाबेथ को उनके ज़िम्मेदारी निभाने के मज़बूत इरादों के लिए हमेशा याद किया जाएगा. उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी अपने ताज और अपनी जनता के नाम कर दी थी. हर ज़िम्मेदारी को उन्होंने बख़ूबी निभाया.

70 बरस की उनकी हुकूमत के दौरान इंग्लैंड ही नहीं, पूरी दुनिया भारी उठा-पटक के दौर से गुज़री. कभी आर्थिक चुनौतियाँ सामने थीं, तो कभी सियासी संकट. मगर इस उथल-पुथल में जनता के बीच भरोसा जगाने के लिए एक ही नाम था, महारानी एलिज़ाबेथ का.

एलिज़ाबेथ उस दौर में ब्रिटेन की महारानी बनीं, जब पूरी दुनिया में ब्रिटेन की हैसियत घट रही थी. समाज में क्रांतिकारी बदलाव आ रहे थे. ब्रिटेन में बहुत से लोग राजशाही के रोल पर ही सवाल खड़े कर रहे थे. मगर उन्होंने इन चुनौतियों का डटकर सामना किया. बड़ी समझदारी से अपनी ज़िम्मेदारियां निभाईं, और ब्रिटेन के राजपरिवार में लोगों का भरोसा बनाए रखा.

किसी ने नहीं सोचा था कि एलिज़ाबेथ एक दिन ब्रिटेन की महारानी बनेंगी. वो 21 अप्रैल 1926 को बर्कले में पैदा हुई थीं. एलिज़ाबेथ, उस वक़्त के ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम के दूसरे बेटे, ड्यूक ऑफ यॉर्क, अल्बर्ट की बड़ी बेटी हैं.

एलिज़ाबेथ कभी स्कूल नहीं गईं. उनकी और छोटी बहन मार्गरेट की पढ़ाई लिखाई, राजमहल में ही हुई. एलिज़ाबेथ अपने पिता और अपने दादा, दोनों की बहुत लाडली थीं. छह बरस की उम्र में घुड़सवारी सीखते वक़्त उन्होंने अपने उस्ताद से कहा कि वो गांव में रहने वाली लड़की बनना चाहती हैं और ढेर सारे घोड़े और कुत्ते पालना चाहती हैं.

बचपन से ही उनका बर्ताव बेहद ज़िम्मेदारी भरा था. ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल भी उनसे बहुत प्रभावित हुए थे. चर्चिल ने महारानी एलिज़ाबेथ के बारे में कहा था कि इतनी कम उम्र में भी वो बड़ी रौब-दाब वाली लगती थीं.

कभी स्कूल न जाने पर भी एलिज़ाबेथ ने कई भाषाएँ सीख ली थीं. उन्होंने ब्रिटेन के संवैधानिक इतिहास की भी अच्छे से पढ़ाई की थी. एलिज़ाबेथ और उनकी बहन मार्गरेट अपनी हमउम्र लड़कियों से मेल-जोल कर सकें, इसके लिए बकिंघम पैलेस के नाम पर गर्ल्स गाइड कंपनी बनाई गई थी.

1936 मे ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम की मौत के बाद उनके बड़े बेटे डेविड, एडवर्ड अष्टम के नाम से गद्दी पर बैठे, लेकिन एडवर्ड ने अपने जीवनसाथी के तौर पर अमरीकी महिला वैलिस सिंपसन को चुना. सिंपसन दो बार की तलाक़शुदा थीं. उनके धार्मिक झुकाव को लेकर भी ब्रिटेन में काफ़ी विरोध था. इस वजह से एडवर्ड अष्टम ने गद्दी छोड़ दी.

राजकुमारी एलिज़ाबेथ और उनकी छोटी बहन राजकुमारी मारग्रेट रोज 12 अक्तूबर 1940 को पहली बार रेडियो प्रसारण में आईं
इमेज कैप्शन,
राजकुमारी एलिज़ाबेथ और उनकी छोटी बहन राजकुमारी मारग्रेट रोज 12 अक्तूबर 1940 को पहली बार रेडियो प्रसारण में आईं. पूरे देश ने तब उनको दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सुना.

इसके बाद एलिज़ाबेथ के पिता ड्यूक ऑफ यॉर्क, किंग जॉर्ज षष्ठम के नाम से गद्दी पर बैठे. एलिज़ाबेथ के पिता, राजा नहीं बनना चाहते थे. पिता की ताज़पोशी से एलिज़ाबेथ को अपनी आने वाली ज़िम्मेदारियों का एहसास होने लगा था. बाद में उन्होंने इस तजुर्बे को बहुत अच्छा बताया.

उस वक़्त हिटलर की ताक़त तेज़ी से बढ़ रही थी. यूरोप में बढ़ती तनातनी के बीच किंग जॉर्ज षष्ठम अपने परिवार के साथ देश के दौरे पर निकल पड़े. एलिज़ाबेथ ने अपने पिता के इस दौरे से काफ़ी सबक़ सीखा.

1939 में 13 बरस की उम्र में एलिज़ाबेथ अपने पिता और माँ के साथ डार्टमथ के रॉयल नेवल कॉलेज गईं. यहाँ उनकी मुलाक़ात अपने भविष्य के पति, ग्रीस के प्रिंस फिलिप से हुई. वैसे, दोनों के बीच ये पहली मुलाक़ात नहीं थी. लेकिन, जब दोनों नेवल कॉलेज में मिले तो एलिज़ाबेथ ने प्रिंस फिलिप में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी.

छुट्टी के दिनों में प्रिंस फिलिप भी अपने शाही रिश्तेदारों से मिलने लंदन पहुंचे. 1944 के आते आते एलिज़ाबेथ, प्रिंस फिलिप के प्यार में पड़ चुकी थीं. वो एक दूसरे को चिट्ठियां लिखने लगे थे. एलिज़ाबेथ, प्रिंस फिलिप की तस्वीरें अपने कमरे में रखने लगी थीं.

दूसरे विश्व युद्ध के ख़ात्मे के वक़्त प्रिंसेस एलिज़ाबेथ ऑग्ज़िलरी टेरिटोरियल सर्विस में शामिल हो गईं थीं. वहां उन्होंने गाड़ी चलाना और उसकी मरम्मत करना सीखा.

8 मई 1945 को राजकुमारी एलिज़ाबेथ ने शाही परिवार के साथ मिलकर, विश्व युद्ध के ख़ात्मे का जश्न मनाया. जिसमें ब्रिटेन की जीत हुई थी.

बाद में उन्होंने लिखा था कि, 'हमने अपने मां-पिता से आम लोगों के बीच जाने की इजाज़त मांगी. ताकि हम लोगों की ख़ुशी महसूस कर सकें. हमें डर लग रहा था कि कहीं हमें कोई पहचान न ले. उस वक़्त लंदन के मॉल में इतनी भीड़ थी कि एक रेला आकर हमको भी बहा ले गया'.

जंग के ख़ात्मे के बाद वो प्रिंस फिलिप से शादी करना चाहती थीं. मगर उनकी राह में कई रोड़े थे. एलिज़ाबेथ के पिता, किंग जॉर्ज अपनी लाडली बेटी को दूर नहीं भेजना चाहते थे. वहीं प्रिंस फिलिप का किसी और देश का होना भी ऐतराज़ की एक वजह थी.

हालांकि सारी अड़चनें दूर हो गईं. 20 नवंबर 1947 को दोनों ने लंदन के शाही गिरजाघर वेस्टमिंस्टर एबे में ब्याह रचा लिया.

शाही परिवार में शादी के बाद प्रिंस फिलिप को ड्यूक ऑफ एडिनबरा की उपाधि मिल गई लेकिन उन्होंने शाही नौसेना की नौकरी नहीं छोड़ी. उन्होंने शादी के बाद माल्टा में कुछ वक़्त साथ गुज़ारा, किसी आम दंपति की तरह.

प्रिंस फिलिप और राजकुमारी एलिज़ाबेथ की पहली औलाद, प्रिंस चार्ल्स 1948 में पैदा हुए. दो साल बाद बेटी एन भी इस दुनिया में आईं. इसी बीच, एलिज़ाबेथ के पिता किंग जॉर्ज की तबीयत बिगड़ती जा रही थी. उन्हें फेफड़ों का कैंसर था.

जनवरी 1952 में एलिज़ाबेथ और उनके पति विदेश के दौरे पर निकल पड़े. ख़राब तबीयत के बावजूद किंग जॉर्ज, बेटी दामाद को छोड़ने हवाई अड्डे तक आए. ये बाप-बेटी के बीच आख़िरी मुलाक़ात थी.

एलिज़ाबेथ और प्रिंस फिलिप, कीनिया में थे जब उन्हें अपने पिता की मौत की ख़बर मिली. वो तुरंत ब्रिटेन लौटीं. और आनन-फ़ानन में उन्हें महारानी घोषित कर दिया गया.

उस दौर को याद करते हुए महारानी एलिज़ाबेथ ने लिखा, 'मेरे पिता की बहुत जल्दी मौत हो गई थी. मुझे उनके साथ रहते हुए शाही कामकाज सीखने का भी मौक़ा नहीं मिला. इसीलिए अचानक से मिली ये ज़िम्मेदारी को सही तरीक़े से निभाने की चुनौती मेरे सामने थी'.

ताजपोशी
जून 1953 में एलिज़ाबेथ की ताजपोशी का पूरी दुनिया में टीवी पर सीधा प्रसारण किया गया था. कई लोगों ने पहली बार टीवी पर किसी कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देखा था. उस वक़्त ब्रिटेन दूसरे विश्व युद्ध के बाद कटौती के दौर से गुज़र रहा था. प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को ये कार्यक्रम फिज़ूलख़र्ची लगा था. वो लाइव प्रसारण के ख़िलाफ़ थे. लेकिन ब्रिटेन के आम लोगों ने नई महारानी को हाथों-हाथ लिया था.

विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की हैसियत काफ़ी घट गई थी. उसका साम्राज्य सिमट गया था. भारत समेत कई देश ब्रिटेन के शासन से मुक्त हो चुके थे. ऐसे में ब्रिटेन का गौरव वापस दिलाने के लिए महारानी एलिज़ाबेथ ने कॉमनवेल्थ देशों का दौरान करने का फ़ैसला किया. वो ब्रिटेन की पहली महारानी थीं जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के दौरे पर गई थीं. कहा जाता है कि उन्हें दो-तिहाई ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने क़रीब से देखा.

जैसे-जैसे ब्रिटेन से दूसरे देश आज़ाद हो रहे थे, महारानी का कॉमनवेल्थ के प्रति लगाव बढ़ रहा था. कुछ लोगों को ये भी लग रहा था कि ब्रिटिश कॉमनवेल्थ को यूरोपीय आर्थिक समुदाय के बरक्स खड़ा किया जा सकता है.

व्यक्तिगत हमले
मगर, महारानी की तमाम कोशिशों के बावजूद, ब्रिटेन की ताक़त के पतन को नहीं रोका जा सका. 1956 के स्वेज नहर संकट ने ब्रिटेन के सम्मान में और बट्टा लगा दिया. जब मिस्र ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया. उसे रोकने के लिए भेजी गई ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों को बैरंग वापस आना पड़ा. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एंथनी इडेन को इस वजह से इस्तीफ़ा देना पड़ा.

प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े के चलते महारानी एलिज़ाबेथ को एक सियासी संकट में उलझना पड़ा. सत्ताधारी कंज़रवेटिव पार्टी में नया नेता चुनने की प्रक्रिया तय नहीं थी. मगर देश बिना प्रधानमंत्री के तो चल नहीं सकता था. इसलिए महारानी ने हैरॉल्ड मैकमिलन को नई सरकार बनाने का न्यौता दे दिया.

महारानी को इस दौरान निजी हमले भी झेलने पड़े. लॉर्ड अलट्रिंचम ने उन पर कई इल्ज़ाम लगाए. उनका आरोप था कि बिना लिखित कॉपी के कोई भाषण नहीं दे सकती हैं.

'राजशाही' से 'शाही परिवार' तक
महारानी के ख़िलाफ़ ऐसे बयानों के बाद लॉर्ड अलट्रिंचम पर हमला भी हुआ. लेकिन इस घटना से एक बात साफ़ हो गई कि ब्रिटिश राजपरिवार के बारे में लोगों की राय बदल रही है. अब लोग सवाल करने लगे थे.

अपने पति की सलाह पर महारानी एलिज़ाबेथ ने ख़ुद को नए वक़्त के लिए ढालना शुरू कर दिया. राज दरबार के कई रिवाज़ों को ख़त्म कर दिया गया. महारानी ने राजशाही के बजाय, शाही परिवार शब्द के इस्तेमाल पर ज़ोर देना शुरू कर दिया.

महारानी को एक और सियासी चुनौती 1963 में झेलनी पड़ी, जब हैरॉल्ड मैकमिलन ने प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया. उस वक़्त तक भी कंजरवेटिव पार्टी में नेता चुनने का नया सिस्टम नहीं तय हो पाया था. ऐसे में महारानी ने मैकमिलन की सलाह पर अर्ल ऑफ होम को नई सरकार बनाने का बुलावा भेज दिया.

वैसे तो ब्रिटेन की महारानी के तौर पर उनके पास ज़्यादा संवैधानिक अधिकार नहीं थे. लेकिन वो जानकारी और सलाह पाने के अपने अधिकारों के प्रति काफ़ी सतर्क थीं. लेकिन अपनी संवैधानिक दायरों को पार करने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की.

हालांकि इसके बाद महारानी को ऐसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा.

साठ के दशक के आख़िर में शाही परिवार ने आम लोगों से नज़दीकी बढ़ाने का फ़ैसला किया था.

बीबीसी ने शाही परिवार पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई जिसमें शाही परिवार के सदस्यों को आम लोगों जैसे काम करते हुए पहली बार दिखाया गया. महारानी के पति प्रिंस फिलिप काम करते दिखे. शाही परिवार के दूसरे सदस्य अपना क्रिसमस ट्री सजाते दिखाए गए. परिवार के मर्द अपने बच्चों को घुमाते-फिराते दिखाए गए.

कई लोगों ने इस डॉक्यूमेंट्री पर ऐतराज़ जताया. उनका कहना था कि इसकी वजह से शाही परिवार आम लोगों जैसा दिखने लगा.

लोगों के ऐतराज़ से इतर, आम लोगों ने इस डॉक्यूमेंट्री को काफ़ी सराहा. 1977 में जब महारानी की ताजपोशी की पच्चीसवीं सालगिरह मनायी गई. तो लोगों ने धूम-धाम से जश्न मनाया.

दो साल बाद माग्ररेट थैचर ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं, हालांकि महारानी एलिज़ाबेथ से उनके रिश्ते सामान्य नहीं रहे. थैचर के तौर-तरीक़े महारानी को पसंद नहीं थे.

वजह ये कि महारानी को ब्रिटिश कॉमनवेल्थ में और ख़ास तौर से पुराने अफ्रीकी उपनिवेशों से रिश्ते बेहतर करने में काफ़ी दिलचस्पी थी लेकिन मार्गरेट थैचर का अफ्रीकी देशों के प्रति रवैया महारानी को पसंद नहीं था.

आलोचना और मुसीबत
साल दर साल महारानी के तौर पर एलिज़ाबेथ अपनी ज़िम्मेदारियां निभाती रहीं. 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद वो अमरीका के दौरे पर गईं. वहां वो अमरीकी कांग्रेस को संबोधित करने वाली पहली ब्रिटिश महारानी बनीं. अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने उनकी बहुत तारीफ़ की थी.

लेकिन नब्बे का दशक, शाही परिवार के लिए बेहद बुरा रहा. महारानी एलिज़ाबेथ के दूसरे बेटे ड्यूक ऑफ यॉर्क और उनकी पत्नी सारा में अलगाव हो गया. इसी तरह उनकी बेटी राजकुमारी ऐन का भी उनके पति मार्क फिलिप्स से तलाक़ हो गया. बाद में प्रिंस चार्ल्स और राजकुमारी डायना के तल्ख़ रिश्तों की सच्चाई भी सार्वजनिक हो गई. बाद में दोनों अलग भी हो गए.

नब्बे के दशक में ही शाही महल विंडसर पैलेस में भयंकर आग लग गई. इसके बाद ब्रिटेन में इस बात पर बहस छिड़ गई कि आख़िर राजमहल की मरम्मत का ख़र्च कौन उठाएगा? मरम्मत का काम शाही ख़र्चे पर हो या फिर ब्रिटिश पब्लिक के पैसे पर. इसे लेकर इंग्लैंड के लोग दो हिस्सों में बंटे नज़र आए.

महारानी ने इसका रास्ता निकाला. राजमहल की मरम्मत का ख़र्च निकालने के लिए बकिंघम पैलेस को आम लोगों के लिए खोल दिया गया. साथ ही, राज परिवार ने ये एलान भी किया कि महारानी और उनके युवराज प्रिंस ऑफ वेल्स, दोनों अपनी आमदनी पर टैक्स अदा किया करेंगे.

1992 के साल को महारानी एलिज़ाबेथ ने अपनी ज़िंदगी का सबसे बुरा साल कहा था. उन्होंने एक भाषण में कहा कि किसी भी संस्था या इंसान को जवाबदेही से नहीं बचना चाहिए. ब्रिटेन का शाही परिवार भी हर तरह की पड़ताल के लिए तैयार है.

वैसे बुरे हालात के बीच अच्छी ख़बर भी आई. दक्षिण अफ्रीका ने रंगभेद के ख़ात्मे का एलान कर दिया था. महारानी को हमेशा से कॉमनवेल्थ देशों से रिश्तों में दिलचस्पी रही थी इसीलिए उन्होंने रंगभेद के ख़ात्मे के बाद 1995 में दक्षिण अफ्रीका का दौरा किया.

प्रिंसेज़ ऑफ़ वेल्स डायना का निधन

घरेलू मोर्चे पर महारानी के सामने शाही परिवार की इज़्ज़त बचाए रखने की चुनौती थी. लेकिन प्रिंसेज़ डायना और प्रिंस चार्ल्स के तल्ख़ रिश्तों और अलगाव की वजह से शाही परिवार की इज़्ज़त को बट्टा लगा था. 1997 में राजकुमारी डायना की मौत के बाद जनता पूरी तरह से शाही परिवार के ख़िलाफ़ हो गई. महारानी पर निजी तौर पर भी कई आरोप लगे थे.

पेरिस में हादसे में राजकुमारी डायना की मौत के बाद हज़ारों लोगों ने घरों से बाहर निकलकर राजकुमारी डायना को श्रद्धांजलि दी. कुछ समय गुज़रने के बाद उन्होंने राजकुमारी डायना की मौत पर देश के नाम संदेश दिया. उन्होंने देश से वादा किया कि शाही परिवार ख़ुद को बदले हुए दौर के हिसाब से ढालने की कोशिश करेगा.

2002 में अपने राज-पाट की पचासवीं सालगिरह पर महारानी को निजी झटका लगा. उनकी माँ प्रिसेंस मार्गरेट की मौत हो गई थी. फिर भी उनकी ताजपोशी की पचासवीं सालगिरह धूम-धाम से मनाई गई.

जश्न मनाने के लिए लंदन के द मॉल पर दस लाख से ज़्यादा लोग जमा हुए थे.

अप्रैल 2006 में अपने अस्सीवें जन्मदिन पर जब महारानी आम लोगों के बीच मिलने जुलने निकलीं, तो विंडसर पैलेस के सामने हुजूम इकट्ठा हो गया था.

साल 2007 में महारानी एलिज़ाबेथ और प्रिंस फिलिप ने अपनी शादी की साठवीं सालगिरह मनाई. इस मौक़े पर शाही गिरजाघर वेस्टमिंस्टर एबे में ख़ास प्रार्थना हुई. इसमें दो हज़ार लोग शामिल हुए थे.

अप्रैल 2011 में शाही परिवार में एक और ख़ुशी का मौक़ा आया. जब महारानी के पोते प्रिंस विलियम ने केट मिडिलटन से ब्याह रचाया. पूरे देश ने इस शाही शादी का जश्न मनाया.

मई 2011 में महारानी एलिज़ाबेथ, आयरलैंड का दौरा करने वाली ब्रिटेन की पहली महारानी बनीं. उन्होंने आयरलैंड से ऐतिहासिक रूप से तल्ख़ रिश्तों को सुधारने की पहल की. आयरिश लोगों पर ब्रिटेन के पुराने ज़ुल्मों पर भी महारानी ने अफ़सोस जताया.

2012 में उत्तरी आयरलैंड के दौरे पर उन्होंने ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत करने वाले संगठन आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के नेता मार्टिन मैक्गिनस से हाथ मिलाकर एक नया संदेश देने की कोशिश की. इसी आयरिश रिपब्लिक आर्मी ने कभी महारानी के चचेरे भाई लॉर्ड माउंटबेटन की हत्या कर दी थी.

महारानी की ताजपोशी की साठवीं सालगिरह का जश्न भी उस साल ख़ूब धूमधाम से मना था.

महारानी के लिए सियासी तौर पर मुश्किल वक़्त 2014 में भी आया. स्कॉटलैंड में ब्रिटेन से अलग होने के लिए रायशुमारी कराई थी. महारानी ने हमेशा ब्रिटेन की एकता का समर्थन किया था. वो नहीं चाहती थीं कि स्कॉटलैंड अलग हो. जनमत संग्रह से

पहले महारानी ने बालमोरल कैसल के बाहर लोगों से अपील की थी कि वो सोच समझकर फ़ैसला लें. शायद जनता ने उनके दिल की बात सुनी और स्कॉटलैंड के अलगाव के प्रस्ताव को ज़रूरी समर्थन नहीं मिला.

जब रायशुमारी के आंकड़े सामने आए, तो महारानी ने राहत की सांस ली थी. 1997 में संसद में दिए गए भाषण में उन्होंने ब्रिटेन की एकता बनाए रखने का वादा किया था. उस ज़िम्मेदारी को निभाने में महारानी कामयाब रही थीं.

इस मौक़े पर महारानी ने कहा था, 'अब जबकि हम आगे बढ़ रहे हैं, हमें ये याद रखना चाहिए कि बहुत से लोगों ने अपनी अलग अलग राय ज़ाहिर की है. मगर, इन सबमें एक बात है जिस पर सब सहमत होंगे. वो ये कि हम सब स्कॉटलैंड से बहुत प्यार करते हैं'.

9 सितंबर 2015 को वो महारानी विक्टोरिया से भी लंबे समय तक राज करने वाली महारानी बन गई थीं. हालांकि इस पर महारानी एलिज़ाबेथ ने ज़्यादा ख़ुशी नहीं ज़ाहिर की.

नौ अप्रैल 2021 को लंबी बीमारी के बाद उनके पति प्रिंस फिलिप का निधन हो गया.

महारानी एलिज़ाबेथ के दौर के ख़ात्मे के वक़्त शाही परिवार का दर्जा उतना ऊंचा नहीं है, जितना 1952 में उनकी ताजपोशी के वक़्त था. लेकिन आम ब्रिटिश नागरिकों के बीच, वो राजपरिवार का रुतबा और उसके प्रति लगाव बनाए रखने में महारानी ज़रूर कामयाब रहीं.

अपनी ताजपोशी की पच्चीसवीं सालगिरह पर महारानी एलिज़ाबेथ ने तीस साल पहले की अपनी क़सम को याद किया था. ये वादा उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर अपनी जनता से किया था.

'जब मैं इक्कीस बरस की थी तभी मैंने ख़ुद को जनता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था. उस वक़्त मैंने भगवान से ये ज़िम्मेदारी निभाने में मदद मांगी थी. वो मेरे बचपने के दिन थे. जब मुझे सही-ग़लत में ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पता था. लेकिन जो वादा मैंने उस वक़्त किया था. उस पर मैं आज भी क़ायम हूं. उसके एक भी शब्द से मैं पीछे नहीं हटी हूँ.' (bbc.com/hindi)

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