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महारानी एलिज़ाबेथ II कैसे लाखों भारतीयों के दिलों में उतर गईं
10-Sep-2022 9:00 AM
महारानी एलिज़ाबेथ II कैसे लाखों भारतीयों के दिलों में उतर गईं

-सौतिक विस्वास

कहा जाता है कि जनवरी 1961 में जब महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय ने पहली बार भारत का दौरा किया था तो उस वक्त दिल्ली के हवाई अड्डे से लेकर भारत के राष्ट्रपति भवन तक के रास्ते में क़रीब 10 लाख लोग उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़े थे.

उस वक्त 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "इस सप्ताह के लिए भारतीय अपनी सभी मुश्किलें भूल गए. पूरी तरह नहीं, लेकिन आर्थिक परेशानियां, राजनीतिक उठापटक, कम्युनिस्ट चीन, कांगो और लाओस की मुश्किलें जैसे धुंधली पड़ गईं. महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय भारत की राजधानी में आई हुई हैं और भारतीय इस मौक़े का फायदा उठाने के लिए तत्पर हैं."

'द टाइम्स' ने लिखा, "ट्रेनों, बसों और बैलगाड़ियों में भर-भर कर लोग राजधानी की तरफ आ रहे थे. वो सड़कों में घूमकर और लॉन में झांककर शाही जोड़े की एक झलक पाने की कोशिश कर रहे थे."

अख़बार ने लिखा, "वो महारानी और ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा प्रिंस फ़िलिप को देखने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने अपनी सारी मुश्किलें भुला दी थीं."

अख़बार ने ये भी लिखा कि, "महारानी एलिज़ाबेथ इस दौरे पर एक शासक के तौर पर नहीं आई थीं बल्कि एक समकक्ष के तौर पर यहां आई थीं."

वो पहली ब्रितानी शासक थीं जो 1947 में ब्रितानी शासन से भारत की आज़ादी के बाद राजगद्दी पर बैठी थीं.

महारानी के इस दौरे ने भारतीयों को ब्रितानी शासकों को ये दिखाने का मौक़ा दिया कि "ब्रितानियों के भारत से जाने के बाद भी वो बुरी स्थिति में नहीं हैं."

उदाहरण के तौर पर "यहां जेट विमान वाले एयरपोर्ट हैं, नए घर और सरकारी दफ्तर हैं, स्टील के कारखाने हैं और परमाणु रिएक्टर भी है."

ये शाही दंपति उस वक्त छह सप्ताह के उपमहाद्वीप के दौरे पर तो थे ही, साथ ही भारत को और समझने की कोशिश कर रहे थे.

ब्रिटिश पाथे के वीडियो फुटेज में देखा जा सकता है कि इस शाही दंपति का लोगों ने कैसे खुले दिल से स्वागत किया था.

महारानी मुंबई, चेन्नई और कोलकाता (पहले के बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता) की जानीमानी जगहों पर गईं. जिन जगहों का उन्होंने दौरा किया उसमें आगरा का ताजमहल, जयपुर का पिंक पैलेस और वाराणसी के पुराने शहर शामिल थे.

उनके लिए कई जगहों पर विशेष स्वागत समारोह आयोजित किए गए. उन्होंने एक महाराजा की शिकारगाह में दो दिन गुज़ारे और हाथी की भी सवारी की. 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस के समारोह में शाही दंपति ने गेस्ट ऑफ़ ऑनर के तौर पर शिरकत की.

महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय ने दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया. ताजमहल तक वो एक खुली छत वाली कार में गईं, वो रास्ते में हाथ हिलाकर आम लोगों का अभिवादन कर रही थीं.

वेस्ट बंगाल में उन्होंने ब्रितानी मदद से बनाए गए स्टील प्लांट का दौरा किया और वहां कर्मचारियों से मुलाक़ात की.

कोलकाता में उन्होंने महारानी विक्टोरिया की याद में बनाए मेमोरियल का दौरा किया. ब्रिटेन की शाही दंपति के लिए एक स्थानीय रेसकोर्स में घोड़ों की रेस के एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसके विजेता को खुद महारानी ने कप दे कर सम्मानित किया.

महारानी के इस दौरे का विवरण देने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता में खुली छत वाली कार में एयरपोर्ट से महारानी के निकलने की घटना को कवर करने वाले भारत के सरकारी प्रसारक ऑल इंडिया रेडियो के एक रिपोर्टर ने यॉर्कशायर पोस्ट के संपादकीय का ज़िक्र किया था.

उन्होंने कहा था कि महारानी भले ही भारत की रानी नहीं हैं, लेकिन बड़ी संख्या में उमड़ रहे भारतीयों का उत्साह ये साबित करता है वो अभी भी लाखों भारतीयों के दिलों पर राज करती हैं.

इस दौरे के क़रीब दो दशक बाद महारानी ने एक बार फिर भारत में कदम रखा. नवंबर 1983 में वो दूसरी बार भारत दौरे पर आईं. उस वक्त कॉमनवेल्थ देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक होनी थी.

एक अख़बार के अनुसार उस वक्त ये शाही दंपति राष्ट्रपति भवन के अतिथियों वाले कमरे में ठहरे थे. इस कमरे से भारतीय साज-सज्जा हटा कर उसे ब्रितानी तौर-तरीकों से सजाया गया था.

अधिकारियों के अनुसार, "दफ्तरों और म्यूज़ियमों में दिखने वाले पुराने फर्नीचर को साफ़कर उन्हें कमरे के उपयुक्त बनाया गया. बेड की चादरें, कमरे के परदे, कमरे की दूसरे सजावट के सामान को बदला गया ताकि वो पुराने शाही वक्त से मेल खाती दिखें." खाने के मेन्यू में "पुराने, पश्चिमी तौर-तरीके वाली डिशेज़" रखी गईं क्योंकि महारानी को स्पष्ट रूप से "साधारण खाना" पसंद था.

अक्तूबर, 1997 में महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय आख़िरी बार भारत आई थीं. इस साल भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को 50 साल पूरे हुए थे और प्रिंसेज़ डायना की अंत्येष्टि के बाद पहली बार महारानी सार्वजनिक तौर पर बाहर निकली थीं.

इस दौरे के दौरान कई बातों को लेकर विवाद भी हुआ. महारानी के दौरे में भारत में ब्रितानी शासन के इतिहास का सबसे ख़ूनी जनसंहार की जगह जलियांवाला बाग़ मेमोरियल पार्क शामिल था, जिसे लेकर कई लोग उनसे माफ़ी की मांग की जा रही थी. 1919 में इस जगह पर एक सार्वजनिक सभा में शिरकत करने आए लोगों पर ब्रितानी सैनिकों ने गोलियां चलाई थीं. यहां सैंकड़ों लोगों की मौत गई थी.

देश के उत्तर में बसे इस शहर अमृतसर का दौरा करने से एक रात पहले महारानी ने एक सभा में दिल्ली में कहा था, "ये कोई छिपी-छिपाई बात नहीं है कि इतिहास में जलियांवाला बाग़ जैसी घटनाएं हुई हैं, जहां मैं कल जाने वाली हूं, ये परेशान करने वाला उदाहरण था. हम भले की कितना चाह लें लेकिन इतिहास को फिर से नहीं लिखा जा सकता. इतिहास में दुख के पल हैं और खुशियों के भी पल हैं. हमें दुखों से सीखने और खुशियों के पल बनाने की ज़रूरत है."

जलियांवाला बाग़ मामले में ब्रिटेन से माफ़ी की मांग करने वाले सभी लोग महारानी के भाषण से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन अमृतसर एयरपोर्ट पर उनके विरोध में प्रदर्शन करने वाले ऐसे लोग जिसने परिजन जलियांवाला बाग़ में मारे गए थे, उन्होंने अपना विरोध प्रदर्शन वापिस ले लिया.

कहा जाता है कि एयरपोर्ट से लेकर शहर तक के दस मील के रास्ते में "हाथों में झंडा लिए लोग खड़े थे जो उन्हें देख कर हाथ हिला रहे थे."

सिखों के सबसे पवित्र माने जाने वाले स्वर्ण मंदिर में जाने से पहले महारानी ने अपने जूते उतारे, लेकिन उन्हें मोजे पहनकर प्रवेश करने दिया गया. भारतीय मीडिया में महारानी की शाही पोषाक चर्चा का विषय बने रहे. टुडे मैगज़ीन के संवाददाता ने लिखा कि 1983 के उनके भारत दौरे के दौरान जो भी महारानी पहनती थीं, उस पर चर्चा शुरू हो जाती थी.

सुनील सेठी ने उनके दौरे के बारे में रिपोर्ट में लिखा-

एक रिपोर्टर ने कहा, "उनकी हैट, उनकी टोपी. ये किस चीज़ से बनी है?"

एक इंग्लिशमैन ने कहा "ये स्ट्रॉ से बनी है."

"और उनकी ड्रेस? ये किस मटीरियल से बनाई गई है?"

"ये असल में क्रेप द शीन है." (एक तरह का चीनी रेशम का कपड़ा.)

मैंने पूछा, "क्या आप महारानी के डिज़ाइनर हैं?"

उस व्यक्ति ने कहा, "मैं भी एक रिपोर्टर ही हूं. बाद में मुझे पता चला कि वो टाइम्स ऑफ़ लंदन के दिल्ली संवाददाता हैं."

अपने तीनों राजकीय दौरों के दौरान महारानी ने भारत में अपना वक्त अच्छे से बिताया.

उन्होंने बाद में कहा, "भारतीयों का स्नेह और उनकी मेहमाननवाज़ी, भारत की विविधता और यहां की समृद्धि अपने आप में हम सभी के लिए प्रेरणा है." (bbc.com/hindi)

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