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जय शाह और सौरव गांगुली से जुड़े फ़ैसले पर पूर्व जस्टिस लोढ़ा ने क्या कहा
15-Sep-2022 11:29 AM
जय शाह और सौरव गांगुली से जुड़े फ़ैसले पर पूर्व जस्टिस लोढ़ा ने क्या कहा

 

सुप्रीम कोर्ट ने कल यानी बुधवार को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को अपने संविधान में संशोधन करने की अनुमति दे दी है. गुरुवार को अख़बारों में इस ख़बर को विस्तार से जगह दी गई है. प्रेस रिव्यू में सबसे पहले पढ़िये विस्तार से यही ख़बर.

अख़बारों में ख़बर है कि बीसीसीआई के संशोधन के बाद सौरव गांगुली के बीसीसीआई के अध्यक्ष और जय शाह के सचिव पद पर बने रहने का रास्ता साफ हो गया है.

सौरव गांगुली और जय शाह ने अक्तूबर 2021 को अपना पद संभाला था. आगामी सितंबर में दोनों का कार्यकाल ख़त्म होने वाला था.

बीसीसीआई के मौजूदा संविधान के मुताबिक़, बीसीसीआई या किसी स्टेट बोर्ड में पद पर बैठे किसी भी सदस्य की दोबारा किसी पद पर नियुक्ति से पहले उसे तीन साल के 'कूलिंग ऑफ़' पीरियड से गुज़रना होता था.

सरल शब्दों में, कूलिंग ऑफ़ पीरियड का मतलब ये है कि बीसीसीआई या स्टेट बोर्ड में शीर्ष पद पर रहने वाले किसी भी व्यक्ति पर कार्यकाल ख़त्म होने के बाद दोबारा किसी पद पर नियुक्त होने के लिए तीन साल का प्रतिबंध था.

लेकिन नए प्रावधान के मुताबिक किसी भी सदस्य के लिए लगातार दो कार्यकालों तक पद पर बने रहना संभव हो पाएगा. यही वजह है कि सौरव गांगुली और जय शाह अपने मौजूदा पद पर तीन साल और रह पाएंगे.

बीसीसीआई में सुधारों की अनुशंसा करने के लिए बनाए गए सुप्रीम कोर्ट के पैनल की अध्यक्षता करने वाले पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढ़ा ने इस बारे में टिप्पणी करते हुए कहा है कि बीसीसीआई 'मौसम बदलने का इंतज़ार' कर रहा था.

साल 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग स्कैंडल और क्रिकेट प्रशासकों पर हितों के टकराव (कॉन्फ़्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट) से जुड़े आरोप लगने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा समिति की अनुशंसाओं के आधार पर ही 'कूलिंग ऑफ़' पीरियड वाला फ़ैसला दिया था.

पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मल लोढ़ा
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पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मल लोढ़ा

अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए आर एम लोढ़ा ने कहा है कि 'क्रिकेट प्रशासकों के लिए कूलिंग ऑफ़ पीरियड बर्फीली चट्टान जैसा था जिसका हल निकालना काफ़ी मुश्किल था, ऐसे में वे मौसम बदलने का इंतज़ार कर रहे थे.

उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने जब 18 जुलाई, 2016 को अपना पहला आदेश जारी किया था तभी हमारी रिपोर्ट सही साबित हो गयी थी. अदालत ने हमारे विचार को स्वीकार करके कूलिंग ऑफ़ पीरियड की शर्त को औपचारिक रूप दिया. ऐसे में बात ये नहीं थी कि हम थोड़ा भटक गए थे या हमारी रिपोर्ट ख़राब थी. पहली सुनवाई में ही हमारी पूरी रिपोर्ट स्वीकार की गयी और ये शर्त स्वीकार की गयी. इसके बाद 9 अगस्त, 2018 के आदेश में बदलाव किया. शायद, अब उन्हें लगता है कि इसमें फिर बदलाव करना ठीक है."

उन्होंने ये भी कहा कि, "सुप्रीम कोर्ट ने किन हालातों में बीसीसीआई के मामलों में दखल दिया था, ये भी देखने की ज़रूरत है. ये काफ़ी स्पष्ट था कि कुछ चुनिंदा लोग ही पद पर बने हुए थे. इसके साथ ही अदालत की नज़र कुछ अन्य चीजों पर गयी. हमसे कहा गया कि हम संविधान और संरचना (बीसीसीआई) को देखें. कई लोगों से मिलने के बाद हमें पता चला कि प्रशासन से जुड़ी कई मूल समस्याएं थीं और ये मांग उठाई गयी कि शीर्ष पदों पर बैठे कुछ लोगों का एकाधिकार ख़त्म हो."

बता दें कि साल 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग स्कैंडल पर जस्टिस (सेवानिवृत्त) मुकुल मुद्गल की रिपोर्ट आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस आरएम लोढ़ा के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था. इस समिति का उद्देश्य बीसीसीआई में संरचनात्मक सुधारों का सुझाव देना था ताकि भारतीय क्रिकेट की दुनिया में नियंत्रण और संतुलन की स्थिति बनी रहे.

स्पॉट फिक्सिंग केस की जांच और अदालत में इस मामले की सुनवाई से संकेत मिले थे कि बीसीसीआई में कई समस्याओं की जड़ 'कन्फ़्लिक्ट ऑफ़ इंट्रेस्ट' यानी हितों में टकराव था क्योंकि स्पॉट फिक्सिंग मामले में पकड़े गए गुरुनाथ मयप्पन बीसीसीआई प्रशासक एवं आईपीएल फ्रेंचाइज के मालिक रहे एन श्रीनिवासन के दामाद थे. (bbc.com/hindi)

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