विचार / लेख
-गिरीश मालवीय
....जब मोदी जी की सरकार चीते का मुंह रंगा प्लेन नामीबिया भेज रही है ठीक उसी वक्त एक मां मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पताल में अपनी बेटी के लिए बेड मिलने का इंतजार करती हुए खून की थैली हाथ में उठाए हुए है, ..... आपको याद ही होगा कि कुछ दिनों पहले आपके हमारे दिए टैक्स से जमा करोड़ों रुपए शाहराहों पर रात में ड्रोन उड़ाकर लाइट शो दिखाने में बर्बाद किए गए ....
खून की थैली उठाए एक मां का फोटो यहां इसलिए भी प्रासंगिक है कि कुछ दिन पहले ही खबर आई कि सरकार द्वारा जीडीपी के मुकाबले स्वास्थ्य पर खर्च में कमी आई है। नेशनल हेल्थ अकाउंट की ताजा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 में सरकार का कुल हेल्थ पर खर्च उनके जीडीपी का 3.2 प्रतिशत ही रह गया है।
साल 2004.05 में जीडीपी का 4.2 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च होता था लेकिन साल दर साल लगातार बढऩे के बजाए यह कम हो गया है।
रात में उड़ते हुए चमकीले ड्रोन की इवेंट हो या और नामीबिया से लाने वाले चीतों का इवेंट दिखाने वाला टीवी मीडिया कभी इस बात पर बहस नही करवाता कि मोदी सरकार स्वास्थ्य पर खर्च क्यों घटा रही है ? जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा प्रदान करना किसी भी कल्याणकारी राज्य के दो अनिवार्य स्तंभ हैं।
कोरोना महामारी के बाद से यह महसूस हुआ कि सरकार को स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना चाहिए लेकिन देश में जीडीपी के अनुपात में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बढऩे के बजाय कम हो गया है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ सालो पहले भारत स्वास्थ्य पर सार्वजनिक और निजी व्यय सहित अपने जीडीपी का कुल 3.9 प्रतिशत खर्च करता था जो मध्यम आय वर्ग के अन्य एशियाई देशों की तुलना में दूसरा सबसे कम है। म्यांमार स्वास्थ्य पर जीडीपी का 4.9 फीसदी खर्च करता है और नेपाल 6.9 फीसदी, यहां भी हम सिर्फ पाकिस्तान ( 2.7 फीसदी ) से आगे है।
न शिक्षा पर खर्च हो रहा है न स्वास्थ्य पर !.....
यहां साफ दिख रहा है कि मोदी सरकार करदाताओं से अर्जित आय को विवेकशील ढंग से खर्च कर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी जरूरतों को प्राथमिकता देने के बजाए इवेंटबाजी कराने में व्यस्त है।