साहित्य/मीडिया

दूसरी न जाने कहाँ खो गयी ..
17-Sep-2022 8:50 AM
दूसरी न जाने कहाँ खो गयी ..

-अपूर्व गर्ग 

इस काया को किसने बनाया ?

ईश्वर ! कहाँ है !!
ये काया जैसे रेगिस्तान में कोई फूल 
ये काया जैसे लम्बे सूखे  बीहड़ में ढूंढता कोई छाँव 
ये काया जैसे अकालग्रस्त दुनिया में कूड़े में पड़ी उम्मीद 
ये नन्ही सी काया मानो हम सब ज़िंदा लाश 
इस नन्ही काया और बिस्किट के पैकेट के बीच शीशे की दीवार 
मानों  सात समन्दर की दूरी, मानों मृगतृष्णा, मानो टूटा ख्वाब 
तस्वीर देखते ही दिल किया ऐसी शीशे की दीवारों को चकनाचूर  कर दूँ 
पर पहले ही मेरा दिल टूट गया, शब्द ही  चकनाचूर होकर बिखर गए ..
जब टूटे हुए शब्दों को जोड़ा तो एक ठंडी हवा के झोके ने कुछ राहत  दी ..
ये तस्वीर पूना की है.
घर लौटती एक बच्ची ने देखा तस्वीर ली 
उसके पास गयी, उसके सर पर हाथ फेरा और पूछा 'कुछ खाना है ?'
छोटी बच्ची -हाँ 
'क्या खायेगी ?'
छोटी बच्ची ने  एक मासूम इशारा किया ..
उस बच्ची ने इस नन्ही काया को अपने पास बैठाया , प्यार किया  जो -जो उसने कहा खिलाया 
साथ ही उसके लिए पानी की बोतल ली . उसे कोल्ड ड्रिंक पिलाकर हाथ में कुछ पैकेट दिया ..
वो नन्ही काया अवाक देखती रही ..
क्योंकि  :
अब सांता क्लॉज़ कहाँ आते हैं 
सपने पूरे होते उसने कभी देखा ही नहीं 
तेज़ बारिश होने को थी..काले बादल छाने लगे 
दोनों बच्चे लौट गए ..ज़रा रुकिए ..
एक लौटी पर दूसरी उन काले बादलों में न जाने कहाँ खो गयी ..

 

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