अंतरराष्ट्रीय
-सोफिया बेट्टिज़ा
इज़ियम शहर पर यूक्रेन के दोबारा क़ब्ज़े के बाद रूसी सेना के अत्याचारों के आरोप सामने आ रहे हैं. इस शहर में रह रहे श्रीलंकाई लोगों के एक समूह ने रूसी सेना पर अत्याचार के आरोप लगाए हैं.
रूसी सैनिकों के ज़ुल्म की दास्तां बयान करने वाले इन श्रीलंकाई नागरिकों को यहां कई महीनों से क़ैद रखा गया था.
इन कैदियों में से एक दिलुजान पतथिनाजकन ने कहा, '' ऐसा लग रहा था कि हम यहां से ज़िंदा नहीं निकल पाएंगे. ''
दिलुजान उन सात श्रीलंकाई लोगों में से एक हैं जिन्हें रूसी सैनिकों ने मई में पकड़ लिया था. रूसी हमले में अपनी जान को ख़तरे में देखते हुए यह समूह कुपियांस्क में अपने घर से ज़्यादा सुरक्षित खारकीएव की ओर से निकला था. कुपियांस्क से खारकीएव 120 किलोमीटर दूर है.
लेकिन पहली ही चेक पोस्ट पर श्रीलंकाई लोगों का ग्रुप रूसी सैनिकों के हाथ पड़ गया. इन सैनिकों ने उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी. उनके हाथ पीछे की ओर बांध दिए गए और उन्हें रूसी सीमा के पास वोवचांस्क में एक मशीन टूल फैक्टरी में ले जाया गया.
ये चार महीने के उनके दु:स्वप्न की शुरुआत थी. उन्हें यहीं बंद रखा गया. उनसे ज़बर्दस्ती काम लिया जाता था और प्रताड़ना भी दी जाती थी.
श्रीलंकाई लोगों का यह दल यूक्रेन में रोज़गार या पढ़ाई के लिए आया था. लेकिन अब वे क़ैदी थे जो रूसियों के क़ब्जे़ में नाम मात्र के भोजन पर ज़िंदा थे. इन कै़दियों को दिन में एक बार सिर्फ़ दो मिनट के लिए टॉयलेट जाने की इजाज़त थी.
उम्र के तीसरे दशक में चल रहे पुरुषों को एक कमरे में बंद रखा गया था. जबकि 50 साल की महिला मेरी एडिट उथाजकुमार को उनसे अलग रखा गया था.
वह बताती हैं,'' उन्होंने हमें एक कमरे में बंद रखा था. हम जब नहाने निकलते थे तो रूसी सैनिक हमारी पिटाई करते थे. उन्होंने मुझे दूसरे बंधकों से मिलने भी नहीं दिया. हम तीन महीने तक अंदर फंसे रहे. ''
मेरी का चेहरा पहले ही श्रीलंका में हुए एक विस्फोट में झुलस चुका है. उन्हें दिल की बीमारी है. लेकिन यहां उन्हें इसकी कोई दवा नहीं दी गई.
लेकिन अकेले कमरे में बंद रखे जाने का उनके स्वास्थ्य पर ज्यादा असर हुआ है.
वह कहती हैं, ''अकेले बंद रखे जाने की वजह से मैं काफी तनाव में आ जाती थी. रूसी सैनिकों ने कहा कि मेरा मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है. मुझे दवा दी जाती थी, लेकिन मैंने नहीं ली. ''
पैर के अंगूठे के नाखून उखाड़े
दूसरे लोगों पर भी ज़ुल्म ढाए गए. कै़द किए गए एक शख्स ने जूते उतारकर अपना अंगूठा दिखाया. उनके अंगूठे के नाखून प्लायर से निकाल लिए गए थे. एक और शख्स को प्रताड़ित किया गया था.
बंधक बनाए लोगों का कहना है कि उन्हें बिना वजह के पीटा जाता था. रूसी सैनिक शराब पीकर उन पर टूट पड़ते थे..
35 साल के थिनेश गगनथिन बताते हैं, '' एक सैनिक ने मेरे पेट में घूंसे मारे. इससे मैं दो दिनों तक दर्द से तड़पता रहा. इसके बाद उसने मुझसे पैसे मांगे''.
25 साल के दिलुकशान रॉबर्टक्लाइव ने बताया, ''हमें बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था. हम बेहद दुखी थी और हर दिन रोते थे. हमें सिर्फ एक ही चीज ने जिंदा रखा था, वह थी हमारी प्रार्थना. दूसरी चीज थी हमारे परिवार की यादें ''
रूस ने यूक्रेन पर हमले के दौरान नागरिकों को निशाना बनाए जाने या युद्ध अपराधों को अंजाम देने से इनकार किया है. लेकिन श्रीलंकाई नागरिकों पर जुल्म की यह ख़बर ऐसे वक्त में आई है जब रूसी सैनिकों पर ऐसे आरोप लगातार लग रहे हैं.
'शवों पर यातना के निशान'
यूक्रेन इज़ियम की क्रबगाहों से शवों के अवशेष निकाल रहा है. कुछ शवों के शरीर पर यातना के निशान हैं.
यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लोदोमीर जे़लेंस्की ने कहा ,''खारकीएव में आजाद कराए जा रहे इलाकों और कई शहरों में दस से अधिक टॉर्चर चैंबर मिले हैं. ''
रूसी सैनिकों की कैद से इन श्रीलंकाई लोगों को तब छुड़ाया गया है, जब यूक्रेनी सैनिकों ने इस महीने वोवचांस्क समेत कई इलाकों पर दोबारा कब्जा करना शुरू किया.
रूसी सैनिकों के कब्जे से रिहा श्रीलंकाई लोगों का यह दल एक बार फिर खारकीएव की ओर चल पड़ा था. लेकिन उनके पास फोन नहीं थे. अपने परिवार के लोगों से संपर्क करने का उनके पास कोई जरिया नहीं था.
कैसे मिली मुक्ति?
लेकिन आखिरकार उनकी किस्मत ने पलटी खाई. कुछ लोगों ने उन्हें रास्ते में पहचान लिया और पुलिस को फोन कर दिया. एक पुलिस अफसर ने उन्हें अपना फोन दिया. 40 साल के एंकरनाथन गणेशमूर्ति ने फोन स्क्रीन पर अपनी पत्नी और बेटी को देखा तो फफक पड़े. फोन आते रहे और आंसू बहते रहे. पुलिस अफसर को इन लोगों ने गले से लगा लिया.
इस दल को खारकीएव ले जाया गया. वहां उनका इलाज किया गया और नए कपड़े दिए गए. उन्हें एक पुनर्वास केंद्र में रखा गया है जहां स्विमिंग पूल और जिम है. चेहरे पर चौड़ी मुस्कान लिए दिलुकशान कहते हैं. अब मैं बहुत खुश महसूस कर रहा हूं. '' (bbc.com/hindi)