संपादकीय
ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं का आंदोलन एक अभूतपूर्व आक्रामकता पर पहुंच गया है। देश के लोगों पर बड़ी कड़ाई से काबू और कब्जा रखने वाली ईरानी सरकारी के लिए यह फिक्र और परेशानी की नौबत है, लेकिन दूसरी तरफ ईरानी महिलाओं के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई भी है। एक युवती को ईरान की नैतिकता-पुलिस ने हिजाब न लगाने, या ठीक से न लगाने के लिए गिरफ्तार किया, बाद में उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, और उसकी मौत हो गई। इसे पुलिस ज्यादती करार देते हुए ईरानी महिलाएं वहां के कई शहरों में सरकार की लादी हुई पोशाक की रोकटोक, और उसे लागू करवाते ज्यादती करने वाली नैतिकता-पुलिस के खिलाफ सडक़ों पर उतर आईं, उन्होंने चौराहों पर अपने हिजाब की होली जलाना शुरू कर दिया, विरोध-प्रदर्शन करते हुए सडक़ों पर उन्होंने अपने बाल काटने शुरू कर दिए, और वीडियो कैमरों के सामने उन्होंने तानाशाह की मौत के नारे लगाए। तानाशाह का सीधा-सीधा मतलब ईरान के धार्मिक प्रमुख, सुप्रीम लीडर कहे जाने वाले अली खमैनी से है।
ईरान इस्लाम की अपनी व्याख्या को कड़ाई से लागू करने वाला देश है, और वहां महिलाओं की पोशाक पर कई तरह की रोक है। अभी कल ही अमरीकी टीवी चैनल सीएनएन की एक सबसे सीनियर महिला जर्नलिस्ट का न्यूयार्क में पहुंचे ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के साथ इंटरव्यू तय था। लेकिन उन्होंने इंटरव्यू के दौरान सिर पर स्कार्फ बांधने से मना कर दिया, और राष्ट्रपति ने उनसे मिलने से इंकार कर दिया। इस पत्रकार का तर्क था कि वह पहले भी ईरानी राष्ट्रपतियों से ईरान के बाहर इंटरव्यू कर चुकी हैं, और अमरीका में चूंकि महिलाओं के स्कार्फ बांधने का कोई नियम नहीं है, इसलिए किसी ने कभी इस बात पर जोर भी नहीं डाला था। लेकिन शायद अभी ईरान में हिजाब को लेकर चल रहे आंदोलन को देखते हुए ईरानी राष्ट्रपति इस पर अड़ गए, और यह इंटरव्यू नहीं हो सका।
ईरान में बरसों बाद यह नौबत देखने में आ रही है जब सार्वजनिक रूप से महिलाएं न सिर्फ हिजाब जला रही हैं बल्कि वे तानाशाह की मौत भी मांग रही हैं। यह आंदोलन छोटे-बड़े कई शहरों में फैला हुआ है, और सरकार ने पूरे देश में इंटरनेट बंद कर दिया है ताकि सोशल मीडिया और मैंसेजर सर्विसों से जुड़ा हुआ यह आंदोलन कुछ पोस्ट न कर सके। बाईस बरस की महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत से भडक़ी हुई महिलाएं अब अपना हक पाने के लिए सरकार के खिलाफ एक अभूतपूर्व आंदोलन कर रही हैं, और तमाम पश्चिमी दुनिया तो उनके इस आंदोलन के साथ है ही। आसपास के जो देश ईरान के खिलाफ रहते हैं, वहां पर भी इस आंदोलन के लिए एक हमदर्दी है। दुनिया में अब ऐसे कम ही मुस्लिम देश बचे हैं जहां महिलाओं पर पोशाक की पाबंदी को ऐसी कड़ाई से लादा जाता है, और इससे ढील चाहने वाली महिलाओं को सजा दी जाती है। लोगों को याद होगा कि एक वक्त ईरान भी आजाद खयालों का देश था, और महिलाओं की पोशाक पर कोई पाबंदी नहीं थी, लेकिन तब तत्कालीन शाह के खिलाफ एक इस्लामिक आंदोलन हुआ, और शाह को बेदखल करके इस्लामिक सरकार बनाई गई, और तब से अब तक ईरान लगातार शरीयत की अपनी व्याख्या को लागू करते आया है जिसमें सऊदी अरब की तरह महिलाओं पर कई तरह की रोक लगाई गई है।
ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिमी देशों और अमरीका के निशाने पर रहते आया है जिन्हें यह लगता है कि दुनिया के उस हिस्से में बसे इजराईल को ईरान से खतरा हो सकता है। इसलिए ईरान पश्चिम के आर्थिक प्रतिबंध भी झेलते आया है, और उससे पश्चिमी दुनिया का लेन-देन, आवाजाही, सब कुछ बहुत सीमित है। इस तरह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय, दोनों तरह के प्रतिबंधों से घिरा हुआ ईरान एक कट्टर मुस्लिम देश बना हुआ महिलाओं की पोशाक पर बहुत कड़ी रोकटोक लगाने वाला देश है। ईरान और सऊदी अरब, और अब तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान में महिलाओं पर लगाई गई तरह-तरह की रोकटोक को लेकर दुनिया भर में महिला-अधिकारों की वकालत करने वाले फिक्रमंद हैं। संयुक्त राष्ट्र से लेकर महिला संगठनों तक इस पर बोलते आए हैं, लेकिन धार्मिक कट्टरता हर वकालत को अनसुनी कर देती है।
इस बार का यह हिजाब विरोधी आंदोलन इतना आक्रामक हो गया है कि उस पर पुलिस कार्रवाई से 31 महिलाओं की मौत भी हो चुकी है, और 30 से अधिक शहरों में आंदोलन फैल चुका है, और आंदोलनकारियों को देश भर में गिरफ्तार किया जा रहा है। बराबरी के हक पाने के लिए महिलाओं का यह आंदोलन बहुत ही महत्वपूर्ण है, और यह धर्म की कट्टरता को एक चुनौती भी है। हम यह तो नहीं कहते कि ये शहादत तुरंत ही सुधार ले आएंगी, लेकिन ये धार्मिक-कट्टर सरकार को कुछ सोचने को मजबूर जरूर कर सकती है। यह एक ऐसा मौका है कि दुनिया के लोगों को आगे आकर ईरानी महिलाओं के हक का साथ देना चाहिए। दुनिया की कई सरकारें ईरान के साथ अपने संबंधों को देखते हुए इस मुद्दे पर चुप रहेंगी, सोशल मीडिया पर यह भी सवाल उठाया गया है कि हिन्दुस्तान जैसे देश में सरकार तो सरकार, कोई राजनीतिक दल भी इस पर बोलने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में दुनिया भर के आजादी के हिमायती लोगों को खुलकर सामने आना चाहिए, और महिलाओं से भेदभाव के इस इस्लामिक माहौल का विरोध करना चाहिए। जो लोग भारत में मुस्लिम महिला के अधिकारों को लेकर फिक्र कर रहे हैं, उनके मुंह भी ईरानी महिलाओं के इस महत्वपूर्ण आंदोलन को लेकर खुल नहीं रहे हैं। महिलाएं तकरीबन तमाम दुनिया में दबी-कुचली रहती हैं, और जब वे एक अलोकतांत्रिक और बर्बर सरकार के खिलाफ सडक़ों पर उतरी हैं, तो दुनिया को उनका साथ देना चाहिए।