विचार / लेख
-असगर वजाहत
लम्बे समय तक फारसी और अरबी भाषाओं के माध्यम से भारत की रचनात्मकता और ज्ञान को संसार तक पहुंचाने का काम किया गया था। पंचतंत्र का किसी विदेशी भाषा में पहला अनुवाद पुरानी फारसी (पहलवी,550 ई. पू. ) में किया गया था और उसके बाद एक अन्य विद्वान अब्दुल्ला इब्न अल-मुकाफ्फा द्वारा इसका अरबी में अनुवाद किया गया था। इन अनुवादों के माध्यम से ही पंचतंत्र का अनुवाद संसार की अनेक भाषाओं में सम्भव हुआ था। उस समय फारसी विश्व भाषा थी । मध्यकाल में भी संस्कृत के सैकड़ों ग्रंथों का अनुवाद फ़ारसी में किया किया गया था।
महाभारत के बाद फ़ारसी में वाल्मीकि-रामायण का फारसी अनुवाद एक बड़ी परियोजना थी। अकबर के आदेश और संरक्षण में रामायण के फारसी अनुवाद ने मुगल दरबार की कला में एक नई शैली का विकास किया था। रामायण के फ़ारसी अनुवाद के शानदार चित्र अपने प्रकृतिवाद, बारीक और महीन काम के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। इस विशिष्ट शैली को इंडो-फ़ारसी सौंदर्य का गतिशील संगम कहा जाता है।
यह सचित्र पांडुलिपि भारतीय संस्कृति और धार्मिक भावनाओं का अद्भुत चित्रण है। यह कलाकारों की उत्कृष्ट कारीगरी का भी एक नायाब उदाहरण है। इसमें कलाकारों के असाधारण रचनात्मक कौशल और उनकी तकनीकी दक्षता को भी देखा जा सकता हैं। पाठ और चित्र के बीच एक सुसंगत सेतु बनाकर कथा को और अधिक प्रभवशाली बनाया गया है।
इतिहासकार बताते हैं कि 6 नवंबर, 1589 को बदायूंनी द्वारा इसका तीन सौ पैंसठ पन्नों का अनुवाद प्रस्तुत करने के बाद केवल सात महीने में एक सौ छिहत्तर लघुचित्रों को बनाने का काम पूरा किया गया था।
रामायण के फारसी अनुवाद की शाही प्रति अब जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय संग्रहालय में है।
पांडुलिपि की शाही प्रति बनाने के अलावा अनेक प्रतियां बनाने की परंपरा भी मुगल काल में थी। इतिहासकारों ने यह भी उल्लेख किया गया है कि 1593 में सम्राट अकबर की मां हमीदा बानो बेगम के लिए भी रामायण की एक प्रति बनाई गई थी। इसके अलावा, अकबर के एक नवरत्न, कवि और सेना के प्रमुख कमांडर अब्दुर रहीम खानखाना ने सम्राट की अनुमति से रामायण की एक प्रति अपने लिए तैयार कराई थी।