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राजस्थान में सियासी संकट जारी है, गहलोत समर्थक सचिन पायलट के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को कतई तैयार नहीं हैं. वो बार-बार दो साल पहले हुई एक 'बग़ावत' की याद दिला रहे हैं.
"आलाकमान को यह ध्यान रखना चाहिए कि दो साल पहले बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गिराने की साज़िश किन लोगों ने रची थी."- डॉक्टर सुभाष गर्ग, गहलोत समर्थक राज्य मंत्री
'आज हाईकमान में बैठा हुआ कोई आदमी ये बता दे कि कौन से दो पद हैं अशोक गहलोत के पास जो आप उनसे इस्तीफ़ा मांग रहे हो. कुल मिलाकर एक पद है मुख्यमंत्री का, जब दूसरा पद मिल जाए तब जाकर बात उठेगी. ये सारा षडयंत्र है....जिस षडयंत्र ने पंजाब खोया, वो राजस्थान भी खोने जा रहा है. हम लोग संभल जाएं, तभी राजस्थान बचेगा, वरना राजस्थान भी हाथ से जाएगा.'- शांति धारीवाल, राजस्थान सरकार में मंत्री
'हम सभी विधायक अशोक गहलोत के साथ हैं. अगर विधायकों की भावना के अनुरूप निर्णय नहीं लिया गया तो क्या सरकार चलेगी. विधायकों के सुझाव का मान नहीं रखा गया तो सरकार गिरने का ख़तरा तो पैदा हो ही जाएगा- संयम लोढ़ा (निर्दलीय विधायक)
'गहलोत समर्थक विधायकों ने शर्त रखी कि गहलोत के वफ़ादार 102 विधायकों में से ही किसी को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए, सचिन पायलट या उनके ग्रुप में से नहीं. हमने उनसे कहा कि आपकी भावनाओं को कांग्रेस अध्यक्ष को बताया जाएगा, लेकिन वो अड़े रहे कि उनकी शर्तें प्रस्ताव का हिस्सा होना चाहिए. कांग्रेस के 75 साल के इतिहास में कभी भी सशर्त प्रस्ताव नहीं आया है. प्रस्ताव एक लाइन का होता है और कांग्रेस अध्यक्ष को सब बातों की जानकारी दी जाती है और फिर वो निर्णय करती हैं.'- अजय माकन, राजस्थान में कांग्रेस के पर्यवेक्षक
इन तीन बयानों से साफ़ है कि राजस्थान में कांग्रेस का सियासी संकट कितना गहरा हो चुका है.
कहा भी जाता है कि सियासत में जो दिखता है वो होता नहीं है, और जो होता है वो दिखता नहीं है. जादू दिखाने के मामले में भी कुछ ऐसा ही होता है. कहने की ज़रूरत नहीं कि कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर चुके 'जादूगर' अशोक गहलोत का ये जादू भी कांग्रेस आलाकमान के लिए पहेली ही साबित हो रहा है.
पार्टी को लग रहा है कि राजस्थान के इस सियासी संकट ने बीजेपी को एक नया हथियार दे दिया है और वो इस बहाने राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही 'भारत जोड़ो यात्रा' को निशाना बना रही है.
मामला और उलझता देख अब कहा जा रहा है कि राजस्थान में नेतृत्व में बदलाव पर फ़ैसला कुछ दिनों के लिए टाला जा सकता है, कम से कम 30 सितंबर तक, जो कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की आख़िरी तारीख़ है.
हालाँकि मीडिया में आ रही ख़बरों के मुताबिक माकन के अलावा राजस्थान भेजे गए एक और पर्यवेक्षक मल्लिकाअर्जुन खड़गे से गहलोत ने कहा, 'जो भी हुआ वो नहीं होना चाहिए था', लेकिन उन्होंने साफ़ तौर पर इस पूरे मामले में अपनी किसी तरह की भूमिका से इनकार किया.
छवि पर असर
जानकार मानते हैं कि राजस्थान में पिछले 48 घंटों में जो कुछ हुआ है उसमें बहुत कुछ बदला है और उससे आलाकमान के सामने अशोक गहलोत की छवि पर असर पड़ा है.
पत्रकार शेखर अय्यर कहते हैं, "अशोक गहलोत को लग रहा था कि उन्हें अध्यक्ष बनाने के लिए राहुल और सोनिया दोनों का समर्थन है. वो मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ना चाहते थे. वो कोचीन में राहुल गांधी से मिले भी, और राहुल ने साफ़ तौर पर कहा कि एक व्यक्ति, एक पद वाला सिद्धांत रहेगा ही. इसके बाद देखने में आ रहा है कि उनसे समर्थकों ने बाग़ी रुख़ अपना लिया है."
'सचिन मंज़ूर नहीं'
अशोक गहलोत अगर मुख्यमंत्री पद छोड़ते हैं तो वह अपनी जगह किसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने की ख्वाहिश रखते हैं, ये तो अभी साफ़ नहीं है, लेकिन इतना तय है कि वो सचिन पायलट को ये कुर्सी देने को कतई तैयार नहीं हैं.
गहलोत के करीबी मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि 'साल 2020 में जब कांग्रेस सरकार पर संकट आया था तब सोनिया गांधी ने निर्देश दिए थे कि हर हालत में सरकार को बचाना है. तब 35 दिनों तक लगातार बाड़ेबंदी में रहे. जो लोग उस वक्त सरकार गिराने की साजिश में शामिल थे उन्हें आज तवज्जो दी जा रही है.'
धारीवाल ने गहलोत समर्थकों के लिए 'अनुशासनहीनता' की बात कहने वाले कांग्रेस पर्यवेक्षक अजय माकन पर भी निशाना साधा. धारीवाल ने कहा, "वो उन लोगों पर क्यों नहीं बोलते जिन्होंने पार्टी के साथ गद्दारी की थी और सरकार को संकट में डाल दिया था."
धारीवाल ने दावा किया कि राजस्थान से कांग्रेस को हटाने की साजिश रची जा रही है. उन्होंने कहा, "इस षडयंत्र में कई और लोग भी शामिल हैं. अगर पार्टी आलाकमान सबूत मांगेगा तो मैं सबूत पेश कर दूँगा."
सचिन पायलट की वो बग़ावत
दो साल पहले जून 2020 में भी सचिन पायलट और अशोक गहलोत सामने आ गए थे. तब सचिन पायलट ने गहलोत के ख़िलाफ़ खुलकर बगावत कर दी थी.
दरअसल, जून 2020 में राजस्थान में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होना था. मुख्यमंत्री गहलोत को आशंका थी कि कहीं पायलट गुट दगाबाज़ी न कर दे, इसलिए उन्होंने विधायकों को एकजुट रखने की तगड़ी रणनीति बनाई.
राज्यसभा चुनावों के नतीजे हालाँकि गहलोत की उम्मीदों के मुताबिक ही रहे, लेकिन इसके बाद गहलोत ने यदा-कदा पायलट पर निशाना साधना शुरू कर दिया. देखते ही देखते कुछ दिनों में ही दोनों पालों में वाकयुद्ध तेज़ हो गया.
मामला तब बुरी तरह बिगड़ गया जब राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी एसओजी ने सचिन पायलट को विधायकों की ख़रीद-फरोख्त मामले में पूछताछ का नोटिस भेज दिया.
हालाँकि बाद में ऐसा ही नोटिस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी भेजा गया. लेकिन गहलोत के इस 'जादू' से पायलट समर्थक बुरी तरह भड़क गए. पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली चले आए थे और विद्रोह का ऐलान कर दिया था.
इसके बाद पायलट अपने साथी विधायकों के साथ हरियाणा में मानेसर के एक रिज़ॉर्ट में रुके थे. उस वक़्त दावा किया गया था कि पायलट के साथ करीब दो दर्जन विधायक हैं. उनके समर्थक अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल करने की ज़िद पर अड़े थे.
कई दशकों का सियासी अनुभव रखने वाले अशोक गहलोत को विधायक दल में इस संभावित टूट और उसके ख़तरों का बखूबी अंदाज़ा था, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में कभी भी रक्षात्मक रुख़ अपनाते नज़र नहीं आए.
उन्होंने गुर्जर नेता और राजेश पायलट के पुत्र सचिन को न केवल खुली चुनौती दी बल्कि जमकर खरी खोटी भी सुनाई. यहाँ तक कि मीडिया से बात करते हुए उन्होंने सचिन को निकम्मा तक डाला था.
आक्रामक गहलोत ने इस पूरे घटनाक्रम के दौरान कांग्रेस आलाकमान को भरोसे में लिए रखा, नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस ने सचिन पायलट को सभी ज़िम्मेदारियों से मुक्त कर दिया.
साथ ही उनके समर्थक दो मंत्रियों रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह को भी बर्खास्त कर दिया.
राजस्थान में कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर एक बार फिर धींगामुश्ती शुरू हो गई है. और ऐसे में गहलोत समर्थक एक बार फिर उस दो साल पुरानी घटना को याद दिलाकर सचिन पायलट को सत्ता से दूर करने की कोशिश में जुट गए हैं. (bbc.com/hindi)