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नई दिल्ली, 27 सितंबर। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संविधान के 103वें संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
संविधान के इस संशोधन के तहत सरकार ने कॉलेज में दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित की है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ बीते कुछ दिनों से इस कानूनी सवाल पर सुनवाई कर रही थी कि क्या ईडब्ल्यूएस कोटा ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता जहां सरकार का पक्ष रख रहे थे. तो वहीं शिक्षाविद मोहन गोपाल और दूसरे अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता ईडब्ल्यूएस कोटे के विरुद्ध बहस कर रहे थे.
शिक्षाविद् मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को बेंच के समक्ष सबसे पहले दलीलें पेश की थीं. अपनी दलील में ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए गोपाल ने इसे पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया.
रवि वर्मा कुमार, पी विल्सन, मीनाक्षी अरोड़ा, संजय पारिख, के एस चौहान और अधिवक्ता शादान फरासत सहित वरिष्ठ वकीलों ने भी आरक्षण की आलोचना करते हुए कहा कि इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के गरीबों को भी शामिल नहीं किया गया है.
वहीं संशोधन का बचाव करते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये ईडब्ल्यूएस कोटा सामान्य वर्ग के ग़रीब परिवारों के लिए ज़रूरी है.
शीर्ष अदालत ने इस मामले में दायर की गईं कम से कम 40 याचिकाओं पर सुनवाई की. इनमें 2019 में 'जनहित अभियान' द्वारा दायर की गई प्रमुख याचिका सहित अधिकांश याचिकाओं ने संविधान संशोधन (103 वां) अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती दी है. (bbc.com/hindi)