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जिस बच्चे को दो बार मृत बताया गया वो ज़िंदा निकला, एक मां के संघर्ष की कहानी
28-Sep-2022 10:01 PM
जिस बच्चे को दो बार मृत बताया गया वो ज़िंदा निकला, एक मां के संघर्ष की कहानी

इमेज स्रोत,MUNNI DEVI FAMILY

-चंदन कुमार जजवाड़े

अपने बेटे को ज़िंदा साबित करने के लिए उन्होंने एक नहीं तीन बार, तीन अलग-अलग कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

तीन कोर्ट, कई पन्नों के दस्तावेज़ और सात साल लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद माँ ने ये साबित तो कर दिया कि उसका बेटा ज़िंदा है.... लेकिन माँ की ये जीत अधूरी है क्योंकि माँ-बेटे के बीच फिलहाल डीएनए टेस्ट की दीवार खड़ी है.

मामला बिहार के गया का है. मुन्नी देवी एक ऐसी माँ हैं जिनका बेटा उनकी आंखों के सामने तो है, लेकिन काग़जों पर पिछले कई सालों से मृत है.

क्या है पूरा मामला?
मुन्नी देवी पर अपने ही पति के क़त्ल का आरोप है. 24 मई 2015 को पति का शव मिलने के कुछ ही घंटों के भीतर पुलिस ने मुन्नी देवी को गिरफ़्तार कर लिया था.

गिरफ़्तारी से पाँच महीने पहले ही मुन्नी देवी ने एक बच्चे को जन्म दिया था. इस वजह से गिफ़्तारी के बाद उनका पांच महीने का बच्चा अपनी मां से बिछड़ गया.

आठ महीने जेल में रहने के बाद, जनवरी 2016 में मुन्नी देवी को ज़मानत मिल गई. उसके बाद मुन्नी देवी अपना बच्चा मांगने ससुराल पहुँचीं.

ससुराल पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि उसके बच्चे को डायरिया हो गया था जिसके बाद उसकी मौत हो गई.

बच्चे को मृत साबित करने के लिए मुन्नी देवी को सरकारी दस्तावेज़ों के अलावा गांव के मुखिया और सरपंच की तरफ से जारी मृत्यु प्रमाण पत्र भी दिखाया गया.

लेकिन एक मां को इन सरकारी काग़ज़ों पर यक़ीन नहीं हुआ.

मुन्नी देवी को उसी घर में एक बच्चा खेलते हुए दिखता था. उसकी उम्र भी मुन्नी देवी के बच्चे जितनी ही थी.

बीबीसी से बातचीत में मुन्नी देवी ने बताया, "जब मैंने इस बच्चे को खेलते हुए देखा तो मेरे मन ने कहा कि ये मेरा बच्चा है. पांच महीने के बच्चे को छोड़कर गई और अब वो सात साल का हो चुका था. फिर कुछ गांव वालों और मेरे एक चचेरे देवर ने चुपके से बताया कि ये मेरा ही बच्चा है."

एक तरफ़ सरकारी दस्तावेज़, लगभग पूरा गांव और ससुराल वाले तो दूसरी तरफ़ अकेली मुन्नी देवी.

मुन्नी देवी छिप-छिपकर अपने ससुराल पर नज़र रखने लगी और वहां घर के बाहर खेलने वाले एक बच्चे पर भी ग़ौर करने लगी.

फिर 2017 में मुन्नी देवी ने गया ज़िला कोर्ट में अर्ज़ी दी कि उनका बच्चा उन्हें वापस दिलाया जाए.

मुन्नी देवी ने अपने बच्चे के अपहरण का आरोप लगाकर अपने ससुराल वालों पर भी केस किया था, लेकिन गया ज़िला अदालत ने उनके ससुराल वालों को ज़मानत दे दी.

एक ही बच्चे को दो बार मृत घोषित किया

इस जाँच में एक बात अच्छी हुई. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस जांच में एक पुलिस अधिकारी ने रिपोर्ट दी कि कुछ गांव वालों के मुताबिक़ बच्चा जीवित है, जबकि कुछ कहते हैं कि बच्चे की मौत हो गई है.

यही वो वक़्त था जब मुन्नी देवी की आस बंधी. पूरे मामले में आगे की जाँच दूसरे पुलिस अधिकारी ने की.

लेकिन कुछ दिन पहले जो मामला मुन्नी देवी के पक्ष में लग रहा था, नए पुलिस अधिकारी ने जाँच रिपोर्ट को पूरी तरह पलट दिया.

दूसरी जांच के बाद पुलिस ने मुन्नी देवी के बच्चे की मौत की रिपोर्ट दे दी, यानी सरकारी तौर पर भी बच्चे को एक बार जीवित बताया गया, फिर मृत.

उसके बाद मुन्नी देवी पूरी तरह टूट गईं.

लेकिन माँ तो माँ होती है. बच्चा सामने हो और सीने से ना लगा सके तो दिल तो कचोटेगा ही.

2019 में दूसरी बार मुन्नी देवी ने बच्चा पाने के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. इस बार मामला फ़ैमिली कोर्ट में पहुँचा जिसके पास सीमित अधिकार थे.

गया एसएसपी की तरफ़ से मामले की जांच में एक सब इंस्पेक्टर ने बताया कि बच्चा जीवित है.

लेकिन तभी मामले में तीसरी बार नया ट्विस्ट आया.

उसके बाद कोर्ट ने बच्चे को सामने लाने का आदेश दिया तो दूसरे सब इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट दी कि बच्चे की मौत हो चुकी है.

फ़ैमिली कोर्ट ने बच्चे की मौत की रिपोर्ट देखते हुए मामले को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया.

एक ही बच्चा दो बार मरा हुआ है और फिर दो बार पुलिस की जाँच में ज़िंदा कैसे हो सकता है?

ये जानने के लिए बीबीसी ने पूरे मामले में गया की एसएसपी हरप्रीत कौर से बात की.

हरप्रीत कौर ने पूरे मामले पर पुलिस का पक्ष रखा.

गया की एसएसपी हरप्रीत कौर ने बीबीसी को बताया, "हमारे सामने पटना नगर निगम की तरफ़ से जारी मृत्यु प्रमाण पत्र था. इसपर QR कोड भी लगा था. इसके अलावा मुखिया और सरपंच की तरफ से जारी मृत्यु प्रमाण पत्र भी था."

फिर बीबीसी ने मुन्नी देवी के गांव की उस वक़्त की मुखिया (2016) से बात की. उस वक़्त गांव की मुखिया इंदु देवी थीं. बीबीसी ने फ़ोन पर जब उनसे सम्पर्क किया तो उनके पति अजीत ने बीबीसी को बताया, "मुन्नी देवी के ससुराल वालों ने बच्चे की मौत के शोक में सर मुंडवा रखा था और 100 से ज़्यादा लोगों के साथ हमारे पास आए थे. सबने उस वक़्त गवाही दी थी कि बच्चे की मौत हो गई है."

अजीत के मुताबिक़, "अब जाकर हमें पता चला है कि मुन्नी देवी के ससुर चुपचाप बच्चे को लेकर रांची चले गए थे."

गांव के मुखिया और सरपंच के लेटर हेड पर ही बच्चे का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुआ था.

फ़ैमिली कोर्ट से अपने पक्ष में फ़ैसला न मिलने के बाद अपने बच्चे को पाने और ससुराल वालों को मिली ज़मानत के ख़िलाफ़ मुन्नी देवी पटना हाई कोर्ट पहुंचीं.

यहां अपने वकील अविनाश कुमार सिंह की मदद से मुन्नी देवी ने हेबियस कॉरपस के तहत एक याचिका दायर की. यानी किसी को ज़बरन बंदी बनाये जाने के ख़िलाफ़ कोर्ट में अपील की.

मुन्नी देवी के वकील अविनाश कुमार से बीबीसी हिंदी ने सम्पर्क किया.

अविनाश कुमार ने कहा, "मुन्नी देवी को ससुराल वालों पर शक़ पहले से ही था. ससुराल वालों ने पहले पति के क़त्ल के झूठे आरोप में जेल भिजवाया और फिर बच्चे की मौत का बहाना बनाया ताकि पति की संपत्ति में हिस्सा ना देना पड़े. जब पूरे मामले की एक-एक कड़ी जोड़ी गई तो मामला हमें पूरी तरह समझ आया."

अविनाश कुमार ने बताया कि जाति-बिरादरी और गांव का समर्थन ससुराल वालों के साथ होने की वजह से मुन्नी देवी बहुत हिम्मत नहीं जुटा पाईं.

अविनाश कुमार आगे कहते हैं, "हमारे सामने समस्या यह थी कि बच्चे की मौत का प्रमाण पत्र पटना म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने जारी किया था. लेकिन इस रिपोर्ट पर मुझे संदेह था. जब मैंने वहां संपर्क किया तो बताया गया कि इस तरह की जानकारी सूचना के अधिकार के क़ानून से बाहर है, इसलिए कोई सूचना नहीं मिल सकती. लेकिन मुन्नी देवी को इस तरह हारते देख मुझ से रहा नहीं गया. मैंने अपने स्तर पर और छान-बीन की.''

नगर निगम के किसी परिचित अधिकारी ने अविनाश कुमार को बताया कि यह मृत्यु प्रमाण पत्र जाली नज़र आ रहा है.

अविनाश कुमार ने इस जानकारी पर आगे खोज जारी रखी.

दलअसल देश में हर जन्म और मृत्यु की जानकारी सिविल रजिस्ट्री सिस्टम की वेबसाइट crsorgi.gov.in पर होती है.

अविनाश कुमार ने बताया, "जब मैंने इसके QR कोड को स्कैन किया तो मैं उस वेब पेज पर पहुंच गया, जहां यह प्रमाण पत्र पड़ा हुआ था. फिर मुझे निराशा हुई कि पीएमसी के अधिकारी बता रहे थे कि यह जाली दस्तावेज़ है."

लेकिन ग़ौर से देखने पर अविनाश कुमार चौंक पड़े क्योंकि वह वेबसाइट असल में फ़ेक थी.

"QR कोड को स्कैन करने के बाद वो इससे मिलते-जुलते एक वेबसाइट पर पहुंचे थे, न कि असली वेबसाइट पर. असल में किसी ने ऐसा एक फ़ेक वेब पेज भी बना रखा था."

ये जानकारी मिलने पर अविनाश कुमार थोड़े आश्वस्त हो गए थे.

8 सिंतबर 2022 को मामले की अगली सुनवाई थी.

मुन्नी देवी अपने वकील अविनाश कुमार के साथ सारी जानकारी जुटा कर पटना हाई कोर्ट में जज के सामने पेश हुईं.

पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में PMC (पटना म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन) कमिश्नर; गया और पटना के एसएसपी को 12 सितंबर को कोर्ट में पेश होने को कहा.

कोर्ट ने इस दिन 48 घंटे के अंदर बच्चे को रिकवर करने का आदेश दिया, लेकिन बच्चे को 16 घंटे के अंदर ही रिकवर कर लिया गया.

अब गांव वाले भी मान रहे हैं कि बच्चा मुन्नी देवी का ही है.

उधर, गया के मगध मेडिकल पुलिस थाने ने धोख़ाधड़ी, दस्तावेज़ों से छेड़छाड़ करने सहित कई मामलों में मुन्नी देवी के ससुर को गिरफ़्तार कर लिया है जबकि उनका जेठ (पति का बड़ा भाई) फ़रार है.

गया एसएसपी हरप्रीत कौर ने बीबीसी को बताया, "कोर्ट के आदेश पर बच्चे को चाइल्ड केयर सेंटर में रखा गया है और उसकी अच्छी देखभाल की जा रही है. फ़िलहाल हम मुन्नी देवी के फ़रार जेठ की तलाश कर रहे हैं ताकि इस तरह के फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाने वाले गिरोह का पता लगाया जा सके."

मुन्नी देवी के वक़ील के मुताबिक़, अब इस बच्चे की वैज्ञानिक आधार पर पुष्टि के लिए डीएनए जांच की जाएगी और उम्मीद है कि सात साल के बाद मां को उसका बेटा मिल जाएगा.

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