संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सोशल मीडिया की वजह से पुरानी बातें अब हमेशा गूंजते रहने का खतरा है..
29-Sep-2022 5:05 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  सोशल मीडिया की वजह से पुरानी बातें अब हमेशा गूंजते रहने का खतरा है..

Photo : Twitter

पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्मदिन अभी गुजरा, तो बिना हो-हल्ले के चले गया। उनके प्रशंसकों में से कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर उनकी कही यह बात याद दिलाई कि उन्हें उम्मीद है कि इतिहास उनके साथ अधिक रहमदिल रहेगा। यह बात मनमोहन सिंह ने अपने कटु आलोचकों की बातों के जवाब में कही थीं। ऐसे आलोचकों का अधिकांश हिस्सा इस बात के लिए उनका सबसे बड़ा आलोचक रहता था कि वे कम बोलते थे, धीमा बोलते थे, साधारण जुबान बोलते थे, दावे नहीं करते थे, और सपने तो बिल्कुल ही नहीं दिखाते थे। इन बातों की वजह से उनकी खिल्ली उड़ाने वाले लोगों की कमी नहीं थी, और ऐसे लोग उन्हें मौनमोहन सिंह कहा करते थे। आज पता नहीं लोगों को वह काम और सिर्फ काम करने वाला, और तकरीबन मौन रहने वाला प्रधानमंत्री याद पड़ रहा है। शायद इसलिए भी ऐसा हो रहा है कि वे बोलते कम थे, लेकिन उनके वक्त डॉलर की कीमत 62 रूपये ही थी, जो कि आज 82 रूपये की करीब हो गई है। उनके वक्त पेट्रोल 71 रूपये था, और डीजल 55 रूपये, अब आज तो इनके सौ-सौ रूपये पार करने के बाद लोग इस बारे में सोचना भी बंद कर चुके हैं कि आज क्या रेट है। गैस का सिलेंडर चुप रहने वाले प्रधानमंत्री के वक्त 410 रूपये का था, जो कि अब 11 सौ रूपये के पार है। देश की कमाई और नौकरियों के आंकड़े भी उस वक्त बहुत ऊपर थे, और आज मटियामेट हैं। लेकिन फिर भी इस देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को मलाल इस बात का है कि मनमोहन सिंह के वीडियो पर्याप्त संख्या में यूट्यूब पर नहीं हैं, और यही हिन्दुस्तानी वोटरों के एक तबके का सबसे बड़ा मलाल है।

लेकिन ऐसा मलाल उस वक्त और देखने लायक हो जाता है जब आज सोशल मीडिया पर मौजूद पुरानी तस्वीरें, पुराने ट्वीट, पुराने फेसबुक पोस्ट, पुराने बैनर-पोस्टर, और पुराने वीडियो देखने मिलते हैं। उस वक्त मनमोहन सिंह के खिलाफ सबसे अधिक बोलने वाले, उनकी सबसे अधिक खिल्ली उड़ाने वाले बहुत दमदार भाषण देने वाले लोगों के जो वीडियो आज सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं, वे यह भी याद दिलाते हैं कि लोगों को क्या-क्या नहीं करना चाहिए। जिस तरह के भाषण उस समय, 2014 के पहले तक प्रधानमंत्री पद की दौड़ में उतर चुके नरेन्द्र मोदी ने दिए, वे आज कब्र फाडक़र उनका पीछा कर रहे हैं। उस वक्त स्मृति ईरानी ने 410 रूपये की गैस के खिलाफ सिलेंडर लेकर जिस तरह के प्रदर्शन किए थे, उसके पोस्टर आज उनका भी पीछा कर रहे हैं। लोगों को खासकर एक वीडियो बार-बार देखने में बड़ा मजा आ रहा है जिसमें 62 रूपये के डॉलर वाले वक्त के मनमोहन सिंह की खिल्ली उड़ाते हुए मोदी कहते दिखते हैं कि जिस देश का रूपया गिरता है, उस देश का प्रधानमंत्री गिरा हुआ रहता है। रूपये के गिरते हुए दाम को लेकर मोदी की कही हुई और भी कई बातें आज उनका पीछा कर रही हैं। और लोगों के मन में, सोशल मीडिया पर उनकी जुबान से बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि जब रूपया एक डॉलर में 82 जितना गिर जाता है, तब प्रधानमंत्री कहां रहता है? क्या ऐसे रेट वाले रूपये वाला प्रधानमंत्री गिरा हुआ रहता है या उठा हुआ रहता है?

दरअसल चुनाव और राजनीति की गर्मी में अकेले मोदी ही नहीं, कुछ और नेता भी ओछी बातें कहते हैं, और इन्हीं बातों का इतिहास लोगों को औसत दर्जे का नेता, या बड़ा नेता बनाता है। और मोदी तो केन्द्र सरकार या अपनी पार्टी के केन्द्रीय संगठन में एक दिन भी काम किए बिना सीधे प्रधानमंत्री की दौड़ में पहुंचे हुए एक प्रादेशिक नेता थे, जिनका पेट्रोलियम और डॉलर से सीधे कोई वास्ता नहीं पड़ा था, इसलिए उनसे तो बोलने में कई तरह के गलत काम हुए, लेकिन श्रीश्री रविशंकर और रामदेव जैसे तथाकथित आध्यात्मिक लोग भी उस वक्त डॉलर और पेट्रोल के दाम तय कर रहे थे, और टीवी स्टूडियो में बैठकर नौजवान पीढ़ी को बरगला रहे थे कि उन्हें 70 रूपये लीटर का पेट्रोल अच्छा लगेगा या 35 रूपये लीटर का? यही दोनों डॉलर भी 35 रूपये में दिला रहे थे, और विदेशों से कालाधन लाकर हर हिन्दुस्तानी के खाते में 15-15 लाख रूपये भी डाल रहे थे, जैसा कि नरेन्द्र मोदी ने उस वक्त कहा था। लोगों की कही हुई कुतर्क की बातें दूर तक उनका पीछा करती हैं, और यूट्यब, इंटरनेट, सोशल मीडिया, और वॉट्सऐप की मेहरबानी से अब यह पीछा कभी खत्म ही नहीं होता है। यह अलग बात है कि अपने करोड़ों भक्त होने का दावा करने वाले ऐसे स्वघोषित आध्यात्मिक दुकानदार पूरी बेशर्मी से अब नये दावे करने में जुटे रहते हैं क्योंकि उनका इस बात पर अपार भरोसा है कि दुनिया में जब तक बेवकूफ जिंदा हैं, तब तक धूर्त भूखे नहीं मर सकते।

लेकिन राजनीति, आध्यात्म या सामाजिक जीवन के कुछ कामयाब और मशहूर लोग अगर सचमुच में महानता हासिल करना चाहते हैं, तो जिंदगी और चाल-चलन की बुनियादी ईमानदारी के अलावा उन्हें ऐसे झूठे दावे करने से भी बचना चाहिए। देश के प्रधानमंत्री के बड़े-बड़े दावों वाले वीडियो कुछ बरस के भीतर ही खुद उनकी बेइज्जती करते नजर आएं, यह बात किसी को भी महानता तक नहीं ले जा सकती। आज ऐसे वक्त कम बोलने की ताकत और खूबी समझ पड़ती है कि बड़बोलापन महानता तक पहुंचाने का एक्सप्रेस-हाईवे नहीं है, वह राह का रोड़ा भर है। बहुत से लोगों को इस नौबत को देखकर नसीहत लेना चाहिए। भक्तिभाव से परे जब किसी नेता का ईमानदार मूल्यांकन होता है, तो इनमें से कोई भी बात अनदेखी नहीं की जाती, यह याद रखते हुए ही लोगों को बोलना चाहिए। लेकिन लोगों को यह भी याद रखना चाहिए कि जब उनकी पार्टी के लोग बलात्कार करते पकड़ाएं, हत्या करते पकड़ाएं, और वे उस पर भी मुंह न खोलें, उनकी पार्टी की सरकारें मुजरिमों की तरह काम करें, फिर भी उस पर उनका मुंह न खुले, तो ऐसी चुप्पी की गूंज भी इतिहास से जाती नहीं है। और अब फेसबुक और ट्विटर जैसी मुफ्त की डायरियों की शक्ल में लोगों के पुराने कहे हुए, और न कहे हुए, सभी का रिकॉर्ड अच्छी तरह दर्ज रहता है।
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