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गर्भपात और मैरिटल रेप पर बड़ा फ़ैसला - क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
30-Sep-2022 8:32 AM
गर्भपात और मैरिटल रेप पर बड़ा फ़ैसला - क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने

-सर्वप्रिया सांगवान

अबॉर्शन या गर्भावस्था को खत्म करना... कई देशों में ये हमेशा वाद-विवाद का विषय रहा है. हाल ही में, अमेरिका में गर्भपात के ख़िलाफ़ वहां के सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया था जिसे लेकर अमेरिका में विरोध प्रदर्शन हुए और दुनिया भर में चर्चा.

अमेरिका में आए फ़ैसले को रूढ़िवादी और महिलाओं के अधिकार के ख़िलाफ़ बताया गया लेकिन भारत में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर ना सिर्फ़ स्पष्टता दी है बल्कि सुरक्षित गर्भपात के अधिकार के दायरे को भी बढ़ाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं को सुरक्षित और क़ानूनी गर्भपात का अधिकार देते हुए कहा है कि अविवाहित महिलाएं भी 24 हफ़्ते तक की गर्भावस्था को ख़त्म करवा सकती हैं.

कोर्ट ने ये भी कहा कि वैवाहिक जीवन में पति के ज़बरन शारीरिक संबंध बनाने की वजह से हुई गर्भावस्था भी एमटीपी एक्ट यानी मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी क़ानून के दायरे में आती है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच एक 25 साल की अविवाहित महिला की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें 24 हफ़्ते की प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की मांग की गई थी.

इससे पहले महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी लेकिन कोर्ट ने ये कहते हुए मना कर दिया था कि एमटीपी क़ानून में अविवाहित महिलाओं के बारे में नहीं कहा गया है.

1)अगर प्रेग्नेंसी 20 हफ़्ते से ज़्यादा की नहीं है.

2)अगर 20 हफ़्ते से ज़्यादा की है लेकिन 24 हफ़्ते से कम है लेकिन प्रेग्नेंट महिला की जान को ख़तरा है या उनके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को नुक़सान होने का ख़तरा है तो दो डॉक्टरों की राय के बाद प्रेग्नेंसी टर्मिनेट हो सकती है.

3)अगर ये ख़तरा है कि होने वाले बच्चे को कोई गंभीर शारीरिक या मानसिक बीमारी होगी तो प्रेग्नेंसी टर्मिनेट की जा सकती है.

इसके अलावा रेप सर्वाइवर्स, नाबालिग लड़की, मानसिक विकलांग महिलाओं को भी 24 हफ़्ते तक प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करवाने का अधिकार है और इसके लिए उन्हें कोर्ट की इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं होगी.

साथ ही ऐसी महिलाएं जिनकी प्रेग्नेंसी के बीच में ही वैवाहिक स्थिति बदल गई हो, जैसे कि तलाक़ हो गया हो या महिला के पति की मौत हो गई हो...तो वे भी एमपीटी एक्ट के दायरे में 24 हफ़्ते तक गर्भपात करवा सकती हैं.

कोर्ट ने अपने फ़ैसले में लिखा है कि कई बार क़ानूनी कार्रवाई के डर से मेडिकल प्रैक्टिशनर 20 हफ़्ते की गर्भावस्था ख़त्म करने से मना कर देते हैं और अदालतों में महिलाओं की बढ़ती याचिकाएं इसका सबूत हैं.

यानी उन्हें एक सुरक्षित गर्भपात करवाने में भी अड़चनें आती हैं जिसकी इजाज़त क़ानून ने उन्हें पहले से ही दे रखी है. फ़ैसले में ये भी कहा गया कि अविवाहित महिलाओं को लेकर भी एक गलत धारणा है कि उन्हें गर्भपात करवाने की इजाज़त नहीं है.

इसकी वजह से महिला और उनके पार्टनर को गर्भपात करवाने के लिए किसी झोलाछाप डॉक्टर के पास जाना पड़ता है. ऐसी जगहों पर सुविधाओं के अभाव में कभी-कभी महिलाओं की जान पर भी बन आती है.

कोर्ट की हिदायत है कि एक बालिग महिला एमटीपी एक्ट के दायरे में अपनी मर्ज़ी से गर्भपात का फ़ैसला ले सकती है और उन पर उनके परिवार या पति की इजाज़त का ज़ोर ना डाला जाए. सिर्फ़ नाबालिग या मानसिक रूप से विकलांग महिलाओं के मामले में ही गार्जियन की इजाज़त की ज़रूरत है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आख़िरकार ये महिला का ही अधिकार है कि वह अपनी परिस्थिति देखते हुए इस मामले में फ़ैसला करे.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "असुरक्षित गर्भपात को रोका जा सकता है. मानसिक स्वास्थ्य के बारे में हमारी समझ पर और विचार करना होगा. गर्भवती महिला के परिवेश का ध्यान रखना चाहिए. शादीशुदा महिलाएं भी पति की ज़ोर-ज़बरदस्ती और रेप का शिकार हो सकती हैं."

हालांकि कोर्ट ने 'मैरिटल रेप' यानी 'वैवाहिक बलात्कार' को सिर्फ़ एमटीपी क़ानून के संदर्भ में ही समझे जाने की बात कही है क्योंकि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के दायरे में वैवाहिक बलात्कार अभी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट की अन्य बेंच के पास ये मामला लंबित है.

लेकिन उनके इस कथन से भविष्य में मैरिटल रेप को लेकर आने वाले फैसलों के लिए भी रास्ता दिखाई देता है. (bbc.com/hindi)

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