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बूढ़ी आँखों को लाठी का सहारा और हमारे सामाजिक सरोकार
30-Sep-2022 3:33 PM
 बूढ़ी आँखों को लाठी का सहारा और हमारे सामाजिक सरोकार

डॉ . अरविन्द नेरल

1 अक्टूबर अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर विशेष

बहुत दिन पहले एक कहानी सुनी थी एक वृद्ध के उस संदूक की , जिस पर लटकता मोटा ताला उसके बेटों और बहुओं को यह एहसास कराता रहता था कि बूढ़े के पास अब भी कोई मोटी रकम है और उसे चतुराई के साथ थोड़ी सी चाटुकारी और सेवा टहल करके हथिया लिया जा सकता है। लेकिन वृद्ध ने जब आखरी सांस तो उस मोटे ताले और खाली संदूक की पोल खुली। फिर तो उसकी आत्मा को जमकर कोसा गया।

जी भर जली कटी सुनाई गई , जो इतने लंबे समय तक हर किसी को धोखे में रखकर मुफ्त में इतनी सेवा टहल करवाता रहा । लेकिन किसी को इस घटना के मूल कारण बूढ़ापे के उस दर्द का एहसास नहीं हुआ बुढ़ापे की बेचारगी का वह दर्द , जिसका बोझ वह लाचार बूढ़ा स्वयं बरसों तक ढोता रहा । महज दो निवालों की भूख के चलते बुढ़ापे की यह दास्तान कोई हवाई कयास नहीं कोरी कल्पना अथवा गप नहीं , बल्कि 7 • यथार्थ को झेलते जीवन की दास्तान है , उस निराश्रित से असहाय वृद्ध के जीवन की , जिसके हाथ में टेक लेने के लिए सिर्फ लाठी ही तो है।

जीवन के चौथेपन की मजबूरियों और मोहताजी की गूंज आज हर घर या हर आलीशान कोठी के बंद झरोखों के भी बाहर तक सुनाई देती है । सफेद पत्थरों से बने बेटों के आलीशान भवन में एक ऐसी अंधेरी कोठरी भी होती है , जहां घर के फालतू सामान के साथ साथ पिता को भी रख दिया जाता है। भारी पर्दों वाले घरों की कैसी बेपर्दगी है यह जो इन घरों की नींव रखने वालों कोउफ तक नहीं करने देती ।

जिन चरणों की धूल कभी हर माथे की शोभा होती थी , उसी से आज घर की चौखट के मैली होने की सोच हमारे सामाजिक सांस्कृतिक गिरावट की पराकाष्ठा है। आज की अपसंस्कृति से विकृत जीवन शैली वास्तव में हर बात को उससे होने वाले लाभ और हानि के पैमाने पर परखती है । वृद्ध भी इसी परख का शिकार होकर रह गये हैं। दादा दादी, नाना नानी के साथ नाती पोतों का हाथ पकडक़र चलना , उनके साथ - - स्कूल जाना , खाना पीना , सोना अब किस्से कहानी के अंग बनकर रह गए हैं । उनके दोस्त ( नाती पोते ) भी कंप्यूटर फ्रेंडली हो चले हैं । उपेक्षित बुढ़ापा सुबह उठते ही ईश्वर से मौत की दुआ मांगता है इसलिए उनके दर्द को समझने के लिए शब्दों की नहीं , संवेदना की जरूरत है।

आजादी के वक्त सन् 47 में जहां जीने की औसत उम्र 35 वर्ष के आसपास हुआ करती थी , वहीं आज औसतन 6 4 वर्ष की उम्र तक मनुष्य जी रहा है । भारत में बुजुर्गों की संख्या कुल जनसंख्या का 9.6 प्रतिशत है। यह छोटी संख्या भी भारत की अत्यधिक जनसंख्या के संदर्भ में 138 मिलियन जैसा बड़ा आंकड़ा है।

एक अनुमानानुसार सन् 2025 तक यह संख्या 175 मिलियन ( लगभग 13 प्रतिशत ) होगी । जनसंख्या संबंधित कुछ और आंकड़े हैं जो बुजुर्गों की ओर अधिक ध्यान दिए जाने का आग्रह करते हैं । मसलन इसमें 90 प्रतिशत लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है । 80 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं 55 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाएं विधवा है और 73 प्रतिशत अशिक्षित है ।

 लगभग आधे बुजुर्गों को कोई न कोई लंबी बीमारी है और तकरीबन 4 मिलियन वृद्धजनों को मानसिक रोग है । सेवानिवृत्ति पर मिलने वाली आर्थिक सहायता महज 10 प्रतिशत नौकरीपेशा लोगों को ही नसीब है।  असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले 90 प्रतिशत लोगों को यह लाभ नहीं मिलता। 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस के अवसर पर समाज के इस महत्वपूर्ण वर्ग के प्रति हमें अपने उत्तरदायित्वों पर चिंतन मनन करने की जरूरत है ।

वृद्धजनों की ब?ती संख्या और उसके फलस्वरूप उनकी सामाजिक , आर्थिक , शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की और लोगों में चेतना और समझ पैदा करने की जरूरत है । अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने पर 60 . वर्ष से अधिक उम्र के लोग भी अपनी तरह की अलग रचनात्मक जिंदगी गुजर बसर कर सकते हैं और समाज को सक्रिय योगदान दे सकते हैं । एक ऐसे माहौल के निर्माण की आवश्यकता है कि जहाँ वे रिटायर होने के बाद भी टायर्ड थका हुआ ) महसूस न करें बल्कि अपने आपको रिडिप्लायड ( पुर्नस्थापित करते हुए जिंदगी के अंतिम पड़ाव को भी सार्थकता प्रदान कर सकें ।

एक निवेदन बुजुर्गों से कि उन्हें भी अपनी सोच बदलनी होगी । उन्हें अपनी बची क्षमता प्रतिभा का लाभ समाज व राष्ट्रहित में सुनियोजित प्रक्रिया से देना होगा । इसके लिए उनका संगठित होना आवश्यक है । वृद्धजन समाज व राष्ट्र निर्माण में अपने अनुभव और कौशल से योगदान दें , तो उनकी छवि बदलेगी अपने वर्चस्व और आदर सम्मान की लड़ाई उन्हें स्वयं ढ्ढ स्न लडऩी होगी । ढलती आयु में भी अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हुए उन्हें परिवार व समाज में स्थान बनाना होगा । समाज के विभिन्न आयु वर्ग के लोगों के साथ सामंजस्य बनाए रखना भी वृद्धों के लिए आवश्यक है । समाज के इस बहुमूल्य और अनुभवी संसाधन का समाज की बेहतरी के लिए अधिकतम इस्तेमाल करना जरूरी है ।  पुराने लोग नया हौसला भी देंगे , बुजुर्गों से . मिलते रहिए दुआएं देंगे क .  (चेयरमेन आश्रय लायन्स वृद्धाश्रम)

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