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गांधी जयंती: जब चर्चिल ने पूछा- ‘गांधी मरे क्यों नहीं अब तक?’ - विवेचना
02-Oct-2022 9:59 AM
गांधी जयंती: जब चर्चिल ने पूछा- ‘गांधी मरे क्यों नहीं अब तक?’ - विवेचना

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-रेहान फ़ज़ल

साल 1931 में जब महात्मा गांधी गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए तो वहां के सम्राट जॉर्ज पंचम ने उन्हें बकिंघम पैलेस में चाय पर बुलाया. पूरी अंग्रेज़ क़ौम ये देख कर दंग रह गई कि इस औपचारिक मौक़े पर भी गांधी एक धोती और चप्पल पहने राजमहल पहुंचे.

बाद में जब उनसे पूछा गया कि क्या इस पोशाक में सम्राट के सामने जाना उचित था तो गांधी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया था, "सम्राट ने जितने कपड़े पहने हुए थे वो हम दोनों के लिए काफ़ी थे."

इससे छह महीने पहले भी जब गांधी वायसराय लॉर्ड इरविन से मिलने गवर्नमेंट हाउस गए थे तब भी उन्होंने यही पोशाक पहन रखी थी.

तब कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता विंस्टन चर्चिल ने उसकी भर्त्सना करते हुए कहा था, "ये कितना ख़तरनाक और घिनौना है कि विलायत से बैरिस्ट्री पास कर आया शख्स अब राजद्रोही फ़कीर बन अधनंगा वायसराय के महल की सीढ़ियों पर दनदनाता हुआ चला जा रहा है और ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ नागरिक अवज्ञा का आंदोलन चलाने के बावजूद वहां जाकर सम्राट के प्रतिनिधि के साथ बराबरी से बैठकर समझौते की बातचीत कर रहा है."

सम्राट से मिलने के एक महीने के भीतर हुए गांधी गिरफ़्तार
जब गांधी गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने के बाद लंदन से बंबई पहुंचे तो उनका स्वागत करने के लिए बंदरगाह पर हज़ारों लोग खड़े थे.

डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिंस अपनी क़िताब 'फ़्रीडम एट मिडनाइट' में लिखते हैं, "गांधी ने अपने स्वागत में खड़े लोगों से कहा, मैं ख़ाली हाथ लौटा हूं. भारत को फिर से सविनय अवज्ञा का रास्ता अपनाना होगा. एक सप्ताह भी नहीं बीतने पाया था कि चाय की दावत पर सम्राट का मेहमान रह चुका शख़्स, फिर से शाही मेहमान बना दिया गया था लेकिन इस बार पूना की येरवड़ा जेल में."

अगले तीन वर्ष गांधी के जेल से अंदर बाहर जाने का सिलसिला चलता रहा. उधर लंदन में चर्चिल गरजते रहे, "गांधी को और हर उस चीज़ को जिसके लिए वो लड़ रहे हैं, कुचल देना होगा."

जब चर्चिल पर भारत को आज़ाद करने का दबाव पड़ा तो उन्होंने वो मशहूर जुमला बोला, "सम्राट ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को भंग करने के लिए तो मुझे प्रधानमंत्री नहीं बनाया है."

वर्ष 1942 में जब स्टैफ़र्ड क्रिप्स उनके प्रतिनिधि के तौर पर दिल्ली पहुंचे तो गांधी ने उनके प्रस्ताव पर अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा, "ये योजना किसी डूबते हुए बैंक के नाम काटा गया पोस्ट डेटेड चेक है."

उन्होंने क्रिप्स से कहा, "अगर आपके पास और कोई सुझाव नहीं है तो आप अगले जहाज़ से अपने देश लौट जाइए."

8 अगस्त, 1942 को कांग्रेस के सम्मेलन में गांधी ने जो शब्द कहे उनमें इतना आवेश था कि वो उनके मुंह से अजीब लगते थे. गांधी ने कहा, "मुझे तुरंत आज़ादी चाहिए. आज ही रात को. अगर हो सके तो भोर होने से पहले."

लेकिन भोर होने से पहले आज़ादी तो नहीं मिली गांधी को ज़रूर गिरफ़्तार कर लिया गया.

गांधी को पूना के आग़ा ख़ां महल में रखा गया
इस बार अंग्रेज़ों ने गांधी को जेल में न रख कर पूना में आग़ा ख़ां महल में रखा. आग़ा ख़ां महल पूना से पांच मील दूर था. ये एक दोमंज़िला भवन था जिसमें नौ बड़े शयनकक्ष थे. मुख्य भवन के चारों तरफ़ 70 एकड़ का अहाता था जिसमें 12 माली काम करते थे.

गांधी की गिरफ़्तारी के बाद आर्देशर एदुलजी केटली को महल की जेल का इंचार्ज बना दिया गया था.

केटली 1932 में येरवड़ा जेल के जेलर थे जब गांधी को वहां रखा गया था. केटली की मदद के लिए 76 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था.

इस बीच वर्षों से गांधी के सचिव रहे महादेव देसाई अचानक जेल में ही चल बसे थे. उनके निधन पर कस्तूरबा ने अफ़सोस प्रकट करते हुए कहा था, "उनकी मौत से बापू का दाहिना और बायां हाथ चला गया."

गांधी समाचार पत्रों में छपी उन ख़बरों से बहुत व्यथित थे जिनमें कुछ सरकारी वक्तव्यों में कहा गया था कि वो अंग्रेज़ों के दुश्मन देशों से मिले हुए थे. सरकार का ये भी कहना था कि गांधी की गिरफ़्तारी के बाद होने वाली हिंसा के लिए वो ख़ुद ज़िम्मेदार थे.

इन आरोपों से दुखी होकर गांधी ने वायसराय लिनलिथगो को पत्र लिखा कि वो 9 फ़रवरी से 21 दिनों का उपवास करना चाहते हैं.

लिनलिथगो ने इसके जवाब में लिखा कि "मैं राजनीतिक कारणों से उपवास के इस्तेमाल को राजनीतिक ब्लैकमेल के तौर पर देखता हूं जिसको नैतिक कारणों से कभी सही नहीं ठहराया जा सकता."

इससे पहले गांधी ने जब भी उपवास किया था उन्हें जेल से तुरंत रिहा कर दिया गया था. लेकिन इस बार लिनलिथगो और चर्चिल के इरादे दूसरे थे.

चर्चिल ने दिल्ली सूचना भिजवाई कि "अगर गांधी भूख से मर जाना चाहते हैं तो उन्हें ऐसा करने की पूरी छूट है."

आर्थर हर्मन अपनी किताब 'गांधी एंड चर्चिल द एपिक राइवलरी दैट डिस्ट्रॉएड द एम्पायर एंड फ़ोर्ज्ड अवर एज' में लिखते हैं, "गांधी का उपवास शुरू होने से दो दिन पहले सरकार ने उन्हें उपवास के दौरान जेल से बाहर जाने का प्रस्ताव दिया था. वायसराय ने उनसे कहा कि वो किसी के भी साथ जहां भी चाहें वहां जा सकते हैं. लेकिन उपवास समाप्त होने के बाद उन्हें आग़ा ख़ां महल लौटना होगा. गांधी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था."

चर्चिल की नज़र में गांधी का उपवास नाटक था
गांधी ने 9 फ़रवरी के बजाए 10 फ़रवरी से अपना उपवास शुरू किया. मीरा बेन लिखती हैं, "तीसरे दिन ही गांधी को उल्टियां होनी शुरू हो गईं. पांचवें दिन तक वो बहुत कमज़ोर और थके हुए दिखाई देने लगे. उन्होंने गीता पाठ करना भी छोड़ दिया."

वायसराय की कार्यकारी परिषद के कुछ भारतीय सदस्यों ने उन पर दबाव डाला कि गांधी को रिहा कर दिया जाए लेकिन लिनलिथगो टस से मस नहीं हुए.

गांधी के उपवास के दूसरे हफ़्ते में एमएस एनी, सर होमी मोदी और नलिनी रंजन सरकार ने विरोधस्वरूप कार्यकारी परिषद के अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.

चर्चिल उस समय मित्र देशों के सम्मेलन में भाग लेने कैसाब्लांका गए हुए थे. उन्हें गांधी की हर एक गतिविधि की जानकारी पहुंचाई जाती रही.

आर्थर हरमैन लिखते हैं, "चर्चिल को पूरा विश्वास था कि गांधी का उपवास एक सड़कछाप नौटंकी है. हो सकता है कि भारतीय उनके गुणों के कारण उनका सम्मान करते हों लेकिन उनकी नज़र में वो एक आध्यात्मिक नीम हकीम भर थे. लेकिन दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति फ़ील्ड मार्शल जैन स्मट्स ने उन्हें गांधी के बारे में आगाह किया था. चर्चिल के मन में स्मट्स के लिए बहुत सम्मान था. उनके विचार काफ़ी मिलते थे. लेकिन गांधी के बारे में उनकी राय अलग-अलग थी. स्मट्स का गांधी से पहले वास्ता पड़ चुका था. उन्होंने चर्चिल से साफ़ कहा कि वो गांधी को हल्के में न लें. लेकिन चर्चिल ने उनकी चेतावनी को मज़ाक में उड़ा दिया था."

गांधी की हालत बिगड़ी
19 फ़रवरी को सुशीला नैयर ने अपनी डायरी में लिखा, "कल यानी उपवास का आठवां दिन गांधी के लिए बहुत बुरा था. सारे दिन उनको सिर में तेज़ दर्द होता रहा. उन्हें लगा जैसे उनका सिर फट जाएगा. उन्होंने बोलना, सवालों के जवाब देना, देखना-सुनना सब बंद कर दिया."

अगले दिन गांधी ने दोपहर तक तो अपने आसपास के वातावरण में दिलचस्पी ली, लेकिन उसके बाद उनका सिर और कानों का दर्द और बेचैनी लौट आई. वो पलंग पर आंखें बंद कर पड़े रहे. उनकी आवाज़ एक फुसफुसाहट में बदल गई. अब उनमें इतनी भी ताकत नहीं रह गई थी कि वो बिस्तर पर अपने से मुड़ या अपने पैरों को फैला भी पाएं.

20 फ़रवरी को सब बंबई प्रेसिडेंसी के सर्जन जनरल उन्हें देखने आए तो उन्होंने कहा कि गांधी का अंत निकट है.

21 फ़रवरी को दिल्ली के महत्वपूर्ण लोगों की एक बैठक हुई. उन्होंने वायसराय से अपील कर कहा, "हमारा मानना है कि अगर गांधीजी बच जाते हैं तो शांति और सद्भावना के बढ़ावे के लिए रास्ता तैयार होगा लेकिन एक ब्रिटिश कैदी के रूप में उनकी मौत से ब्रिटिश सरकार के प्रति लोगों के बीच कटुता बढ़ जाएगी."

इस प्रस्ताव को तार द्वारा ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को भेजा गया.

चर्चिल ने तुरंत उसका जवाब देते हुए लिखा, "गांधी और दूसरे कांग्रेस नेताओं को जिस कारण से गिरफ़्तार किया गया है वो उन्हें बता दिया गया है और वो उसे समझ भी गए हैं. इन हालात के लिए ख़ुद श्री गांधी ज़िम्मेदार हैं."

पानी के साथ ग्लूकोज़ लेने का शक़
13 फ़रवरी को चर्चिल ने लिनलिथगो को पत्र लिख कर कहा, "मैंने सुना है कि जब जब गांधी ने उपवास का नाटक किया है, उन्होंने पानी के साथ ग्लूकोज़ का सेवन किया है. क्या आप इस बात की पुष्टि करवा सकते हैं?"

लिनलिथगो ने जांच कराने के बाद इसका जवाब देते हुए कहा कि ये सही नहीं है. ये भी एक अजीब संयोग था कि लगभग उसी समय जब गांधी की तबियत बिगड़ रही थी, चर्चिल भी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे.

अल्जियर्स से लौटने के एक हफ़्ते बाद उन्हें तेज़ सर्दी ने जकड़ लिया था. 16 फ़रवरी को उनको बहुत तेज़ बुख़ार हो गया. जब अगले दिन उनका एक्स रे लिया गया तो पता चला कि उनके फेफड़े पर एक धब्बा है और उन्हें निमोनिया हो चुका है.

70 की उम्र छू रहे शख़्स के लिए निमोनिया उस समय बहुत गंभीर बीमारी थी. 19 फ़रवरी से 25 फ़रवरी तक चर्चिल काम करने की हालत में नहीं थे.

लेकिन तब भी जब वॉशिंगटन में ब्रिटिश राजदूत लॉर्ड हैलिफ़ेक्स ने उन्हें गांधी के बारे में राष्ट्रपति रूज़वेल्ट की चिंता के बारे में बताया तो उन्होंने रूज़वेल्ट को तार भेज कर कहा, "ब्रिटिश सरकार किसी भी सूरत में गांधी के ख़िलाफ़ उठाए जा रहे कदमों को नहीं बदलेगी."

बीमारी की हालत में भी चर्चिल की नज़र थी गांधी के उपवास पर
उपवास के तेरहवें दिन यानी 23 फ़रवरी को गांधी के गुर्दों ने जवाब दे दिया.

सुशीला नैयर ने उस दिन की अपनी डायरी में लिखा, "गांधी का पानी को देखते ही जी मिचलाने लगा है. उनकी नाड़ी रुक-रुक कर चल रही है और वो क़रीब-क़रीब बेहोश से हो चले हैं."

उधर चर्चिल बीमारी की हालत में भी गांधी के उपवास पर नज़र रखे हुए थे. उनके ज़हन में रह-रह कर एक सवाल उठ रहा था कि गांधी कब मरेंगे?

25 फ़रवरी को उन्होंने सम्राट के लिए एक लंबे पत्र को डिक्टेट कराया जिसके अंत में उन्होंने लिखा, "पुराने पाखंडी गांधी अभी तक टिके हुए हैं, शायद उससे कहीं ज़्यादा जितना मुझे बताया गया था कि संभव है. मुझे तो शक़ है कि उनका उपवास असली भी है या नहीं?"

24 फ़रवरी को जाकर चर्चिल का बुख़ार उतरा. उसी दिन उन्होंने अमेरिकी नेता हैरी हॉपकिन्स को पत्र लिख कर कहा, "मैं निश्चित रूप से बेहतर महसूस कर रहा हूं और गांधी भी."

मार्टिन गिल्बर्ट लिखते हैं, "उन्होंने लिनलिथगो को भी पत्र लिखा, 'बुलेटिन्स से लग रहा है कि गांधी शायद बच जाएंगे. निश्चित रूप से किसी हिंदू डॉक्टर ने उनके पानी में ग्लूकोज़ या उस जैसी कोई चीज़ मिला दी होगी'."

गांधी के उपवास तोड़ने पर चर्चिल को ख़ुशी नहीं
26 फ़रवरी को चर्चिल ने फ़ील्ड मार्शल स्मट्स को लिखा, "मैं नहीं समझता गांधी का अभी ज़रा भी मरने का इरादा है."

तब तक गांधी का वज़न 20 पाउंड कम हो चुका था. लेकिन अगले दिन गांधी थोड़ा चैन से सोए.

सुशीला ने खुश होकर अपनी डायरी में लिखा, "सुबह गांधी कुछ बेहतर महसूस कर रहे हैं. उनकी आवाज़ थोड़ी ऊंची हुई है. लगता है कि उनको आराम मिला है और वो थोड़ा प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे हैं."

पूरे 21 दिन बाद गांधी ने अपना उपवास तोड़ा.

3 मार्च को कस्तूरबा ने उन्हें संतरे के रस का एक गिलास दिया जिसमें पानी मिला हुआ था. 21 दिन तक सिर्फ़ नमक का पानी और बीच बीच में एक या दो बूंद नींबू या मौसंबी का रस पीते रहने के बावजूद गांधी का मनोबल टूटा नहीं.

अपने ऊपर जो यातना उन्होंने खुद थोपी थी, उसे वो झेल गए. चर्चिल को इस ख़बर से ज़रा भी खुशी नहीं हुई.

उन्होंने वायसराय लिनलिथगो को तार दिया, "लगता है बुड्ढा दुष्ट व्यक्ति अपने तथाकथित उपवास के बाद पहले से भी बेहतर होकर निकलेगा."

बंगाल में सूखे से लाखों लोगों की मौत
विडंबना थी कि जहां गांधी स्वेच्छा से उपवास कर मौत के साथ आंख मिचोली खेल रहे थे, उसी समय बंगाल के लाखों लोग सूखे से मर रहे थे.

बर्मा (आज का म्यांमार) में ब्रिटेन की हार के कारण वहां से चावल का आयात होना बंद हो गया था. बंगाल की सरकार इस संकट के लिए तैयार नहीं थी.

वर्ष 1942 के अक्तूबर माह में पूर्वी बंगाल के तटीय इलाके में बहुत बड़ा समुद्री तूफ़ान आया था जिसने हज़ारों लोगों को मौत के मुंह में सुला दिया था और समुद्रतट के 40 किलोमीटर अंदर तक की धान की फ़सल पूरी तरह से नष्ट हो गई थी.

क्रिस्टोफ़र बेली और टिम हार्पर अपनी क़िताब 'फॉरगॉटेन आर्मीज़ फॉल ऑफ़ ब्रिटिश एशिया 1941-1945' में लिखते हैं, "अक्तूबर के मध्य तक कलकत्ता में मृत्यु दर 2000 प्रति माह पहुंच गई थी. हालत ये थी कि जब ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिक सिनेमा हॉल से पिक्चर देख कर निकलते थे तो उन्हें सड़क पर भूख से पीड़ित लोगों की लाशें दिखाई देती थी जिन्हें चील और कौवे खा रहे होते थे."

लेकिन चर्चिल पर इसका कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा था.

बंगाल के सूखे की अनदेखी
जब वायसराय वॉवेल ने पूर्वी भारत के अकाल पीड़ित ज़िलों को और अनाज भेजने की मांग की तो चर्चिल ने जानबूझ कर अनाज को भुखमरी झेल रहे बंगाल से हटा कर महायुद्ध में लड़ रहे अंग्रेज़ सिपाहियों को भेजने का फ़ैसला किया.

भारत का अपना अतिरिक्त अनाज सीलोन (आज का श्रीलंका) भेज दिया गया. ऑस्ट्रेलिया से आए गेहूं से भरे जहाज़ भारतीय बंदरगाहों पर न रोककर मध्य-पूर्व की तरफ़ भेज दिए गए.

अमेरिका और कनाडा ने भारत को खाद्य मदद भेजने की पेशकश की लेकिन उसे भी अस्वीकार कर दिया गया.

चर्चिल ने अकाल के बारे में वायसराय के ज़रूरी से ज़रूरी तार का जवाब देने की परवाह नहीं की थी. जब अधिकारियों ने उनके फ़ैसले से हो रही मौतों की तरफ़ उनका ध्यान दिलाया तो उन्होंने चिढ़ कर एक तार ज़रूर भेजा था, जिसमें उन्होंने पूछा था कि "गांधी अभी तक मरे क्यों नहीं?" (bbc.com/hindi)

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