संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गांधी की एक और बार हत्या अनायास नहीं, और महज इनके हाथों भी नहीं...
03-Oct-2022 4:21 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  गांधी की एक और बार हत्या अनायास नहीं, और महज इनके हाथों भी नहीं...

कोलकाता के अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर एक बड़ी सी तस्वीर छापी है जो कि एक दुर्गोत्सव की है। यह दुर्गा पूजा का ही सालाना वक्त चल रहा है, इसलिए इसमें अटपटा कुछ नहीं है सिवाय दुर्गा प्रतिमा में दुर्गा के हाथों मारे जाते महिषासुर के। महिषासुर की जगह गांधी जैसे दिखने वाले एक व्यक्ति की प्रतिमा बनाई गई है, और इसके पीछे हिन्दू महासभा का यह आयोजन है जिसमें गांधी को दानव की तरह पेश किया गया है। कहने को कल ही देश भर में गांधी जयंती मनाई गई, और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित तमाम लोगों ने गांधी को याद किया। लेकिन इस देश में गोडसे के भक्त हैं कि वे कहीं गांधी की तस्वीर को गोलियां मारते हैं, तो मध्यप्रदेश से गोडसे की भक्त, भाजपा की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर गांधी को गालियां देती हैं, और गोडसे की स्तुति करती हैं। इस बीच ऐसे संगठनों के लोग भी गांधी की स्तुति करते दिखते हैं जो कि जाहिर तौर पर गांधी-हत्या के पीछे शामिल थे, लेकिन आज हिन्दुस्तान में किसी भी तरह की सामाजिक मान्यता पाने के लिए गांधी स्तुति जरूरी रहती है, इसलिए वे भी मन मारकर गांधी जयंती पर श्रद्धांजलि देते दिखते हैं। अब ममता बैनर्जी के राज पश्चिम बंगाल में दुर्गा के हाथों गांधी का एक बार फिर कत्ल करवाते हुए हिन्दू महासभा के लोगों का कलेजा ठंडा पड़ा होगा क्योंकि पौन सदी पहले वे गांधी के शरीर को ही मार पाए थे, गांधी की सोच अब भी जिंदा है।

कुछ लोग हैरान हो सकते हैं कि गांधी के इस देश में यह हत्यारी सोच किस तरह आज भी चली आ रही है। ऐसे हैरान-परेशान लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि जो लोग छोटे-मोटे हिंसक संगठनों की तरह हमलावर तेवरों के साथ गांधी पर आज भी गोलियां चलाते हैं, उनके संगठन उतने छोटे भी नहीं हैं जितने छोटे वे दिखते हैं। आज भी जो एक हत्यारी सोच गोडसे को स्थापित करने में लगी है, वह बढ़ते-बढ़ते गांधी स्मृति संस्थानों तक पहुंच चुकी है, और गांधी-हत्या में कटघरे तक पहुंचने वाले, और सुबूत न होने से छूटने वाले सावरकर को गांधी के समानांतर खड़ा करने की कोशिश में लगी हुई है। गांधी स्मृति संग्रहालय के ट्रस्टी केन्द्र सरकार तय करती है, और इस समिति की पत्रिका ‘अंतिम जन’ के कवर पेज पर सावरकर को लेकर भीतर सावरकर की स्तुति छपी है और उनका लिखा हुआ छपा है। इस समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद हैं, और इसका औपचारिक प्रकाशन गांधी के मुकाबले सावरकर को खड़ा करने में लगा है। इस तरह की कोशिशें सरकार के कई अलग-अलग संगठन कर रहे हैं, और इन कोशिशों की नीयत समझना मुश्किल भी नहीं है।

हिन्दू महासभा जैसे छोटे दिखने वाले संगठनों के मार्फत जिस तरह गोडसे-पूजा हो रही है वह हिन्दुस्तानी जनता के बर्दाश्त का इम्तिहान है जो कि हर बरस कई बार कई तरह से लिया जाता है। जिस तरह किसी बीमारी से बचाव का टीका उसी बीमारी के वायरस की छोटी-छोटी मात्रा देकर लगाया जाता है, उसी तरह हिन्दुस्तान में गांधी के हत्यारों का महिमामंडन धीरे-धीरे करके इस हत्यारी सोच को मान्यता दिलाई जा रही है। जब किसी झूठ को हजार बार दुहराया जाता है, तो वह काफी लोगों द्वारा सच मान लिया जाता है। सावरकर से लेकर गोडसे तक का महिमामंडन तरह-तरह से किया जा रहा है, और गांधी के साथ जुड़े हुए राष्ट्रपिता नाम के शब्द को चुनौती भी लगातार दी जा रही है। आने वाले वक्त में जल्द ही सावरकर को भारतरत्न की उपाधि भी दी जा सकती है, और गांधी से राष्ट्रपिता की उपाधि हटाने की मांग तो चल ही रही है। यह भी समझने की जरूरत है कि भाजपा से जुड़े हुए संगठनों के लोग लगातार जिस तरह यह कोशिश करते हैं, और बीच-बीच में खुद भाजपा के औपचारिक नेता जिस तरह गांधी पर हमला करते हैं, और गोडसे-सावरकर की स्तुति करते हैं, इन सबको कतरा-कतरा मनमानी मानना गलत होगा। यह सब हिन्दुत्व की उस हमलावर सोच का हिस्सा हैं जो कि गांधी को मार डालने की वकालत करती है। देश में आज कई मुद्दों पर जनता का बर्दाश्त बढ़ाया जा रहा है। मुस्लिमों और दूसरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक माहौल खड़ा करके बहुसंख्यक हिन्दू तबके के अधिक से अधिक लोगों के बीच ऐसे हिंसक बर्दाश्त को बढ़ाया जा रहा है। इसी तरह कहीं मांसाहार के खिलाफ, तो कहीं लोगों की गैरहिन्दू उपासना पद्धति के खिलाफ, तो कहीं उनके पहरावे के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। तमाम मुस्लिमों को आतंकी साबित करने के लिए दुनिया भर के मुस्लिम देशों की मिसालें ढूंढ-ढूंढकर लाई जा रही हंै, और उन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। यह सिलसिला लगातार चल रहा है, और यह सिर्फ हिन्दू महासभा जैसे छोटे दिखते संगठन की अकेले की सोच हो, यह सोचना भी नासमझी होगी।

कोलकाता में दुर्गा पूजा जैसे धार्मिक, और जागरूकता से भरे हुए त्यौहार का ऐसा हिंसक, हत्यारा, और साम्प्रदायिक इस्तेमाल भी अगर इस देश के प्रधानमंत्री और बंगाल की मुख्यमंत्री को कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार नहीं कर सकता, तो फिर यही मानना होगा कि उनके मन में हिन्दू महासभा की इस प्रतिमा को लेकर कोई शिकायत ही नहीं है। एक तरफ तो बंगाल की इस बार की ही साज-सज्जा में कहीं पर किसी विदेशी कलाकार की पेंटिंग्स दिखती हैं तो कहीं ईसाईयों के सबसे बड़े तीर्थस्थान वेटिकन को दिखाते हुए दुर्गा पूजा की साज-सज्जा की गई है। बंगाल ऐसे उदार राजनीतिक विचार वाले धार्मिक समारोहों का प्रदेश है, लेकिन वहां पर हिन्दू महासभा जैसे नफरतजीवी लोगों ने गांधी की हत्या का ऐसा धार्मिक बेजा इस्तेमाल किया है। क्या इस देश में किसी हिन्दू की धार्मिक भावनाओं को इससे ठेस पहुंचती है?
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