संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नफरत की जहरीली हवा के बीच राहुल ताजी हवा के एक झोंके की तरह...
04-Oct-2022 4:19 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  नफरत की जहरीली हवा के बीच राहुल ताजी हवा के एक झोंके की तरह...

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कर्नाटक पहुंचे राहुल गांधी की एक आमसभा चल रही थी, और बारिश होने लगी। उन्होंने बिना रूके भाषण देना जारी रखा। इसकी तस्वीर कुछ फोटोग्राफरों ने कैद कीं, और सोशल मीडिया पर वे तस्वीरें छा गईं। यह बात भी खबर में नहीं आई कि राहुल गांधी ने उस मौके पर भाषण में क्या कहा, बस बारिश की परवाह किए बिना भाषण देना लोगों को छू गया। कुछ लोगों ने यह भी याद किया कि अभी साल-दो साल के भीतर ही शरद पवार भी महाराष्ट्र में इसी तरह भीगते हुए भाषण देते दिखे थे। कुछ लोगों ने दोनों तस्वीरों को जोडक़र एक कार्टून भी बनाया। हालांकि बारिश में कुछ देर भीग जाना सरहद पर गोलियां खाने सरीखा नहीं है, इसमें कोई बहुत बड़ी बहादुरी नहीं है, लेकिन आज देश की आबादी का एक हिस्सा नफरत से इतना थका हुआ है, उसकी वजह से इतनी दहशत में है कि उसने राहुल की इस पदयात्रा को हाथोंहाथ लिया है क्योंकि यह नफरत की बात नहीं कर रही है। लोगों के लिए हिन्दुस्तान में आज यह बात कुछ अटपटी है कि कोई नेता लगातार जनता के बीच चले, रोज कई भाषण दे, फिर भी नफरत की कोई बात न करे। इसलिए राहुल एक ठंडी और ताजी हवा के झोंके की तरह हैं जो कि नफरत से झुलसे हुए देश को राहत दे रहे हैं। उनकी एक तस्वीर ने लोगों को इतना छू लिया है कि मानो लोग किसी भली चीज को छूने के लिए तरसे हुए थे। जिस तरह रेगिस्तान में ठूंठ की तरह सूखा हुआ खजूर का पेड़ भी हरियाली लगता है, उसी तरह आज हिन्दुस्तान में गैरनफरती बातें राहुल को एक नायक की तरह पेश कर रही हैं।

यह मौका राहुल की चर्चा का कम है, यह देश के हालात पर चर्चा का अधिक है। नफरत इस हद तक बढ़ाई जा रही है कि यहां सामाजिक संस्कृति पर हमला करके धार्मिक कट्टरता उसे लहूलुहान कर दे रही है। आज की ही खबर है कि मध्यप्रदेश और गुजरात में बजरंग दल सरीखे निगरानी दस्तों ने नवरात्रि के गरबा कार्यक्रमों में पहुंचे गैरहिन्दुओं को ढूंढ-ढूंढकर निकालकर पीटा, और इन दोनों प्रदेशों में कई जगहों पर इसे लेकर तनाव खड़ा हो गया है। यह बहुत नई बात भी नहीं है, और पिछले कई बरस से ऐसा ही तनाव हर नवरात्रि पर होते आया है। जो बात हमारी समझ से परे है वह यह कि अगर किसी एक धर्म के आयोजक दूसरे धर्मों के लोगों को कट्टरता से बाहर रखना चाहते हैं, उसके लिए कानून भी अपने हाथ में लेने से नहीं हिचक रहे हैं, तो फिर दूसरे धर्मों के लोगों को ऐसे आयोजनों में शामिल होकर तनाव और टकराव क्यों बढ़ाना चाहिए? अगर आयोजकों ने जगह-जगह गैरहिन्दुओं के दाखिले पर रोक के नोटिस लगा रखे हैं, तो ऐसे आयोजनों में गैरहिन्दुओं को जाना क्यों चाहिए? इन लोगों को यह बात समझनी चाहिए कि हिन्दू धर्म के जो अधिक कट्टर और अधिक हिंसक लोग हैं, वे तो अपने ही धर्म के दलितों को किसी भी सवर्ण धार्मिक कार्यक्रम में नहीं घुसने देते, गांवों में आज भी सडक़ किनारे के चाय ठेलों पर दलितों के लिए अलग कप-गिलास रहते हैं, जिन्हें इस्तेमाल के बाद धोकर रखना भी उन्हीं की जिम्मेदारी रहती है। जो समाज अपने भीतर इतना हिंसक भेदभाव करता है, उस समाज में, उसके कट्टर धार्मिक कार्यक्रमों में घुसने की कोशिश दूसरे धर्म के लोगों को क्यों करनी चाहिए? इसलिए अब जब सामाजिक संस्कृति मारी गई है, और एक हिंसक धर्मान्धता राज कर रही है, तो किसी तबके को इस टकराव को बढ़ाना नहीं चाहिए, क्योंकि हर टकराव हवा में और अधिक जहर घोलते चलेगा।

जैसे ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा की चर्चा की, तो तुरंत ही यह दिखने लगा कि इस देश को जोडऩे की जरूरत कितनी है, क्यों है, और किस तरह इस देश को टुकड़ों में तोड़ दिया गया है। आज राहुल सरीखे नेता की जरूरत इसलिए है कि देश के अलग-अलग धर्मों के, अलग-अलग जातियों के लोगों को एक साथ रखना नामुमकिन सा हो गया है क्योंकि उन्हें बहुत बड़ी योजना और साजिश के तहत एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा किया गया है। अब तक राहुल गांधी जितना पैदल चले हैं, उन्हें भारत के मीडिया में कोई कवरेज चाहे न मिला हो, उन्हें जनसमर्थन भरपूर मिल रहा है। कदम-कदम पर घरेलू लोग भी सामने आकर उनसे लिपट रहे हैं, उनके साथ चल रहे हैं, जबकि रोजाना लंबा सफर तय करते हुए वे धीरे नहीं चल पा रहे हैं। फिर भी लोग हैं कि अपने बच्चों के साथ आ रहे हैं, बच्चे हैं कि राहुल से लिपट रहे हैं, और उनके साथ चल रहे हैं। जो एक बहुत ही साधारण बात होनी चाहिए थी, वह बात आज अनोखी सी लग रही है, क्योंकि बाकी देश की हवा बहुत जहरीली हो चुकी है। आज देश के सुप्रीम कोर्ट को भी देखें तो उसमें अलग-अलग कई अदालतों में धार्मिक नफरत के मामले इतने अधिक दिख रहे हैं कि ऐसा लगता है कि इस देश का सबसे बड़ा काम ही आज नफरत करना हो गया है, और अदालतों का काम ऐसी नफरत से जूझना रह गया है। ऐसे माहौल में भारत जोड़ो के शब्द ही लोगों को एक किस्म से राहत दे रहे हैं कि राजनीति में रहते हुए भी कोई व्यक्ति किस तरह जोडऩे की बात कर सकते हैं।

एक बार फिर नवरात्रि के गरबा को लेकर हो रहे तनाव की बात पर लौटें तो यह समझने की जरूरत है कि कोई भी धर्म अपने आम मिजाज की तरह, और अपने बनाए जाने के मकसद के मुताबिक, अपने सबसे कट्टर लोगों के कब्जे में जाता ही है। जो सांस्कृतिक आयोजन धर्म का सामाजिक विस्तार रहते थे, वे भी अब धीरे-धीरे कट्टर बना दिए गए हैं, और ऐसे में किसी भी धर्म को दूसरे धर्म के आयोजनों में दाखिल होने के बारे में सोचना नहीं चाहिए। इसी हिन्दुस्तान में अभी एक दशक पहले तक जो सामाजिक समरसता बची हुई थी, वह इन कुछ बरसों में ही पूरी तरह खत्म हो चुकी है, और यह खात्मा एक हकीकत बन चुका है। इसलिए यहां पर अभी आदर्श की अधिक बातों की कोई गुंजाइश उन आयोजनों में नहीं है जिनके पीछे कट्टर आयोजक हैं। इसलिए न सिर्फ दूसरे धर्मों के लोगों को ऐसे आयोजनों से दूर रहना चाहिए, बल्कि इन धर्मों के समझदार और सद्भावना वाले लोगों को यह सोचना चाहिए कि क्या वे ऐसे कट्टर आयोजनों में शामिल होना चाहते हैं?
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news