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-विष्णु नारायण
बिहार में होने जा रहे स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के प्रावधान को पटना हाई कोर्ट ने मंगलवार को 'अवैध' करार दिया है.
चीफ़ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग को ये निर्देश दिया कि अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए चिह्नित की गई सीटों को सामान्य वर्ग के लिए खोले जाने के बाद अधिसूचना जारी करने के बाद ही चुनाव कराए जा सकते हैं.
छुट्टी के दिन दिए गए हाई कोर्ट के इस फ़ैसले की वजह चल रही चुनाव प्रक्रिया में अनिश्चितता आ गई है. बिहार निकाय चुनाव के पहले चरण का चुनाव 10 अक्टूबर को निर्धारित है और इसमें हफ़्ते भर से भी कम समय रह गया है.
इस फ़ैसले के बाद अक्टूबर महीने में होने वाले 'नगर निकाय चुनाव' के संदर्भ में पटना हाई कोर्ट के फैसले पर विवाद छिड़ता नज़र आ रहा है.
सूबे में नगर निकाय चुनाव दो चरणों में 10 और 20 अक्टूबर को होने तय थे, लेकिन इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पटना हाई कोर्ट के भीतर जारी सुनवाई में मंगलवार को आए फैसले पर जदयू और भाजपा के नेतागण आमने-सामने आते नज़र आ रहे हैं.
हाई कोर्ट ने सूबे के भीतर होने वाले नगर निकाय चुनाव के संदर्भ में फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लिए आरक्षित 20% सीटों को जनरल कर नए सिरे से नोटिफिकेशन जारी करे.
जदयू और भाजपा आमने-सामने
एक तरफ जहां सत्तारूढ़ दल जदयू की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भाजपा पर थोथी और बेईमानी भरा बयान देकर अतिपिछड़ों/पिछड़ों की आंखों में धूल झोंकने का आरोप लगा रहे हैं. साथ ही कह रहे हैं कि यदि कोर्ट यह कह रहा है कि आयोग जातीय पिछड़ापन के आंकड़े और अनुपात की बात कर रहा है, तो उसी के लिए तो जातीय जनगणना की जरूरत है.
वहीं भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कोर्ट के फैसले पर कहा है कि अति पिछड़ों को नगर निकाय चुनाव में आरक्षण से वंचित करने के लिए नीतीश कुमार जिम्मेदार हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जातीय गणना से हाई कोर्ट के निर्णय का कोई सम्बन्ध नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी याचिका
यहां हम आपको बताते चलें कि सुनील कुमार नामक शख्स ने नगर निकाय चुनाव के भीतर जारी आरक्षण के फॉर्मूले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पटना हाई कोर्ट के भीतर सुनवाई चली.
इस संदर्भ में तीन सुनवाई हुईं. पहली और दूसरी सुनवाई 28 और 29 सितंबर को हुई थी, लेकिन तीसरी सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना अंतिम फैसला आज को सुनाया.
सरकार की दलील -चुनाव कराने का फैसला सही
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पटना हाई कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई हुई. राज्य की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विकास सिंह सरकार की तरफ से पक्ष रख रहे थे.
वहीं याचिका दाखिल करने वाले पक्ष का कहना था कि नगर निकाय चुनाव में आरक्षण के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी हुई. याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से ही कहा कि नगर निकाय चुनावों में आरक्षण की सीमा 50% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन बिहार में ऐसा ही हो रहा है. (bbc.com/hindi)