संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भारतीय लोकतंत्र में आज के जमींदारों के लठैतों के नए गिरोह
06-Oct-2022 3:49 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भारतीय लोकतंत्र में आज के जमींदारों के लठैतों के नए गिरोह

अभी अमरीका में बसे हुए एक भारतवंशी ने इस बात पर अध्ययन किया कि बॉलीवुड की फिल्मों का बायकॉट करने के जो फतवे ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर संगठित तरीके से चलाए जाते हैं, उनके पीछे क्या नीयत रहती है, और उनका क्या असर होता है। मुम्बई फिल्म उद्योग को लेकर तरह-तरह के बहिष्कार के हैशटैग ट्विटर पर चलाए जाते हैं, और अब यह आम जानकारी है कि इनके पीछे कौन सी ताकतें होती हैं। इस अध्ययन में भी यह मिला कि बायकॉट के फतवे देने वाले ऐसे लोग एक खास धार्मिक विचारधारा से जुड़े हुए हैं, और ऐसे फतवों के अलावा उनका अभियान साम्प्रदायिक नफरत भी रहता है। इससे यह भी निकलकर सामने आया कि ऐसे बहिष्कार के फतवों से सिनेमाघरों में फिल्मों पर चाहे जो असर पड़ता हो, मोटेतौर पर मुस्लिम कलाकारों के बहिष्कार के अभियान से उन्हें आगे काम मिलने में परेशानी होती है क्योंकि फिल्म निर्माता यह सोचते हैं कि इतने विवाद में क्यों पड़ा जाए। 

आज इंटरनेट पर टेक्नालॉजी की मदद से ऐसे एप्लीकेशन बनाए गए हैं जो कि एक साथ सैकड़ों ट्विटर हैंडल को चलाते हैं। बात की बात में कुछ दर्जन लोग इनकी मदद से ट्विटर पर एक अभियान शुरू कर सकते हैं, और हिन्दुस्तान जैसे कानून की मेहरबानी से जिसका विरोध करना हो उसके परिवार को हत्या और बलात्कार की धमकी भी दे सकते हैं, और उस पर कोई कार्रवाई न होने की गारंटी रहती है। देश की सबसे बड़ी अदालत के किसी जज के परिवार को इसी तरह की धमकी अगर मिली होती, तो अब तक केन्द्र सरकार से लेकर ट्विटर तक सभी कटघरे में होते, लेकिन लोकतंत्र में नौबत इतनी खराब होने के पहले भी कानून का राज कायम होने की गुंजाइश होनी चाहिए। अब जब तक देश का कानून जागता नहीं है, जब तक केन्द्र या राज्य सरकारों को सोशल मीडिया पर ऐसे जुर्म के खतरे समझ नहीं आते हैं, तब तक इन खतरों को आम जनता को ही समझना होगा। 

आज सोशल मीडिया पर हालत यह है कि किसी विचारधारा के प्रति समर्पित भक्तमंडली या भाड़े के लोग मिलकर किसी का भी जीना हराम कर सकते हैं। कानून ऐसे हमलों से किसी को नहीं बचाता, बल्कि हमलावर-मुजरिमों को ही बचाता है। नतीजा यह होता है कि जिस तरह एक वक्त गांवों में जमींदारों के लठैत रहते थे, और वे जमींदार की मर्जी से जिसे चाहे उसे कूट आते थे, आज भी हिन्दुस्तान के सोशल मीडिया में ऐसे ही लठैत रात-दिन अतिसक्रिय हैं, और इस देश के साम्प्रदायिक सद्भाव को खत्म करने में जुटे हुए हैं। आज अगर अमरीका में बैठे हुए कोई व्यक्ति हिन्दुस्तान में ऐसे अभियान के खिलाफ नीयत की शिनाख्त कर सकता है, तो यह काम भारत सरकार क्यों नहीं कर सकती? जो सरकार बात-बात में ट्विटर के साथ इस बात को लेकर भिड़ जाती है कि उसे कौन-कौन से हैंडल बंद करने हैं, वह सरकार अपना घर क्यों नहीं देखती कि उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी के तहत जो लाखों ट्विटर अकाऊंट रात-दिन नफरत फैला रहे हैं, उन पर रोक लगाए। और यह रोक लगाने के लिए ट्विटर पर उनके खाते बंद करवाना तो दूर रहा, भारत सरकार ऐसे खुले जुर्म के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई भी नहीं कर रही है। यह सिलसिला देश की हवा को और जहरीला बनाते चल रहा है, और अब लोगों को यह लगने लगा है कि साम्प्रदायिकता, हिंसा, और तरह-तरह के दूसरे जुर्म की धमकियां फैलाना अब इस लोकतंत्र में कानूनसम्मत हो चुका है। मुजरिमों का ऐसा भरोसा किसी भी लोकतंत्र को तबाह करने के लिए बहुत है। 

हमें इस बात को लेकर भी बहुत हैरानी होती है कि केन्द्र सरकार के संबंधित मंत्रालयों की जो सलाहकार समितियां हैं, और जिनमें कई पार्टियों के सांसद मेंबर हैं, वहां भी ऐसे जुर्म के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पा रही है। लोकतंत्र ने जनता को जो बराबरी का हक दिया था, आज उसे कोई विचारधारा, कोई संगठन अपने लठैतों को चुनिंदा निशानों के पीछे लगाकर उनका जीना हराम कर रहे हैं, और कानून उनकी मदद के लिए मौजूद नहीं है। इस ताजा अध्ययन ने यह पाया है कि बॉलीवुड में ऐसे मुस्लिम कलाकारों को अधिक निशाना बनाया जा रहा है जिनकी शादी हिन्दुओं से हुई है, ताकि आगे जाकर उन्हें काम मिलने में दिक्कत हो। इसके पीछे उस विचारधारा का सीधा-सीधा हाथ है जो कि अपनी पार्टी से बाहर की ऐसी शादियों को लव-जेहाद कहती है, और हिंसा की हद तक धमकियां देती है। यह भारत सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया पर हिन्दुस्तानी नागरिकों के खिलाफ इसी जमीन से चल रहे ऐसे नफरती-हिंसक अभियान पर कार्रवाई करे। कहने के लिए तो भारत का आईटी एक्ट इतना कड़ा है कि उससे बचने की गुंजाइश नहीं रहती है, लेकिन खुले साइबर-सुबूतों के बाद भी सरकार का कार्रवाई न करना बहुत ही शर्मनाक है। यह लोकतंत्र के भीतर अपने से असहमत लोगों का जीना हराम करने का बहुत बड़ा जुर्म है, और जनता के बीच से सरकार की जिम्मेदारी और जवाबदेही को लेकर सवाल उठने चाहिए। जब तक अदालतों पर कोई सीधा हमला नहीं होता है, तब तक अदालतें आज की तारीख में आम जनता के हकों को लेकर बेपरवाह दिख रही हैं, और ऐसे में जनता के बीच ही एक जागरूकता उठ खड़ी होना जरूरी है, वही एक रास्ता दिखता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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