संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सरोगेसी तकनीक से बच्चे, कानून और जमीनी जरूरत
11-Oct-2022 2:44 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  सरोगेसी तकनीक से बच्चे, कानून और जमीनी जरूरत

तमिलनाडु में दक्षिण भारत की एक मशहूर अभिनेत्री नयनतारा और उनके पति विग्नेश शिवन ने जुड़वां बच्चों के होने की घोषणा की है। अभी चार महीने पहले ही इनकी शादी हुई थी, और ये बच्चे सरोगेसी से होने की खबर है। तमिलनाडु सरकार इस मामले में जांच करवा रही है कि शादी के तुरंत बाद सरोगेसी से बच्चे होना सरोगेसी कानून के खिलाफ है, और यह कैसे हुआ? आज हिन्दुस्तान के कानून के मुताबिक शादी के पांच साल बाद ही बच्चे न होने पर कोई जोड़ा सरोगेसी से बच्चे पाने की कानूनी औपचारिकता पूरी करके उसकी कोशिश कर सकते हैं। दूसरी तरफ बच्चों को गोद लेने के कानून भी बहुत कड़े हैं, और उसके लिए भी बड़ी लंबी-चौड़ी प्रतीक्षा सूची हमेशा ही रहती है, महीनों की कानूनी औपचारिकता पूरी करनी पड़ती है। इसलिए यह भी आसान नहीं है कि कोई इस तरह जुड़वां बच्चे ले लें। इसलिए ऐसा लगता है कि सरोगेसी कानून को तोडक़र उस तकनीक से ये बच्चे हासिल किए गए हैं। इसके पहले भी बॉलीवुड के कुछ सबसे चर्चित लोगों ने बिना शादी के भी सरोगेसी से बच्चे पैदा किए, और शाहरूख खान जैसे बड़े कलाकार ने स्वाभाविक तरीके से हुए दो बच्चों के बाद सरोगेसी से तीसरा बच्चा पाया था। बाद में केन्द्र सरकार ने सरोगेसी के कानून को बड़ा कड़ा बनाया ताकि गरीब महिलाओं की कोख किराये पर लेकर लोग मनचाहे या मनमाने बच्चे पैदा न करें। अब यह मामला दक्षिण के मशहूर फिल्म कलाकारों से जुड़ा होने की वजह से इस नये कानून के बारे में एक नई जागरूकता भी लाएगा। तमिलनाडु सरकार की यह भी एक साहसी पहल है कि वह मशहूर लोगों के मामले में भी जांच करवाने की घोषणा कर रही है।

भारत में अभी एक-दो बरस पहले तक निजी चिकित्सा उद्योग के भीतर कृत्रिम गर्भाधान या इस तरह की दूसरी तकनीक बेचने वाले बड़े अस्पतालों ने यह सिलसिला चला रखा था कि वे गरीब महिलाओं को अपनी कोख किराये पर देने के लिए तैयार करते थे, और संपन्न जोड़ों के शुक्राणु और अंडे से ऐसी महिलाओं को गर्भवती करके सरोगेसी से बच्चे पैदा करवाते थे। ऐसे एक-एक मामले में अस्पताल लाखों रूपये लेते थे, और गरीब महिलाओं को भी इसमें लाख-दो लाख रूपये मिल जाते थे। लेकिन इंसानी जिस्म के ऐसे इस्तेमाल के खिलाफ जब आवाज उठने लगी तो केन्द्र सरकार ने एक कड़ा कानून बनाया और अमीर जोड़ों की गर्भाधान और संतान जन्म की तकलीफ से बचने के लिए सरोगेसी तकनीक के इस्तेमाल पर रोक लगाई। अब शादीशुदा जोड़े कुछ दूसरी तकनीकों को आजमाने के पहले, शादी के पांच बरस हो जाने के पहले सरोगेसी के लिए नहीं जा सकते। फिर कोई कोख कानूनी रूप से किराये पर नहीं ली जा सकती, और इसके लिए अंग प्रत्यारोपण की तरह कई किस्म की और रोक भी लगाई गई है। उन सबकी यहां पर चर्चा प्रासंगिक नहीं होगी, लेकिन इस एक मामले से खड़े हुए विवाद से देश भर में लोगों के चौकन्ना हो जाने की जरूरत है। सरोगेसी की कानूनी शर्तें पूरी हो जाने के बाद भी बहुत सी कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है, इसलिए कोई भी व्यक्ति इस रास्ते से बच्चे पाने की बात को आसानी से छुपा नहीं पाएंगे। फिर जब चर्चित लोग खुद होकर ऐसी घोषणा करते हैं, तो उन्हें और भी सावधान रहने की जरूरत है कि उनके खिलाफ कानूनी जांच शुरू हो सकती है। कुछ ऐसा ही कानून बच्चों को गोद लेने का भी है, और चर्चित लोग भी रातों-रात बच्चों को गोद नहीं ले सकते।

यह एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है कि क्या सचमुच ही सरोगेसी या अंग प्रत्यारोपण कानून को इतना कड़ा बनाए जाने की जरूरत है। दरअसल इस देश का तजुर्बा इस मामले में बहुत खराब रहा है, और जब जरूरतमंद किडनी मरीजों को भी दान में किडनी लेने की जरूरत पड़ती है, तब भी कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करते हुए एक-दो बरस तक लग जाते हैं, और कई मरीजों की मौत भी हो जाती है। लेकिन सरकार को कानून कड़े इसलिए बनाने पड़े क्योंकि देश के कुछ महानगरों में ऐसी बस्तियां हैं जिनके हर घर से लोग किडनी बेच चुके हैं। जब गरीबी इतनी रहती है कि लोग अपने बदन का एक हिस्सा बेचकर बाकी परिवार को जिंदा रखने को बेबस रहते हैं, तब ऐसी बेबसी के बाजार को रोकने के लिए सरकार को कानून तो कड़ा बनाना ही पड़ता है। यह एक अलग बात है कि देश के बाकी तमाम कानूनों में जिस तरह छेद ढूंढकर लोग रास्ता निकाल लेते हैं, ठीक उसी तरह आज भी किडनी ट्रांसप्लांट जैसे बाजार चल रहे हैं जिनमें खरीदी हुई किडनी से जिंदगी बचाई जा रही है। अगर सरोगेसी का कानून नहीं बनता, तो बहुत धड़ल्ले से गरीब महिलाओं के बदन कारखानों की तरह इस्तेमाल होते रहते, जिसका खतरा अब कुछ कम हुआ है। लेकिन इसके साथ-साथ सोचने की एक बात यह भी है कि सरोगेसी से दूसरों के लिए बच्चे पैदा करने वाली मां अगर इस काम के एवज में अपने परिवार के लिए कुछ कमाई कर सकती है, तो क्या उसे किडनी बेचने की तरह का प्रतिबंधित काम मानना ठीक है? यह एक लंबी और अलग बहस हो सकती है, लेकिन सामाजिक हकीकत यही है कि अगर एक गरीब महिला दूसरों के लिए एक बच्चा पैदा करके अपने बच्चों की कुछ बरस की जिंदगी बेहतर बना सकती है, तो इस बारे में बहस जरूर होनी चाहिए, हम अभी इस बारे में अपनी कोई राय नहीं दे रहे हैं। भुगतान करके सरोगेट-मां पाने की ताकत रखने वाले लोगों की जरूरत, और उस जरूरत को पूरा करके अपनी पारिवारिक जरूरत पूरा करने वाली महिला की बेबसी को एकदम से खारिज करना ठीक नहीं है, और इस पर आगे बहस होनी चाहिए। फिलहाल दक्षिण भारत के फिल्म उद्योग से यह जो नया बखेड़ा सामने आया है, इसकी रौशनी में सरोगेसी कानून की बाकी बारीकियों पर भी चर्चा होनी चाहिए।
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