संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ईरान, कर्नाटक, अमरीका, और फ्रांस में मुद्दा एक है, औरत को हो पसंद का हक
18-Oct-2022 3:44 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ईरान, कर्नाटक, अमरीका, और फ्रांस में मुद्दा एक है, औरत को हो पसंद का हक

ईरानी महिलाओं पर हिजाब की बंदिश लादने वाली वहां की इस्लामिक सरकार के खिलाफ जो आंदोलन चल रहा है, वह अभूतपूर्व है। ईरान में करीब 40 बरस पहले शाह की सरकार के खिलाफ तख्तापलट से जो इस्लामिक सरकार आई थी, उसके खिलाफ तब से अब तक इतना मजबूत कोई आंदोलन चला नहीं था। औरत-मर्द की गैरबराबरी वाले ईरानी समाज में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि हिजाब को लेकर आंदोलन हो, और उसमें छात्र-छात्राओं से लेकर बूढ़ों तक सब शामिल हैं, और लड़कियों-औरतों के अलावा लडक़े और मर्द भी शामिल हैं। दुनिया की निगाहों से दूर कट्टर इस्लामी काबू वाले इस देश से भी आज जिस तरह हजारों वीडियो बाहर आ रहे हैं, वे बतलाते हैं कि सरकार के लिए आज वहां चुनौती न सिर्फ बहुत बड़ी है, बल्कि पूरी तरह अभूतपूर्व भी है। ईरानी महिलाएं और लड़कियां हिजाब से आजादी चाहती हैं।

लेकिन यह देखना दिलचस्प है कि ऐन इसी वक्त हिन्दुस्तान का सुप्रीम कोर्ट एक मामले से जूझ रहा है जिसमें भाजपा की सरकार वाले कर्नाटक में सरकार स्कूली पोशाक के साथ हिजाब पहनने वाली लड़कियों के हिजाब उतरवा चुकी है क्योंकि वह पोशाक का हिस्सा नहीं है। अब हिजाब बांधने का हक मांगती हुई मुस्लिम छात्राएं सुप्रीम कोर्ट में हैं। ऐसा भी नहीं है कि हिन्दुस्तान में हर मुस्लिम छात्रा हिजाब बांधना चाहती है। हिन्दुस्तान के मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा बिना बुर्के और बिना हिजाब वाला है। और हिन्दुस्तान के इस स्कूल-यूनिफॉर्म के मुद्दे को योरप के फ्रांस जैसे कई देशों के ताजा कानूनों से जोडक़र देखने की जरूरत है जहां पर सार्वजनिक जगहों पर मुस्लिम महिलाओं के बुर्के पर रोक लगाई जा रही है कि वह योरप की आजाद संस्कृति के खिलाफ है। जिस तरह ईरान में हिजाब न पहनने पर वहां की नैतिकता-पुलिस लड़कियों और महिलाओं को मार-मारकर जेल में डाल रही है, उसी तरह फ्रांस के समुद्र तटों से उन मुस्लिम महिलाओं को हटा दिया जा रहा है जो कि गर्दन से पांव तक पूरे बदन को ढांकने वाली बुर्किनी (बुर्के और बिकिनी को मिलाकर बनाया गया शब्द) पहनी हुई रहती हैं। योरप में कई जगहों पर यह माना जा रहा है कि ऐसे धार्मिक रिवाज मुस्लिमों को वहां के स्थानीय समाज के साथ घुलने-मिलने में बाधा बन रहे हैं।

अब हिन्दुस्तान और योरप की चर्चा के बाद कुछ अमरीका की चर्चा जरूरी है जहां पर अभी कुछ महीने पहले अमरीकी इतिहास के सबसे संकीर्णतावादी जजों से भर गए सुप्रीम कोर्ट ने 50 बरस पहले से महिलाओं को गर्भपात का मिला हुआ हक खारिज कर दिया है। अब गर्भ के शुरू के दो-चार हफ्तों के बाद कोई गर्भपात नहीं हो सकता, वह सजा के लायक जुर्म करार दिया गया है। वहां पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बहुत बड़ा जनमत खड़ा हो गया है और दुनिया के इस एक सबसे विकसित देश में आज आधी आबादी आधी सदी का यह हक खो बैठी है। अमरीकी समाज यह नहीं समझ पा रहा है कि दकियानूसी सोच वाले जो जज सुप्रीम कोर्ट में बहुमत में आ गए हैं, वे आने वाले महीनों में और कौन-कौन से तबाह करने वाले फैसले देंगे।

इन अलग-अलग बातों की चर्चा एक साथ इसलिए की जा रही है कि इन सबमें एक बात एक सरीखी है। ये सारी की सारी बातें एक महिला की अपनी पसंद को लेकर है कि उसे अपनी पोशाक से लेकर अपने बदन, और अपनी कोख तक पर अपना हक मिलना चाहिए। ईरान में हर महिला हिजाब के खिलाफ नहीं हैं, और वहां आंदोलन कर रही जनता उन महिलाओं का हिजाब उतरवाने के लिए सडक़ों पर नहीं हैं जो उन्हें पहनना नहीं चाहतीं। आंदोलन इसलिए है कि लोगों को अपनी मर्जी से पहनने या न पहनने के हक की आजादी रहे। इसी तरह हिन्दुस्तान में स्कूली पोशाक में हिजाब पहनने की मांग करने वाली छात्राओं की भी मांग यही है कि यह उनकी पसंद होना चाहिए कि वे हिजाब पहने या न पहनें। योरप में भी फ्रांस और कुछ दूसरे देशों में बुर्के और बुर्किनी पर लगाई गई रोक को बहुत से लोग इसलिए गलत मान रहे हैं कि यह रोक महिला से उसकी पसंद के हक को छीन रही है। अमरीका में महिलाओं का और बाकी तमाम लोगों का सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध इसलिए चल रहा है कि यह फैसला महिला के गर्भपात के फैसले का हक छीनता है।

इन सब बातों को एक साथ देखें तो मामला महिला की पसंद का है कि पोशाक से लेकर अपने गर्भ तक उसकी अपनी पसंद चलनी चाहिए। अब दिलचस्प और अटपटी बात यह है कि इससे जूझ रही सरकारें ईरान, हिन्दुस्तान, फ्रांस, और अमरीका जैसे देशों की सरकारें हैं। इनमें से सिर्फ अमरीका की सरकार है जो कि खुद आंदोलनकारी महिलाओं के साथ खड़ी है, और जो अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी तरह असहमत है। आज मुद्दा सरकारों का अकेले का न होकर अदालतों का हो गया है। हिन्दुस्तान में भी कर्नाटक के यूनिफॉर्म मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकार से सहमति जताई है, और छात्राओं को पोशाक के साथ हिजाब पहनने का हक देने से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में भी दो जजों में से एक इसी सोच के निकले, और दोनों जजों में असहमति की वजह से हिजाब का मामला अब बड़ी बेंच के लिए भेजा गया है।

दुनिया के अलग-अलग लोकतंत्रों या तानाशाहियों में, धार्मिक कट्टरता या बहुत अधिक लोकतांत्रिक उदारता की वजह से महिलाओं को हक देने के मामले में जो तंगदिली सरकारों से लेकर अदालतों तक सामने आ रही है, वह सारी तंगदिली बहुत हद तक मर्दों के बनाए हुए कानूनों और सामाजिक रिवाजों पर टिकी है। आज दुनिया में बहुत साफ-साफ यह समझने की जरूरत है कि महिलाओं को अपनी पोशाक और अपने बदन पर हक मिलना चाहिए, और उनके हिस्से का हक कोई सरकार या अदालत तय न करे। इस हिसाब से आज अगर ईरान में इस निहत्थी, अहिंसक नागरिक क्रांति के चलते सरकार भी उखाडक़र फेंक दी जाए, तो वह भी जायज होगा। हिन्दुस्तान की सरकारों और अदालतों को, और बाकी देशों में भी सरकारों और अदालतों को यह समझना चाहिए कि दबाव डालकर किसी महिला से धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाज मनवाना, या छीनना, दोनों ही गलत है। आज दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर चल रहे इन मुद्दों को एक साथ जोडक़र देखना जरूरी है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news