सामान्य ज्ञान

स्वास्तिक
20-Oct-2022 5:34 PM
 स्वास्तिक

एक दूसरे को काटती हुई दो रेखाओं और आगे चल कर उनके चारों सिरों के दांई ओर मुड़ जाने वाले चिह्न को स्वस्तिवाचन का प्रतीक माना जाता है। स्वास्तिक अति प्राचीन पुण्यप्रतीक है, जिसमें गूढ़ अर्थ और गंभीर रहस्य छुपे हैं।

स्वस्तिक जिस मंत्र के प्रतीक रूप में चित्रित किया जाता है, वह यजुर्वेद से लिया गया है। स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाज भाग से शुरु होने वाले मंत्र के प्रतीक स्वस्तिक की पूर्व दिशा में वृद्धश्रवा इंद्र, दक्षिण में बृहस्पति इंद्र, पश्चिम में पूषा-विश्ववेदा इंद्र तथा उत्तर दिशा में अरिष्टनेमि इंद्र स्थित हैं। स्वस्तिक का अर्थ है कि नादब्रह्म से अक्षर तथा वर्णमाला बनी, मातृका की उत्पत्ति हुई। नाद से ही वाणी के चारों रूप पश्यंती, मध्यमा तथा वैखरी उत्पन्न हुई। फिर उनके भी स्थूल तथा सूक्ष्म, दो भाग बने। इस प्रकार नाद सृष्टि से छह रूप हो गए। इन्हीं छह रूपों में, पंक्तियों में स्वस्तिक का रहस्य छिपा है। अत: स्वस्तिक को समूचे नादब्रह्म तथा सृष्टि का प्रतीक एवं पर्याय माना जा सकता है। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएं आगे की ओर इंगित करती हुई दांई ओर मुड़ती हैं। इसे स्वस्तिक कहते हैं। यही शुभ चिह्व है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएं पीछे की ओर संकेत करती हुई बाईं ओर मुड़ती हैं। इसे वामावर्त स्वस्तिक कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है।

भारतीय दर्शन के अनुसार स्वस्तिक की चार रेखाओं को चार वेद, चार पुरूषार्थ, चार आश्रम, चार लोक तथा चार देवों अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा गणेश से तुलना की गई हैं। जैन धर्म में स्वस्तिक उनके सातवें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ के प्रतीक चिन्ह के रूप में लोकप्रिय है।

जैन अनुयायी स्वस्तिक की चार भुजाओं को संभावित पुनर्जन्मों के स्थल स्थानों के रूप में मानते हैं। ये स्थल हैं-वनस्पति या प्राणिजगत, पृथ्वी, जीवात्मा एवं नरक। बौद्ध मठों में भी स्वस्तिक का अंकन मिलता है। जार्ज वुड्रोफ ने बौद्धों के धर्मचक्र को, यूनानी क्रास को तथा स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना है। इटली के हर कोन में, मिलान, रोम, पॉम्पिया, हंगरी, यूनान, चीन आदि हर देश नगर में स्वस्तिक पाया जाता है।

मैक्समूलर के अनुसार ईसाई धर्म में भी स्वस्तिक को मान्यता है और वहां वह गतिशील सूर्य का प्रतीक है। कुछ विद्वानों के अनुसार क्रास और स्वस्तिक के आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ संकेत समान महत्व रखते हैं। ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्तसार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है।

उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली सामाजिक व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है। इस चिह्न की मीमांसा करते हुए स्वस्तिक शब्द का अर्थ (सु-अच्छा, अस्ति-सत्ता, क-कर्ता) अच्छा या मंगल करने वाला भी किया गया है। स्वस्तिक अर्थात कुशल एवं कल्याण। कल्याण शब्द का उपयोग तमाम प्रश्नों के एक उत्तर में किया जाता है।

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