विचार / लेख

बहादुर शाह ज़फर
09-Nov-2022 3:49 PM
बहादुर शाह ज़फर

-राजेश जोशी
7 नवम्बर अंतिम मुग़ल बादशाह ख़ुद्दार बहादुरशाह ज़फ़र की पुण्य-तिथि थी। इसी दिन 1862 में उन्होंने वतन से दूर अंग्रेज़ों की क़ैद में रंगून में आख़िरी सांस ली थी।
कितना बदनसीब है ज़फ़र दफ़्न के लिए,
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू ए यार में

1857 की असफल क्रांति के बाद अंग्रेज़ सेनानायक हडसन ने हुमायूँ के मक़बरे से शाही ख़ानदान के 16 सदस्यों के साथ 87 साल के बूढ़े क़ैदी और भारतीय क्रांतिकारियों के कमांडर बहादुर शाह ज़फ़र को गिरफ़्तार किया था।

स्वयं हडसन ने उनके दो जवान बेटों मिर्ज़ा मुग़ल, मिर्ज़ा ख़िज़्र सुल्तान और किशोर पोते मिर्ज़ा अबूबख़्त को अपनी कोल्ट पिस्तौल से पॉइंट ब्लेक शूट किया और उनकी सर कटी लगभग वस्त्रहीन लाश चाँदनी चौक की एक कोतवाली पर तीन दिन तक लटका रखी ताकि लोगों में दहशत फैले। 

हडसन ने जो स्वयं कुछ-कुछ उर्दू जानता था शायर और बुज़ुर्ग बादशाह को  गिरफ़्तार करते हुए कहा-
"दमदमे में दम नहीं अब ख़ैर मांगो जान की, ऐ ज़फ़र ठंडी हुई तेग़ हिंदुस्तान की।।

ख़ुद्दार वतनपरस्त बूढ़े बादशाह ज़फ़र ने जवाब दिया-
'ग़ाज़ियों में बू रहेगी जब तलक़ ईमान की,
तख़्ते लंदन तक चलेगी तेग़ हिन्दोस्तान की।।'

बुज़ुर्ग बादशाह के गर्वीले जवाब से आगबबूला हडसन ने तीनों मुग़ल शहज़ादों के कटे हुए सर सुर्ख़ कपड़े से ढंके एक थाल में बादशाह को भेंट करते हुए कहा-सरकार बहादुर ने आपके लिए तोहफ़ा भेजा है।

ज़फ़र ने थाल के ऊपर ढँका कपड़ा हटा कर देखा। उसमें उसके दो जवान बेटों और एक पोते के खून से सने कटे हुए सर रखे थे।

दिल थाम कर सुनिए साहेबान 
वयोवृद्ध ज़फर ने आहिस्ता से उसे वापस ढँका और हडसन की आँखों में आँखें डालकर कहा-"मुग़ल शहज़ादे इसी तरह सुर्ख़रू होकर अपने वालिद के सामने आते हैं।"

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की 2005 की रिपोर्ट के अनुसार उनके वारिस कोलकाता के हावड़ा में एक गन्दी बस्ती में गुज़र-बसर  करते पाए गए।

बहादुर शाह ज़फ़र और मुग़ल ख़ानदान चाहता तो अंग्रेज़ों के सामने गिड़गिड़ाकर माफ़ी मांग सकता था और ऐश करता रह सकता था जैसे दूसरे करते रहे। आज भी कर रहे। 
बाक़ी जिनको देशभक्त मुग़लों को गाली देकर अपना मुँह ख़राब करना हो करते रहें। मुग़लों और उनके वतनपरस्त वंशजों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।

अफ़सोस राष्ट्रवाद का दम भरने वाले किसी संगठन, किसी लीडर, किसी एंकर ने उन्हें आज पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देना मुनासिब नहीं समझा।

ज़फर आपकी ख़ुद्दारी, आपकी वतनपरस्ती पर देशभक्त करोड़ों हिंदुस्तानियों को हमेशा गर्व रहेगा।

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