विचार / लेख

हाइपरथिमेसिया सिंड्रोम
11-Nov-2022 4:48 PM
हाइपरथिमेसिया सिंड्रोम

-अल्पयु सिंह
आमतौर पर भूलने की बीमारी तो हर किसी को ही होती है, चाभी कहां रखी, पर्स कहां है जैसी बातों से रोज़ाना कई लोग जूझते हैं। कहते हैं कि एक उम्र के बाद नाम वगैरह याद करना भी मुश्किल होता है। लेकिन अगर किसी शख्स को अपने जीवन से जुड़ी ज्यादातर बातें डिटेलिंग के साथ याद रहें तो उसे Hyperthymesia syndrome कहते हैं।  

विज्ञान के मुताबिक बहुत कम लोग इस तरह की मेमोरी रखते हैं, हॉलीवुड की एक्ट्रेस Marilu Henner एक ऐसा ही नाम रही हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि अगर उन्हें अतीत की किसी भी तारीख के बारे में पूछा जाता था तो वो उस दिन को बेहद डिटेल में accuracy के साथ बयां करती थीं। खैर सवाल ये है कि इस तरह Highly superior autobiographical memory को asset माना जाए या बीमारी।

ये सही है कि आदमी स्मृतियों की एक गठरी लेकर पैदा नहीं होता लेकिन जैसे जैसे वो दुनिया देखता है, उसका जीवन उसके कंधे पर अच्छी बुरी स्मृतियों का एक ग_र सिर पर लाद देता है। संवेदनशील लोगों के लिए कुछ स्मृतियां जीवन पर्यंत चलती हैं।कुछ स्मृतियों के बोझ से आदमी कभी छुटकारा नहीं पाता । निर्मल वर्मा ने एक दफ़ा कहीं लिखा था- आदमी हर साल नया साल मनाता है ये सोचे बगैर कि स्मृतियों में वो हर क्षण पुरातन हो रहा है।

अब जऱा सोचिए कि अगर किसी की स्मृति Marilu Henner जैसी हो तो उसका क्या होगा, सारी ही बातें याद रहेंगी, अच्छी और बुरी दोनों।  बीती बात बिसार दे की थ्योरी ऐसे लोग कभी खुद पर लागू कर ही नहीं पाएंगे ।  वो हमेशा ही खुद को यादों के जंगल में भटकते हुए पाएंगे । ऐसे में इस सुपर पावर का आदमी क्या ही करेगा ? ये अलग बात है कि ऐसे लोग शायद पढ़ाई और एग्जाम वगैरह में ज्यादा मेहनत किए बगैर ही अव्वल आ जाते हैं, लेकिन जीवन की रेस में स्मृतियां बार -बार बाधा ही बनकर सामने आएगी। खैर एक एक हॉलीवुड फिल्म है, जो वक्त मिले तो सभी को देखनी चाहिए इटरनल सनशाइन ऑफ़ द स्पॉटलेस माइंड Eternal Sunshine of the Spotless Mind साल 2004 में आई। यादों और भावनाओं की सांप सीढ़ी वाली इस फिल्म में हीरो- हीरोइन एक दूसरी की यादें मिटाने के लिए एक साइंटिफिक प्रोसिजर से गुजऱते हैं।  यादें मिट भी जाती हैं। लेकिन वो फिर से एक दूसरे से टकराते हैं और  फिर से एक दूसरे की ओर झुकते हैं, ये जाने बगैर कि वो पहले मिल चुके है। सार ये है कि भावनाओं का कोई मैप ही नहीं होता और सबकॉन्शियस माइंड की वजह स्मृति से छुटकारा पाया नहीं जा सकता, आदमी सिर्फ उसे मैनेज करना ही सीख सकता है।
 

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