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रूसी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाई जा रही है देशभक्ति
12-Nov-2022 1:00 PM
रूसी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाई जा रही है देशभक्ति

‘महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा’ नामक एक रूसी कक्षा में स्कूल के कुछ अध्यापक यूक्रेन के आक्रमण का बचाव कर रहे हैं. विरोध करने वाले छात्रों को भारी दबाव का सामना करना पड़ता है.

  डॉयचे वैले पर सर्गेई सतानोव्स्की की रिपोर्ट-

पिछले दो महीनों से रूस के स्कूलों में रूसी ध्वज को उठाना अनिवार्य कर दिया गया है. साथ ही रूसी स्कूलों में हफ्ते की शुरुआत एक विशेष कक्षा से हो रही है जिसका नाम है- "महत्वपूर्ण बातों पर परिचर्चा”. ये महत्वपूर्ण बातें क्या हैं, इस बारे में निर्देश शिक्षा मंत्रालय से मिलता है.

इन कक्षाओं में अक्सर कुछ सरकारी छुट्टियों- मसलन, मातृ दिवस, पितृ दिवस इत्यादि के महत्व पर बातचीत होती है लेकिन शिक्षक दिवस पर छात्रों को विशेष रूप से यह बताया गया कि रूसी सेनाओं द्वारा यूक्रेनी क्षेत्र पर कब्जा करना एक ‘ऐतिहासिक न्याय' क्यों है. और इसका कारण बताया गया कि यह मूल रूप से रूसी क्षेत्र का ही हिस्सा है.

स्कूली बच्चे अक्सर यूक्रेन के बारे में सुनते हैं. मार्क (बदला हुआ नाम) नाम का एक छात्र सेंट पीटर्सबर्ग के एक स्कूल में पढ़ता है.

आतंकवाद पर चिंता जताते हुए वह कहता है कि उसे स्कूल के डायरेक्टर और अध्यापकों ने बताया है कि यूक्रेन लगातार रूस पर हमले कर रहा था, "दरअसल, हमें यह सिखाया जा रहा है कि किसी आतंकी हमले के वक्त हमें कैसे अपना बचाव करना है.”

कालिनिनग्राड के एक स्कूल में हाईस्कूल के एक छात्र के मुताबिक, उसके प्रधानाचार्य ने पिछले महीने देशभक्ति की कक्षा में बताया, "रूस पर लगातार कोई न कोई हमला कर रहा है और हर कोई हमारे देश को बर्बाद करना चाहता है.”

कक्षा में अनुपस्थित रहने पर पूछताछ
जो मां-बाप अपने बच्चों को इन कक्षाओं में नहीं भेजते, उन्हें मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है. युवा कल्याण विभाग और एक मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ के मुताबिक मॉस्को में दस साल की एक बच्ची वार्या शोलिकर ने ऐसी ही एक कक्षा छोड़ दी थी या उससे छूट गई तो उसके परिजनों को काफी परेशानी हुई.

स्कूल में एक कमीशन ने उनकी बच्ची के व्यवहार के बारे में चर्चा की, उसकी मां येलेना शोलिकर को बुलाया गया. इस कमीशन में स्कूल प्रबंधन के एक प्रतिनिधि, एक मनोवैज्ञानिक और शायद एक घरेलू खुफिया एजेंसी एफएसबी के एक प्रतिनिधि शामिल थे और उनके मुताबिक, वे लोग वार्या के इस कक्षा में अनुपस्थित होने को लेकर बेहद चिंतित थे.

उन लोगों ने इस बात को भी इंगित किया कि लड़की ने वॉट्स ऐप पर संत जेवलिन का एक मेमे भी शेयर किया था जिसमें एक संत की आकृति को एक एंटी टैंक सिस्टम को पकड़े हुए दिखाया गया था जो कि यूक्रेन में रूसी सैनिकों के खिलाफ यूक्रेन के राष्ट्रीय रंग नीले और पीले के सामने इस्तेमाल किया जा रहा है.

स्कूल में पुलिस की मदद से कई लोगों से पूछताछ और जानकारी के बाद अफसरों ने लड़की के परिवार का घर ढूंढ़ निकाला. अपनी रिपोर्ट में उन्होंने घर के भीतर की सजावट में ‘संदिग्ध रंग' पाए जाने का जिक्र किया. उनका कहना था कि येलेना शोलिकर के लैपटॉप में चरमपंथी चैनलों को भी देखा गया था और वो इन सब बातों का जवाब देने में असमर्थ थी.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया, "इस अपार्टमेंट में नीले और पीले रंग भी थे जिनके बारे में येलेना शोलिकर का कहना था कि ये रंग उसे बहुत पसंद हैं.”

निरीक्षकों ने निष्कर्ष निकाला कि येलेना शोलिकर "अपने राजनीतिक विचारों को अपनी बेटी पर थोपती हैं और बेटी सोशल मीडिया पर जो कुछ भी लिखती है, उस पर उसके मां-बाप का कोई नियंत्रण नहीं रहता.”

निरीक्षकों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि संत जेवलिन का मेमे यह दिखाता है कि दस साल की लड़की "को अपनी मातृभूमि के इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं है और न ही उसे अपने देश और दुनिया के राजनीतिक रुझान के बारे में कुछ मालूम है.” इन लोगों ने लड़की और उसकी मां दोनों को ही मनोवैज्ञानिक से सलाह लेने का आदेश दिया.

शिक्षकों के लिए कठिन विकल्प
देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाना सिर्फ बच्चों के मां-बाप के लिए ही मुश्किलों भरा फैसला है बल्कि शिक्षकों के लिए भी है. रशियन एलायंस ऑफ टीचर्स के चेयरमैन डेनील केन कहते हैं, "सोशल मीडिया में कुछ लिखने, बयान देने या फिर रैलियों में भाग लेने के मामलों में अध्यापकों को परेशान करने की अलग-अलग घटनाएं पहले भी हो रही थीं लेकिन अब इसे संस्थागत कर दिया गया है.”

केन आगे कहते हैं कि प्रोपेगेंडा की बातें अब थोपी जाने लगी हैं, लोगों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो तय करें कि इस अभियान का हिस्सा बनेंगे या नहीं. केन को भी सितंबर महीने में अधिकारियों ने "विदेशी एजेंट” घोषित कर दिया था.

अलायंस ऑफ टीचर्स अदालत में तातन्या शेरवेंको के मामले की पैरवी कर रहा है. मॉस्को में अध्यापकों ने "महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा” करने से इनकार कर दिया और डोज टीवी चैनल पर इस बारे में एक इंटरव्यू भी दिया. यह चैनल अब लात्विया से प्रसारित होता है लेकिन इसके कार्यक्रम रूस में रहने वाले या रूस से बाहर रह रहे दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं.

तातन्या शेरवेंको को स्कूल प्रशासन ने काफी प्रताड़ित किया था और उसी के खिलाफ वो कोर्ट में मुकदमा लड़ रही हैं. हालांकि शेरवेंको अभी भी स्कूल में पढ़ा रही हैं लेकिन डेनील केन को आशंका है कि उन्हें निकाल दिया जाएगा.

‘विचारधारा से प्रभावित शैक्षणिक कार्य'
रशियन रिपब्लिक ऑफ तातरस्तान के एक बड़े शहर नबेरझाईन चेल्नी स्थित एक स्कूल में इतिहास के अध्यापक राउशेन वेलिउलिन और स्कूल प्रबंधन के बीच लंबा विवाद चला और आखिरकार विवाद की समाप्ति तब हुई जब वेलिउलिन को नौकरी से निकाल दिया गया.

अगस्त महीने में वेलिउलिन ने "स्पेसिफिक्स ऑफ आइडियोलॉजिकल एजूकेशनल वर्क विद चिल्ड्रेन एंड एजूकेटर्स” विषय पर अध्यापकों की एक बैठक में हिस्सा लिया था. इस बैठक में "महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा” भी शामिल थी.

वेलिउलिन ने संविधान के अनुच्छेद 13 का हवाला देते हुए उनके काम में सरकारी हस्तक्षेपकी आलोचना की थी. यह अनुच्छेद जबरन किसी विचारधारा को थोपने से रोकता है. वेलिउलिन को नौकरी से निकाल दिया गया. अदालत में वो यह साबित करने में सक्षम थे कि उनकी बर्खास्तगी गैरकानूनी है और बतौर टीचर उन्हें दोबारा बहाल किया जाना चाहिए.

उन्होंने फैसले का इंतजार नहीं किया. उन्होंने कहा कि स्कूल वापसी के लिए समझौते करने को उनके जमीर ने गवाही नहीं दी. उन्हें धमकी दी गई कि वो अपने दफ्तर में कैमरा लगवाएं ताकि उनके बयानों की निगरानी की जा सके. उनसे कहा गया कि उन्हें नौकरी करनी है तो "महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा” का नेतृत्व करना होगा.

वेलिउलिन ने गिरगिस्तान जाने का फैसला कर लिया. वो कहते हैं, "युद्ध के खिलाफ कुछ भी कहना प्रतिबंधित है. मेरे पास बहुत बच्चे हैं और मुझे अपना काम जिम्मेदारी से करना है.” (dw.com)

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