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पाकिस्तान में ऑस्कर के लिए नामित फ़िल्म 'जॉयलैंड' पर हंगामा, मिल रही है सिनेमाघरों को फूंकने की धमकी?
17-Nov-2022 8:51 AM
पाकिस्तान में ऑस्कर के लिए नामित फ़िल्म 'जॉयलैंड' पर हंगामा, मिल रही है सिनेमाघरों को फूंकने की धमकी?

इमेज स्रोत,JOYLAND/SAIMSADIQ इमेज कैप्शन, सेंसर ने फ़िल्म जॉयलैंड को पास कर दिया है. इसे 18 नवंबर को रिलीज़ होना है

-शुमाइला ख़ान

पाकिस्तान की ओर से ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित फ़िल्म 'जॉयलैंड' को सेंसर बोर्ड की मंज़ूरी मिली हुई थी और उसे 18 नवंबर को रिलीज़ होना था.

मगर कुछ दिन पहले अचानक सूचना मंत्रालय ने इस फ़िल्म को जारी होने वाला सेंसर सर्टिफ़िकेट यह कहते हुए रद्द कर दिया कि इसमें 'अत्यंत आपत्तिजनक सामग्री' है.

इस फ़िल्म ने दुनिया के सबसे बड़े फ़िल्मी मेले 'कान' में एक अवॉर्ड अपने नाम किया था और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी पसंद किया गया था.

वैसे तो पाकिस्तान में इसे कुछ गिने-चुने लोगों ने देखा होगा, लेकिन इसे रिलीज़ करने के समर्थन और विरोध दोनों में एक बड़ी संख्या सोशल मीडिया पर सक्रिय नज़र आ रही है.

इस मामले में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ को ख़ुद मोर्चा संभालना पड़ा था और उन्होंने फ़िल्म 'जॉयलैंड' के विरुद्ध की जा रही शिकायतों की जांच के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की है जो इस बात की पड़ताल करेगी कि कहीं यह फ़िल्म सामाजिक और नैतिक मूल्यों के ख़िलाफ़ तो नहीं.

'जॉयलैंड' के निर्देशक सायम सादिक़ ने सूचना मंत्रालय के इस अचानक 'यू टर्न' को "असंवैधानिक और ग़ैर क़ानूनी" बताया है.

उधर प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी होने वाली विज्ञप्ति के अनुसार फ़िल्म 'जॉयलैंड' के ख़िलाफ़ शिकायतें मिलने के बाद क़ानून मंत्री की निगरानी में आठ सदस्य समिति बनाई गई है. इसकी रिपोर्ट का इंतज़ार है.

इसमें सूचना मंत्री, संचार मंत्री, निवेश मंत्री, इन्फ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्री, प्रधानमंत्री के गिलगित बल्तिस्तान मामलों के सलाहकार समेत चेयरमैन पीटीए और चेयरमैन 'पेमरा' भी शामिल हैं.

'हीरो के नाम हैदर पर भी आपत्ति है'

'जॉयलैंड' में किन्नर की भूमिका पर आपत्ति करने वाले जमात इस्लामी के सीनेटर मुश्ताक़ अहमद ने कहा है कि उन्होंने फ़िल्म नहीं देखी, लेकिन उनका मानना है कि यह बुनियादी तौर पर एलजीबीटीक्यू (समलैंगिकता) संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है.

बीबीसी उर्दू से बात करते हुए सीनेटर मुश्ताक़ अहमद का कहना था कि यह सांस्कृतिक आतंकवाद है और इसके कारण "हमारे जो मूल्य, हमारी पारिवारिक व्यवस्था और परंपराएं हैं, शादी और निकाह की संस्था है, वह सब इस से टकराते हैं."

इस सवाल पर कि उन्होंने फ़िल्म देखी नहीं फिर भी इसके इतने विरोधी क्यों हैं, उनका कहना है, "देखें, फ़िल्म तो आपने भी नहीं देखी, मैंने भी नहीं देखी, किसी ने नहीं देखी."

"फ़िल्म तो 18 नवंबर को रिलीज़ होने वाली थी. फ़िल्म का तो अभी सिर्फ़ ट्रेलर जारी हुआ था, लेकिन फ़िल्म के बारे में विश्वसनीय जानकारी थी कि 'कान' में इसको एलजीबीटीक्यू कैटेगरी में अवॉर्ड दिया गया."

कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में 'जॉयलैंड' को जूरी अवॉर्ड मिला था और इस समारोह में कोई एलजीबीटीक्यू कैटेगरी नहीं.

सीनेटर मुश्ताक़ यह भी कहते हैं, "अब आपको पता है कि एलजीबीटीक्यू को न सिर्फ़ पाकिस्तान बल्कि ओआईसी (इस्लामी देशों का संगठन) भी सामूहिक तौर पर अस्वीकार करता है तो यह बिल्कुल साफ़ है कि यह हमारे मूल्यों के ख़िलाफ़ है.'

वह कहते हैं कि "विश्वसनीय सूत्रों से इस फ़िल्म की जो स्टोरी मीडिया में आयी है उसमें हीरो का नाम हैदर है, हमें इस पर भी आपत्ति है."

"एक तो हैदर को हीरो बनाना और फिर उसका एक ट्रांस वुमन के साथ लव अफ़ेयर को केंद्रीय विषय बनाना.

ट्रांस वुमन का नाम बीबा है. बीबा आप जानते हैं कि वह मर्द ही होता है, लेकिन वह अपनी लैंगिक अवस्था से असंतुष्ट होता है और अपने लिंग को बदल लेता है.

तो यह मर्द और मर्द के लव अफ़ेयर पर केंद्रीय कहानी है. इसीलिए यह हमारे मूल्यों और परंपराओं के ख़िलाफ़ एक एलान-ए-जंग है."

हालांकि फ़िल्म की कहानी, जो ट्रेलर और उसके सार-संक्षेप में दी गई है, उसमें बताया गया है कि कैसे एक युवा को एक ट्रांस वुमन से प्रेम हो जाता है.

मगर सीनेटर मुश्ताक़ का दावा है कि "किन्नर और ट्रांसजेंडर में अंतर होता है. ट्रांसजेंडर एक पश्चिमी शब्दावली है जिसका मतलब है एक ऐसा व्यक्ति जो जनन तंत्र रखता है, शारीरिक तौर पर बिल्कुल ठीक है. लेकिन अपने जेंडर डिस्फ़ोरिया या मनोवैज्ञानिक अस्वस्थता के कारण अपनी लैंगिक अवस्था से असंतुष्ट है."

'जिस सिनेमाघर में यह फ़िल्म लगेगी उसको आग लगा देंगे'

सीनेटर मुश्ताक़ ने 'जॉयलैंड' का मुद्दा सीनेट में उठाया था, फ़ेडरल शरीयत कोर्ट से भी अनुरोध किया और सरकार ने इसे दिखाने पर फ़िलहाल पाबंदी लगा दी है.

सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सेंसर्स के चेयरमैन मोहम्मद ताहिर का कहना है कि सीनेटर मुश्ताक़ अहमद ने आरोप की यह मुहिम शुरू की थी कि सरकार के ट्रांसजेंडर बिल का समर्थन करने के लिए यह फ़िल्म बनाई गई है.

"हमें बहुत से समूहों से इसी तरह की शिकायतें मिली हैं कि आप ट्रांसजेंडर एक्ट को लागू करने के लिए फ़िल्मों का सहारा ले रहे हैं."

उन्होंने बताया, "ऐसी धमकियां मिल रही थीं कि जिस सिनेमाघर में यह फ़िल्म लगेगी उसको हम आग लगा देंगे. फिर कहा गया कि ट्रांसजेंडर को मारेंगे, तो इस परिस्थिति में मजबूरी में हमने इजाज़तनामा वापस ले लिया."

मोहम्मद ताहिर ने यह बात मानी कि फ़िल्म में ऐसा कुछ नहीं जिसका दावा सीनेटर मुश्ताक़ और दूसरे धार्मिक समूह कर रहे हैं.

'जॉयलैंड' के लेखक और निर्देशक सायम सादिक़ का कहना है कि उन्हें सुना ही नहीं गया. उनके अनुसार उन्हें सीधे यह नोटिफ़िकेशन नहीं भेजा गया, बल्कि उन्हें तो सोशल मीडिया से इसका पता चला.

उन्होंने कहा, "संविधान की दृष्टि से देखा जाए तो जब एक बार सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म को दिखाने की इजाज़त दे दी हो तो मंत्रालय अचानक नोटिस नहीं दे सकता. उन्हें ऐसा करने से पहले एक बार हमारी बात भी सुननी होती है.

उन्हें हमें सुनवाई का एक मौक़ा देना चाहिए था जो कि हमारा क़ानूनी हक़ था. सूचना मंत्रालय की ओर से हमें वह नहीं दिया गया."

सायम के अनुसार, सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सेंसर्स की क़ानूनी हैसियत सिर्फ़ फ़ेडरल और उसकी सीमाओं में आने वाले शहरों तक ही है यानी इस्लामाबाद, रावलपिंडी, पेशावर और बलूचिस्तान.

"लेकिन उन्होंने अठारहवें संशोधन के तहत राज्यों को मिलने वाले अधिकार को भी दरकिनार किया और दबाव के हथियार के तौर पर पंजाब और सिंध सेंसर बोर्ड को भी यह नोटिस जारी किया था कि वह भी यही करें. हमने हर एक काम क़ानून के अनुसार किया है, लेकिन मंत्रालय ने एक ग़ैर क़ानूनी काम किया है."

पूर्व सूचना मंत्री फ़वाद चौधरी ने इस पर राय दी है कि किसी फ़िल्म के ख़िलाफ़ ऐसी मुहिम से "कमज़ोर मंत्री दबाव में आ जाता है और फ़ैसला करने वाले अक्सर लोग वही होते हैं जिन्हें पता ही नहीं होगा कि फ़िल्म है क्या."

फ़िल्म को अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि

सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सेंसर्स के चेयरमैन मोहम्मद ताहिर का कहना है, "ट्रांसजेंडर ख़तरे में थे. वह पहले ही इतनी मुश्किल में रहते हैं तो हमने सोचा कि कहीं उनके साथ कोई ज़्यादती न हो. यह काम एहतियाती सुरक्षा के तौर पर किया गया."

उन्होंने कहा, "टाइमिंग की भी समस्या है. (यानी) यह किस समय पर रिलीज़ हो रही है. यह फ़िल्म छह महीने पहले या छह माह बाद आ जाती तो ऐसा नहीं होता. कारोबार करना सबका अधिकार है और ट्रांसजेंडर का हम शोषण नहीं कर सकते."

पाकिस्तानी निर्देशक, लेखक व अभिनेता सायम सादिक़ की फ़िल्म 'जॉय लैंड' की कहानी एक किन्नर के जीवन पर बनाई गई है जिसको सरमद खूसट और अपूर्वा चरण ने प्रोड्यूस किया है.

इसमें लाहौर के मज़दूर वर्ग के एक विवाहित पुरुष और एक ट्रांसजेंडर के बीच बढ़ते हुए रिश्ते को दिखाया गया है. फ़िल्म में सरवत गिलानी, सानिया सईद, अली जुनेजो, सना जाफ़री, अलीना ख़ान समेत दूसरे कलाकारों ने काम किया है.

इस फ़िल्म को उस समय अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि मिली जब उसे पाकिस्तान की ओर से ऑस्कर के लिए नामित किया गया और कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल में जूरी प्राइज़ मिला.

याद रहे कि जूरी प्राइज़ को इस फ़िल्मी मेले का दूसरा सबसे बड़ा अवार्ड माना जाता है.

सोशल मीडिया पर जहां 'जॉय लैंड' का विरोध हो रहा है वहीं कई सामाजिक और सिनेमा से जुड़ी हस्तियां खुलकर इसका समर्थन भी कर रही हैं.

फ़िल्म निर्माता जामी आज़ाद ने सरकार से 'जॉय लैंड' को रिलीज़ करने का अनुरोध करते हुए कहा है "पाकिस्तान के लिए बहुत बड़े सम्मान की बात है कि एक फ़िल्म इतने आगे तक गई."

"ऑस्कर की रेस में भी काफ़ी अच्छी जा रही है. कान में गई है, 'टिफ़' में गई. ट्रांस लोग हमारे समाज का एक अनिवार्य हिस्सा हैं. हमें किसी भी इंसान से नहीं डरना चाहिए. जिस तरह मुल्ला हमारी सोसाइटी का लाज़िमी हिस्सा हैं जो काफ़ी सकारात्मक भूमिका भी अदा करते हैं और काफ़ी नकारात्मक भूमिका भी अदा किया है मुल्लाओं ने."

"लेकिन हम बर्दाश्त करते हैं. हमने नहीं कहा कि उनको निकाल कर बाहर फेंक दें. उन पर पाबंदी लगा दें."

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के पूर्व सीनेटर फ़रहतुल्लाह बाबर ने कहा, "फ़िल्म जॉय लैंड की पहले से तय रिलीज़ से कुछ दिन पहले सर्टिफ़िकेशन वापस लेने का फ़ैसला ग़लत है."

"यह स्वयंभू नैतिक ब्रिगेड को ख़ुश करने के लिए ख़ुद को पीछे ले जाना है. यह प्रोड्यूसर्स की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोगों के चुनने के अधिकार के विरुद्ध है. प्लीज़, इस फ़ैसले को वापस ले लें."

हाल ही में नेटफ़्लिक्स की लोकप्रिय सिरीज़ 'द क्राउन' में काम करने वाले पाकिस्तान के प्रसिद्ध अदाकार और प्रड्यूसर हुमायूं सईद ने अपने ट्वीट में लिखा है, "जॉय लैंड ने कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में जूरी प्राइज़ जीतने वाली पहली दक्षिण एशियाई फ़िल्म बन कर पाकिस्तान का सिर गर्व से ऊंचा किया है."

"यह हमारे लोगों की कहानी है जो हमारे लोगों के लिए हमारे ही लोगों ने बनाई है. उम्मीद है कि इसे उन्हीं लोगों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा."

'नैतिकता की आड़ में कला और संस्कृति से वंचित कर रहे'
पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की पोती और लेखिका फ़ातिमा भुट्टो लिखती हैं, "जॉय लैंड की सेंसरशिप बेमतलब (नासमझी) है. पाकिस्तान कलाकारों, फ़िल्म निर्माताओं, साहित्यकारों से भरा हुआ है और इसके पास एक सांस्कृतिक संपत्ति है और इससे भी महत्वपूर्ण बात वह बहादुरी है जिसे दुनिया सराहती है.

एक स्मार्ट (होशियार) देश इसका जश्न मनाएगा और उसे आगे बढ़ाएगा, न कि ख़ामोश कराएगा और धमकी देगा."

'लम्स' (लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज़) की प्रोफ़ेसर और सामाजिक कार्यकर्ता निदा किरमानी कहती हैं, "हमारे नीति निर्माता अब भी पाकिस्तानियों के साथ बच्चों जैसा सलूक कर रहे हैं. नैतिकता की आड़ में हमें कला और संस्कृति से वंचित कर रहे हैं."

पाकिस्तानी अदाकारा सरवत गिलानी कहती हैं कि पाकिस्तानी सिनेमा के लिए इतिहास बनाने वाली फ़िल्म 'जॉय लैंड' के ख़िलाफ़ एक मुहिम चल रही है. इसे सभी सेंसर बोर्ड्स से पास कर दिया गया, लेकिन अब अधिकारी कुछ बदनीयत लोगों के दबाव में आ रहे हैं जिन्होंने यह फ़िल्म देखी भी नहीं है.

पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने 'जॉय लैंड' का सर्टिफ़िकेशन वापस लेने के सरकारी फ़ैसले की निंदा की है. इस आयोग ने इस कार्रवाई को ट्रांस्फ़ोबिक बताया है और अपने बयान में कहा है कि यह आदेश फ़िल्म निर्माताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के भी विरुद्ध है.

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