विचार / लेख

-रीवा एस. सिंह
लड़कियों को टॉक्सिसिटी में जीने की ऐसी आदत होती है कि कई बार जिंदगी के आखिरी दम तक ये नहीं समझ पातीं कि वे जिस स्थिति में जी रही हैं वह सामान्य नहीं है। समझ भी जाती हैं तो सब कुछ ठीक करने का भार स्वत: ही उठा लेती हैं।
लड़कियाँ जि़द में भी अक्सर त्याग ही चुनती हैं, चुन लेती हैं सुधारगृह होना कि मैं हर हाल में ठीक कर लूंगी।
दुश्वारियों में अमूमन सोच लेती हैं कि किसी दिन तो उसे फर्क पड़ेगा, कभी तो सब कुछ अच्छा होगा।
मैंने अल्हड़-मस्त लड़कियों को एकाएक शान्त होते देखा है। ठहाके लगाकर हँसने वाली चंचल महिलाओं को झूठी मुस्कुराहट ओढ़े देखा है। स्वयं से स्व का विलुप्त होना किसी त्रासदी से कम नहीं है।
फिनांशिअल फ्रीडम (आर्थिक स्वतंत्रता) बेहद जरूरी है, यह आपको जिंदगी के फैसले चुनने का ढंग देती है लेकिन सिर्फ इसके बूते हर लडक़ी अपने जीवन के कठिन फैसले नहीं ले पाती। मैंने देखा है घर के सारे बिल्स भरने वाली लड़कियों को भी प्रेम में होने पर सभी शर्तों को बिना सवाल किये पीते हुए।
वो लड़कियाँ जो समाज को ठेंगे पर रखती हैं, घरवालों की एक नहीं सुनती हैं, जब अपने पार्टनर की तमाम बातें और हरकतें मूक होकर और कई बार अनुयायी की तरह स्वीकारती जाती हैं तो पतझड़-सी लगती हैं। इन लड़कियों ने मुहब्बत के नाम पर भी अपनी जिंदगी में वही गुलामी बो दी है जो इनकी दादी-नानी त्याग के लिहाफ में निभाती आ रही थीं।
शिक्षा, रोजगार, ऐडल्टहुड, पैसा... ये सारे महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं लेकिन लड़कियाँ ऐसी टॉक्सिसिटी की आदी हैं कि उन्हें आत्मबल देने के लिये, कई बार अपर्याप्त हो जाते हैं।
देश के बेहतरीन कॉलेज से डिग्री लेकर भी, लाखों की तन्ख्वाह लेकर भी, घर की सारी जि़म्मेदारियाँ उठाकर भी लड़कियाँ अपने हिस्से के सुकून के लिये कठिन फैसले लेने की स्थिति में धराशायी हो जाती हैं और यह जटिलता विवाहित व अविवाहित दोनों के लिये एक-सी है।
पहले ही दिन कोई किसी के 30 टुकड़े नहीं कर देता, न पहले दिन किसी को आग के हवाले किया जाता है। लड़कियाँ टॉक्सिसिटी स्वीकार लेती हैं तो इन भेडिय़ों का मनोबल बढ़ता है। लड़कियाँ स्वीकारती हैं क्योंकि मुहब्बत में होती हैं। मुहब्बत के लिये सबसे लड़ जाने वाली लड़कियाँ रिश्तों में अधमरी होकर भी क्यों निभाती चली जाती हैं? उतनी ही हिम्मत के साथ ऐसे जहरीले रिश्ते से बाहर क्यों नहीं निकल पातीं।
काश कि उन्हें स्वयं को चुनना आता। काश कि वो एक बार, बस एक बार फिर से, सबकुछ दरकिनार कर अपने लिये फैसले लेतीं। मासूम लड़कियों की जिंदगी पर पड़े छाले देखकर दुख होता है, हिम्मती लड़कियों को निर्बल देखना मुझे तोड़ देता है।
लड़कियों, सबकुछ सीख लेने के बाद भी, सबका खयाल रखने के बाद भी, प्लीज़ अपने लिये बचाकर रखो बेशुमार मुहब्बत, अनगिनत सपने और खुला आसमान। किसी रिश्ते के टूटने से दुनिया नहीं खत्म होती, दुनिया तबतक है और रहेगी जबतक तुम हो। अपने लिये भी मुट्ठी भींचकर उठना सीख लो न, प्लीज। मत सोचो कि सामने कौन है, आत्मसम्मान को सबसे पहले रखना है!
Nothing before your dignity, darling! NEVER!