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ट्विटर, फ़ेसबुक और अमेज़न जैसी कंपनियों से आख़िर क्या ग़लती हुई
25-Nov-2022 11:25 AM
ट्विटर, फ़ेसबुक और अमेज़न जैसी कंपनियों से आख़िर क्या ग़लती हुई

-सेसिलिया बारिया

मेटा (फेसबुक), ट्विटर और अमेज़न जैसी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां इतिहास में पहली बार एक साथ हज़ारों लोगों की छंटनी कर रही हैं.

एक वक़्त था जब कोरोना महामारी के समय ये कंपनियां सफलता के झंडे गाड़ रही थीं. सिलिकॉन वैली की कई कंपनियां नए लोगों को काम पर रख रही थीं. उन्होंने अपनी तरक़्क़ी के लिए नई योजनाओं पर काम शुरू कर दिया था, इस उम्मीद से कि हवा का रुख़ उनके पक्ष में ही बहता रहेगा.

पिछले दिनों फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हॉट्सऐप की मालिक कंपनी मेटा के प्रेसिडेंट और सीईओ मार्क ज़करबर्ग ने कंपनी के 11 हज़ार कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने के फ़ैसले को वाजिब ठहराते हुए कहा, "मैं ग़लत था और मैं इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूं."

ये 11 हज़ार कर्मचारी मेटा के 13 फ़ीसदी वर्कफ़ोर्स के बराबर हैं. टेक्नोलॉजी सेक्टर की कंपनियों के पिछले महीने आए वित्तीय नतीजों से ये साफ़ हो गया था कि चीज़ें उस तरह से नहीं हो पाई हैं जैसी उम्मीद की जा रही थी.

साल 2021 में मेटा जब अपने पीक पर थी जो उसका बाज़ार मूल्य एक ट्रिलियन डॉलर था, लेकिन उसके बाद से कंपनी की क़ीमत में सैकड़ों अरब डॉलर की गिरावट हो चुकी है.

एलन मस्क के नेतृत्व में ट्विटर ने कंपनी के वर्कफ़ोर्स में 50 फ़ीसदी तक की कटौती का एलान किया है. ई-कॉमर्स कंपनी अमेज़न ने इसी हफ़्ते छंटनी की एक बड़ी योजना पर काम शुरू कर दिया है जिससे कंपनी के दस हज़ार कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं.

हालांकि सभी कंपनियों के पास अपनी-अपनी वजहें हैं. जिन कंपनियों ने अपने यहां छंटनी का एलान किया है, उनमें नेटफ़्लिक्स, स्ट्राइप, स्नैप, रॉबिनहुड, पेलोटोन, लिफ़्ट और कॉइनबेस जैसी कंपनियां शामिल हैं.

टेक्नोलॉजी सेक्टर की इन कंपनियों का प्रदर्शन सालों की असाधारण समृद्धि के बाद कोरोना महामारी के समय अपने शिखर पर पहुंच गया था.

अनुमान है कि हाल के हफ़्तों में सिलिकॉन वैली की बड़ी कंपनियों ने 20 हज़ार से ज़्यादा लोगों को नौकरी से निकाला है.

अगर अमेज़न भी छंटनी की अपनी योजना पर अमल शुरू करता है तो ये आंकड़े और बढ़ सकते हैं.

'अच्छे दिन आ ही जाते हैं...'
"चाहे आप ज़्यादा खा लें या ज़्यादा पी लें या फिर कुछ भी हद से ज़्यादा हो जाए तो अगले दिन की सुबह ख़राब हो जाती है और हम उसी मोड़ पर पहुंच गए हैं."

टेक्नोलॉजी सेक्टर की एक्सपर्ट लाइज़ बायर कहती हैं कि सिलिकॉन वैली की कई कंपनियां इन्हीं हालात से गुजर रही हैं.

बीबीसी मुंडो से बातचीत में उन्होंने कहा, "निवेशकों ने अपना पैसा आहिस्ता-आहिस्ता इन टेक्नोलॉजी कंपनियों में बेइंतेहा झोंका. उन्होंने ये भी नहीं देखा कि अब इन कंपनियों के कारोबार में मुनाफे की कितनी गुंजाइश बची रह गई है. इन कंपनियों ने बीते सालों में बेहिसाब मुनाफ़ा कमाया था और इस वजह से इन कंपनियों का बाज़ार मूल्य बेतहाशा बढ़ गया था."

अब यही कंपनियां जब कारोबार के मोर्चे पर मुश्किलों का सामना कर रही हैं, तो वे अपने हज़ारों कर्मचारियों से पीछा छुड़ा रही हैं.

अमेरिका में महंगाई पिछले 40 सालों के रिकॉर्ड स्तर पर है और ब्याज दरों में इज़ाफ़े के कारण दुनिया भर में क़र्ज़ लेना महंगा होता जा रहा है.

लाइज़ बायर कहती हैं, "अब होश में आने का और ये समझने का समय आ गया है कि कंपनी के मुनाफ़ा कमाने की संभावना वाक़ई मायने रखती है."

उनके नज़रिये से देखें तो हम 2000 के दशक की शुरुआत में डॉटकॉम बबल की ख़ुमारी उतरने के समय जैसे हालात थे, वैसी स्थितियों से इस बार रूबरू नहीं होने जा रहे हैं.

उस वक़्त भी टेक्नोलॉजी कंपनियां अपने बुरे दौर से गुजर रही थीं और कई तो कारोबार से ही ग़ायब हो गईं क्योंकि उनका बाज़ार मूल्य और शेयर क़ीमतें रसातल में पहुंच गई थीं.

लाइज़ बायर कहती हैं, "हम बिना किसी ठोस वजह के कंपनियों के लगातार बर्बाद होने जैसी स्थिति से रूबरू नहीं होने जा रहे हैं. बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां अभी बर्बाद नहीं होने वाली हैं."

उनका कहना है कि ये सही है कि कंपनियों की बाज़ार क़ीमत में ज़रूरत से ज़्यादा उछाल दर्ज किया गया है और निवेशकों स्टार्टअप्स को ये संदेश दे दिया गया है कि उन्हें केवल ग्रोथ से मतलब है, भले ही उन्हें नुक़सान ही क्यों न हो रहा हो.

वो ये भी कहती हैं कि हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि सिलिकॉन वैली में समय का चक्र चलता है और हम फ़िलहाल इस चक्र के बुरे समय से गुज़र रहे हैं, लेकिन जैसा कि हर बार होता है, अच्छे दिन आ ही जाते हैं.

'मूर्खताएं अब जगज़ाहिर हो गई हैं...'

कई जानकारों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों से वॉल स्ट्रीट में टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री का ख़ास दर्जा रहा था, लेकिन बीते कुछ हफ़्तों से इस सेक्टर की चमक धुंधली पड़ गई है. कल तक इस सेक्टर को अपराजेय बताया जा रहा था, लेकिन अब जिस तरह से हज़ारों लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है, उससे इस सिस्टम की कमियां उजागर हो गई हैं.

पिछले बीस साल में टेक्नोलॉजी सेक्टर के उछाल ने मार्क ज़करबर्ग, एलन मस्क, जैक डोर्सी और जेफ़ बेज़ोस जैसे अरबपति हमारे बीच दिए.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ जॉर्जिया में इतिहास के प्रोफ़ेसर स्टीफ़न मिह्म का कहना है कि ये बिज़नेस लीडर 21वीं सदी के स्वप्नद्रष्टा नहीं हैं जैसा कि उन्हें पेश किया जाता रहा है.

प्रोफ़ेसर स्टीफ़न का कहना है, "जिस तरह से ये छंटनियां हुई हैं, उससे ऐसा लगता है कि बदनाम रही कॉर्पोरेट रणनीति की वापसी हो गई है और अगर यही सिलसिला जारी रहता है तो ये टेक लीडर अपनी कंपनियों को बुरी स्थिति में पहुंचा देंगी."

'क्राइसिस इकोनॉमिक्स: ए क्रैश कोर्स इन द फ़्यूचर ऑफ़ फ़ाइनेंस' किताब के सह-लेखक प्रोफ़ेसर स्टीफ़न कहते हैं, "इनकी मूर्खताएं अब जगजाहिर हो गई हैं."

मौजूदा आर्थिक परिदृश्य
जब से एलन मस्क ने ट्विटर की कमान संभाली है तब से कंपनी विवादों में रही है. नौकरियों में छंटनी के एलान के बाद से कंपनी के बचे कर्मचारियों को लगातार चौंकाने वाले संदेश भेजे जा रहे हैं.

पिछले दिनों उनसे कहा कि कंपनी के दफ़्तर को तत्काल प्रभाव से अस्थाई रूप से बंद किया जा रहा है. ट्विटर ने इसकी कोई वजह नहीं बताई और न ही बीबीसी के सवालों का कोई जवाब ही दिया.

इस बीच कंपनी से लगातार इस्तीफ़ा देने वालों का सिलसिला जारी है.

ब्लूमबर्ग से जुड़ी विश्लेषक पार्मी ओल्सन कहती हैं कि बीस साल पहले डॉटकॉम बबल के बाद से बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के इतिहास का ये सबसे बुरा दौर है.

हालांकि दूसरे विश्लेक पार्मी ओल्सन और प्रोफ़ेसर स्टीफ़न की राय से सहमत नहीं दिखते हैं. उनका कहना है कि हरेक इंडस्ट्री में उतार-चढ़ाव आता है और छंटनी की कार्रवाई केवल हिसाब-किताब को दुरुस्त करने की कार्रवाई है.

कैलिफोर्निया स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ सांता क्लारा के प्रोफ़ेसर जो एलेन कहते हैं, "छंटनी की इन कार्रवाईयों का ये मतलब नहीं है कि ये कंपनियां वाक़ई किसी बड़ी मुश्किल में हैं. ये मौजूदा आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल की दिशा में उठाया गया क़दम है."

आख़िर पैसा कहां गया?
विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के इस हंगामे में कई और भी ताक़तें उतर गई हैं. महामारी के समय इन कंपनियों ने बड़े पैमाने पर हायरिंग की. उस वक़्त लॉकडाउन के कारण इन कंपनियों का कारोबार बढ़ गया था. उस दौर में जब दूसरी कंपनियों का कारोबार ठप हो रहा था, टेक्नोलॉजी कंपनियां उफ़ान पर थीं.

कोरोना महामारी के बाद स्टॉक मार्केट में इन कंपनियों की स्थिति सुधरी और फिर ऐसा वक़्त भी आया जब वॉल स्ट्रीट में इन कंपनियों के शेयरों ने शानदार प्रदर्शन किया.

लेकिन एक दिन ये सिलसिला रुक गया. महंगाई आसमान छूने लगी. यूक्रेन और रूस की जंग शुरू हो गई और सभी आर्थिक अनुमान नई वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर लगाए जाने लगे.

दूसरी वजह मौजूदा वैश्विक आर्थिक संकट से जुड़ी हुई है. दुनिया भर में महंगाई अपने रिकॉर्ड स्तर पर है और कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं गहरी परेशानी में हैं.

इस पर रोकथाम के लिए अमेरिका में ब्याज दर तेज़ी से बढ़ रही है और दूसरे देश जीवनयापन के ख़र्चे में हुई ऐतिहासिक बढ़ोतरी को नियंत्रित करने के लिए अपनी कोशिशें कर रहे हैं.

टेक्नोलॉजी कंपनियों पर दबाव
ऊंची ब्याज दरों के कारण क़र्ज़ लेना महंगा हो गया है. ज़्यादा जोख़िम उठाने वाले निवेशकों के लिए सस्ते पैसे का दौर ख़त्म हो गया है.

क्वींस यूनिवर्सिटी, बेलफ़ास्ट के प्रोफ़ेसर विलियम क्विन कहते हैं, "ब्याज दर बढ़ रही है. इससे टेक्नोलॉजी कंपनियों पर दबाव बढ़ गया है क्योंकि उनके लिए निवेश जुटाना मुश्किल होता जा रहा है."

उन्होंने बीबीसी मुंडो से कहा, "कुछ जमी-जमाई और मुनाफा कमा रही कंपनियां कटौती कर रही हैं, लेकिन दूसरी कंपनियां मुश्किल में हैं. जब ये लहर थमेगी तो आपको पता चल जाएगा कि कौन कितने पानी में था."

और सबसे आखिरी वजह विज्ञापन राजस्व से जुड़ी हुई है. सोशल नेटवर्किंग कंपनियों के लिए आमदनी का सबसे बड़ा ज़रिया विज्ञापनों से होने वाली यही कमाई है.

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि टेक्नोलॉजी सेक्टर की सभी कंपनियां इसी मुश्किल का सामना कर रही है.

टेक्नोलॉजी कंपनी एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट या इंटेल ने अभी तक छंटनी की किसी योजना का एलान नहीं किया है जबकि वैश्विक कारोबारी चुनौतियां उनके सामने भी है.

प्रोफ़ेसर विलियम क्विन कहते हैं, "छंटनी का हर मामला अपने आप में अलग है. मुझे लगता है कि आने वाले समय में टेक्नोलॉजी सेक्टर में सुस्ती छाई रहेगी."

आने वाले महीनों में टेक इंडस्ट्री में चाहे जो कुछ भी हो, ये साफ़ है कि छंटनी की ख़बरें इससे जुड़े लोगों को उद्वेलित करती रहेंगी.

कुछ लोगों के लिए ये केवल बही-खातों को दुरुस्त करने की कवायद है तो कुछ लोगों के लिए ये टेक्नोलॉजी सेक्टर के ग्रोथ की सुपरफ़ास्ट ट्रेन के अपने आख़िरी पड़ाव पर पहुंचने जैसा है.

इन लोगों का कहना है कि वो दौर ख़त्म हो गया जब सिलिकॉन वैली में पैसा पहाड़ों से निकले दरिया की तरह बह रहा था.

अब तो ये समय ही बताएगा कि ये कहानी किस मोड़ पर जाकर ख़त्म होगी. (bbc.com/hindi)

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