मनोरंजन
-चंदन कुमार जजवाड़े
ओटीटी पर आई एक नई वेब सिरीज़ 'खाकीः द बिहार चैप्टर' इन दिनों सुर्ख़ियों में है.
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी अमित लोढ़ा ने अपराध, राजनीति और अपने अनुभवों पर 'बिहार डायरीज़' लिखी है.
ये वेब सिरीज़ इसी किताब पर आधारित है.
अमित लोढ़ा फ़िलहाल बिहार पुलिस में इंसपेक्टर जनरल (एससीआरबी) के पद पर तैनात हैं.
नेटफ़्लिक्स की वेब सिरीज़ 'खाकी द बिहार चैप्टर' को नीरज पांडे ने लिखा है. इसका निर्देशन भव धुलिया ने किया है.
इस वेब सिरीज़ में आईपीएस अधिकारी का नाम भी अमित लोढ़ा ही है.
वेब सिरीज़ में दिखाया गया है कि कैसे बिहार के महतो गैंग ने एक ख़ास इलाक़े में अपने ख़ौफ़ का साम्राज्य स्थापित किया था और कैसे अमित लोढ़ा ने इन अपराधियों से इलाक़े के लोगों को मुक्ति दिलाई.
इस वेब सिरीज़ में अमित लोढ़ा के अलावा महतो गैंग के एक कैरेक्टर को दिखाया गया है जिसका नाम चंदन महतो है. असलियत में चंदन महतो का किरदार अशोक महतो गैंग के पिंटू महतो को लेकर बनाया गया है.
इसमें दिखाया गया है कि कैसे चंदन महतो का उदय हुआ और कैसे उसने अपने दम पर अपना साम्राज्य स्थापित किया था और कैसे आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा ने इस चुनौती का सामना किया.
फ़िल्म में अपराध जगत में भी अगड़ों और पिछड़ों की लड़ाई दिखाई गई है. साथ ही पुलिस व्यवस्था की ख़ामियों और राजनीतिक नेतृत्व पर भी टिप्पणी की गई है.
वेब सिरीज़ में अमित लोढ़ा का किरदार निभाया है करण टैकर ने जबकि चंदन महतो की भूमिका अविनाश तिवारी ने की है. सिरीज़ में आशुतोष राणा, रवि किशन, अनूप सोनी और विनय पाठक ने भी भूमिका निभाई है.
कहानी और असलियत
आइए जानते हैं कि इस वेब सिरीज़ में जिस महतो गैंग का ज़िक्र किया गया है और जिस आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा ने उसका सामना किया, उसकी हक़ीक़त क्या थी.
इस वेब सिरीज़ की घटनाएँ आज से क़रीब दो दशक पुरानी हैं.
एक समय था जब बिहार में शेखपुरा के आसपास के इलाक़े में गोलियों की आवाज़ का सुनाई देना आम बात थी. अंधेरा घिरने के बाद लोग घर से निकलने में भी घबराते थे.
कहा जाता है कि अमित लोढ़ा ने एसपी रहते हुए शेखपुरा के इस गैंगवार को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी.
अमित लोढ़ा फ़िलहाल बिहार पुलिस में इंस्पेक्टर जनरल (एससीआरबी) के पद पर तैनात हैं.
'खाकीः द बिहार चैप्टर' उस वक़्त की कहानी है, जब बिहार में राजनीति और अपराध की ख़बरें अक्सर सुर्खियों में होती थीं.
उस समय बिहार के शेखपुरा, नवादा और आसपास के इलाक़ों में भी जातीय वर्चस्व की लड़ाई की ख़बरें अक्सर सुनने को मिलती थीं.
इस लड़ाई में कई सरकारी अधिकारियों, व्यवसायियों और पूर्व सांसद राजो सिंह तक की हत्या हुई थी.
यही नहीं, आम लोग और बच्चों तक को इस गैंगवार में अपनी जान गँवानी पड़ी थी.
नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कई हत्याएँ हुई थीं. अमित लोढ़ा को उसी वक़्त शेखपुरा एसपी के पद पर तैनात किया गया था.
इस वेब सिरीज़ में टाटी और मानिकपुर नरसंहार का भी ज़िक्र हुआ है.
क्या है टाटी और मानिकपुर नरसंहार
यह घटना 26 दिसंबर 2001 की है. बिहार में शेखपुरा और बरबीघा के बीच एक छोटा-सा पुल है जिसे 'टाटी पुल' के नाम से जाना जाता है.
इसी पुल पर आरजेडी के क़रीबी लोगों की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
टाटी हत्याकांड में शेखपुरा ज़िले के तत्कालीन आरजेडी अध्यक्ष काशी नाथ यादव के अलावा अनिल महतो, अबोध कुमार, सिकंदर यादव और विपिन कुमार सहित आठ लोग मारे गए थे.
कहा जाता है कि टाटी पुल नरसंहार से ही शेखपुरा में गैंगवार की शुरुआत हुई थी. उसके बाद यहाँ कई और हत्याएँ हुईं.
शेखपुरा के स्थानीय पत्रकार श्रीनिवास ने उस दौर की घटनाओं को क़रीब से देखा है.
उनके मुताबिक़, "इस हत्याकांड का आरोप उस समय के सांसद राजो सिंह, उनके बेटे और राज्य सरकार में मंत्री संजय सिंह और राजो सिंह के परिवार के कई लोगों पर लगाया गया था."
श्रीनिवास ने बीबीसी को बताया, "हालाँकि बाद में राजो सिंह को आरोपों से बरी कर दिया गया. जबकि साल 2010 में जिस दिन मुंगेर कोर्ट ने संजय सिंह को सज़ा सुनाई, उसी दिन दिल का दौरा पड़ने से संजय सिंह की मौत हो गई."
दरअसल इस इलाक़े में उस दौर में दो गैंग सक्रिय थे. एक था अशोक महतो गैंग जिसे पिछड़ी जातियों का गैंग कहा जाता था और दूसरा अगड़ी जातियों या मूल रूप से भूमिहारों का गैंग था.
महतो गैंग
नेटफ़्लिक्स की वेब सिरीज़ में जिस चंदन महतो नाम के कैरेक्टर की चर्चा है, उसे इसी महतो गैंग से जुड़ा बताया गया है.
जबकि असल में अमित लोढ़ा को जिस महतो गैंग ने परेशान कर रखा था, उसका लीडर था अशोक महतो.
लेकिन सिरीज़ में चंदन महतो का किरदार अशोक महतो गैंग के पिंटू मेहता पर गढ़ा गया है.
टाटी नरसंहार के चार साल के बाद ही राजो सिंह की भी हत्या कर दी गई थी.
उस दौर की घटनाओं को जानने के लिए संजय सिंह के बेटे और बरबीघा से मौजूदा विधायक सुदर्शन कुमार से भी संपर्क किया गया.
सुदर्शन कुमार ने केवल इतना ही कहा कि इस वेब सिरीज़ के बारे में सुना है, लेकिन देखने से पहले कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकते.
नेटफ़्लिक्स की वेब सिरीज़ में मानीपुर नरसंहार का भी ज़िक्र किया गया है.
श्रीनिवास याद करते हैं, "यह घटना साल 2006 की है. इसमें पहले महतो गिरोह के लोगों की सोते हुए गोली मार कर हत्या कर दी गई थी."
"बाद में महतो गिरोह ने इस हत्याकांड के लिए एक परिवार पर मुखबिरी का आरोप लगाया था. इसका बदला लेने के लिए महतो गिरोह ने उस परिवार के घर में मौजूद सभी लोगों की हत्या कर दी थी."
21 और 22 मई 2006 की इंडियन एक्सप्रेस अख़बार की एक ख़बर के मुताबिक़ इसमें तीन बच्चों समेत सात लोगों की हत्या की गई थी.
इस पर 21 मई 2006 को हिन्दुस्तान टाइम्स अख़बार ने भी रिपोर्ट छापी थी.
इस हत्याकांड के कुछ ही दिन पहले पड़ोस के नालंदा ज़िले में अशोक महतो गिरोह के नौ लोगों की हत्या कर दी गई थी.
अशोक महतो गिरोह को इस हत्याकांड का शक अखिलेश सिंह के समर्थकों पर था. इसलिए माना जा रहा था कि इसी का बदला लेने के लिए मानिकपुर में अखिलेश सिंह के समर्थकों की हत्या की गई थी.
शेखपुरा और आसपास के इलाक़ों में इस तरह की हत्या आम बात हो गई थी.
मानिकपुर हत्याकांड के ख़िलाफ़ लोगों में बड़ा आक्रोश शुरू हो गया. उसके बाद ही यहाँ अमित लोढ़ा को एसपी बनाकर भेजा गया.
कैसे थमा था हत्याकांड का दौर
शेखपुरा नगरपालिका के अध्यक्ष रह चुके गंगा कुमार यादव कहते हैं, "अमित कुमार लोढ़ा ने झारखंड के देवघर से महतो गिरोह के कई सदस्यों को पकड़ा और उसके बाद ही शहर में शांति लौट पाई."
गंगा कुमार यादव के मुताबिक़, 'उस दौर में अरियरी प्रखंड 'करगिल' बना हुआ था. इसका असर धीरे-धीरे शेखपुरा शहर पर भी आने लगा.'
'यहाँ किसी भी समय गोली चलने लगती थी. इसमें कई व्यवसायियों, मुखिया और पूर्व सांसद तक की हत्या कर दी गई थी.'
'लोग शाम के छह बजे के बाद घर से निकलने में घबराते थे.'
पत्रकार श्रीनिवास याद करते हैं, "मानिकपुर में लोगों ने शव को उठाने से मना कर दिया था. उस वक़्त नीतीश कुमार भी वहाँ आए थे और उनके भरोसा देने के बाद ही शवों का अंतिम संस्कार हुआ था."
उनके मुताबिक़ इस घटना के बाद शेखपुरा में शांति लाने के लिए अमित लोढ़ा को भेजा गया था.
गंगा कुमार यादव कहते हैं, "अमित कुमार लोढ़ा साहब ने अपराधियों पर चार्ज लगाया और जेल के अंदर डाला."
श्रीनिवास कहते हैं, "यहाँ शांति बहाली के लिए लोग अमित लोढ़ा को धन्यावाद ज़रूर देते हैं. उनकी किताब और वेब सिरीज़ भी हिट हो गई. लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने जिनको भी पकड़ा उनमें से लगभग सभी आज आज़ाद हैं, क्योंकि पुलिस न तो सही जाँच कर पाई और न ही अदालत में ठोस सबूत दे पाई."
शेखपुरा में उस वक़्त क्या हो रहा था और नेटफ़्लिक्स की वेब सिरीज़ अमित लोढ़ा की किताब के कितने क़रीब है?
हमने इस पर अमित लोढ़ा की भी प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की, लेकिन लगातार कोशिशों के बाद भी उनसे संपर्क नहीं हो पाया है.
क्या हुआ अशोक महतो गैंग का
शेखपुरा में हुए मानिकपुर नरसंहार के बाद एसपी अमित लोढ़ा ने काफ़ी मशक्कत से पिंटू महतो और उसके गैंग के सदस्यों को गिरफ़्तार किया था.
उन पर लंबे समय तक मुक़दमा भी चला.
अशोक महतो और पिंटू महतो पर कई हत्याओं और अपहरण का मुक़दमा चला.
अशोक महतो और पिंटू महतो उस गैंग के चर्चित सदस्य थे. पिंटू महतो पर नवादा जेल तोड़कर भागने के क्रम में पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप था.
जबकि अशोक महतो पर सांसद राजो सिंह की हत्या का. बाद में अशोक महतो को राजो सिंह की हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया.
आज महतो गैंग का मुखिया अशोक महतो नवादा जेल में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहा है.
जबकि पिंटू महतो को राजो सिंह की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया और वो फ़िलहाल तिहाड़ जेल में है.
अमित लोढ़ा की कहानी
इस वेब सिरीज़ का मुख्य पात्र है एसपी अमित लोढ़ा. जिस एसपी पर ये कहानी है, उनका भी नाम अमित लोढ़ा ही है.
उन्हीं की किताब पर ये वेब सिरीज़ बनी है.
इस फ़िल्म में अमित लोढ़ा को राजस्थान से आया आईपीएस अधिकारी दिखाया गया है.
सच में भी अमित लोढ़ा का संबंध राजस्थान से है. वे 1997 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं.
उन्होंने आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और उसके बाद वे सिविल सेवा में आए.
क़रीब 25 साल पहले अमित लोढ़ा बिहार पहुँचे थे. उस समय बिहार में क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठते रहते थे.
राज्य के कई इलाक़े हिंसाग्रस्त थे. कहीं जातियों के वर्चस्व की लड़ाई थी, तो कहीं एक आपराधिक सरगना का दबदबा था.
अमित लोढ़ा बिहार के कई ज़िलो नालंदा, बेगूसराय, मुज़फ़्फ़रपुर, गया और शेखपुरा जैसे ज़िलों में रहें.
वर्ष 2006 में उन्हें शेखपुरा ज़िले का एसपी बनाया गया, जहाँ महतो गैंग और भूमिहार गैंग के बीच हिंसा का दौर चल रहा था.
अमित लोढ़ा ने महतो गैंग के अपराधियों को गिरफ़्तार करके काफ़ी लोकप्रियता कमाई थी. (bbc.com/hindi)