ताजा खबर

छत्तीसगढ़ का राज्य पक्षी पहाड़ी मैना का संरक्षण नहीं किया तो हो जाएगी विलुप्त
05-Dec-2022 8:50 PM
छत्तीसगढ़ का राज्य पक्षी पहाड़ी मैना का संरक्षण नहीं किया तो हो जाएगी विलुप्त

राज्य में पहाड़ी मैना सहित अन्य पक्षियों की जनगणना का प्रथम चरण पूरा

-अनिल अश्विनी शर्मा
छत्तीसगढ़ के राज्य पक्षी पहाड़ी मैना का संरक्षण नहीं किया गया तो यह विलुप्त हो जाएगी। पहाड़ी मैना के संरक्षण के लिए इसकी संख्या जानना भी जरूरी है। इसीलिए छत्तीसगढ़ वन विभाग ने तेजी से कम होती पहाड़ी मैना के प्राकृतिक आवास रहे कांगेर घाटी उद्यान में नवंबर, 2022 के आखिरी हफ्ते में पहले चरण का पक्षी जनगणना कार्य किया गया है। विभाग का कहना है कि यह कार्य भविष्य में भी लगातार जारी रहेगा। पहले चरण की समाप्ति के बाद गणना की प्रारंभिक रिपोर्ट में पहाड़ी मैना की संख्या के बढ़ोतरी के संकेत बताए गए हैं। हालांकि इसके बढ़ने के संकेत पर वन विभाग का दावा है कि पिछले कुछ सालों में उनके द्वारा मैना के पुनर्वास के लिए किए गए कई प्रकार के प्रयासों का ही नतीजा है। गणना के बाद 215 प्रजाति के अन्य पक्षियों की पहचान भी की गई, घाटी में पूर्व में यह संख्या 200 थी। वन विभाग के अनुसार यह गणना राज्य के नक्सल प्रभावित बस्तर जिले में देश भर के 11 राज्यों से आए 56 पक्षी विशेषज्ञों द्वारा किया गया है। 

कांगेर घाटी उद्यान के निदेशक धम्मशील गणवीर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हम इस सर्वें में राज्य पक्षी पहाड़ी मैनाओं की संख्या जानने की भी कोशिश की गई है और साथ ही इनकी संख्या को बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है, इसके उपायों पर भी विचार किया गया। उन्होंने बताया कि पार्क के विभिन्न हिस्सों, जैसे वुडलैंड, वेटलैंड, रिपेरियन फॉरेस्ट और स्क्रबलैंड में पक्षियों के सर्वेक्षण के लिए प्रतिभागियों को अलग-अलग समूहों में बांटा गया था। इस दौरान घने जंगलों में 50 से अधिक पगडंडियों को कवर किया गया। सर्वेक्षण के दौरान स्पॉट-बेलिड ईगल सहित उल्लुओं की नौ प्रजातियों का पता चला। इसके अलावा 10 प्रकार के शिकारी पक्षी, 11 तरह के कठफोड़वा का भी पता चला। ध्यान रहे कि जैव विविधता के लिहाज से यह जगह दुनिया की सबसे समृद्ध जगहों में से एक मानी जाती है। गणवीर ने बताया कि सर्वें में तितलियों की 63 प्रजातियां का भी पता चला।  

गहरा काला रंग, नारंगी चोंच और पीले रंग के पैर और कलगी, यह पहचान है पहाड़ी मैना की। वन विभाग के अनुसार पहाड़ी मैना को इंसानों से दूर घने जंगल में रहना पसंद है। लेकिन इंसानों के संपर्क में आने पर ये पक्षी उनकी हूबहू नकल कर सकते हैं। यही कारण है कि इंसानों की नकल करने की कला ने इस पक्षी को पिंजड़े का पक्षी बना दिया है। इन्हें अक्सर बंद पिंजड़े में गैरकानूनी पशु-पक्षी के बाजारों में बिकता हुआ देखा जा सकता है। कांगेर घाटी का घना जंगल पहाड़ी मैना का सबसे पसंदीदा ठिकाना हुआ करता है। छत्तीसगढ़ के कांगेर घाटी के इलाके को 1983 में पहाड़ी मैना के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया था। इसके बाद वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में वर्ग एक में शामिल इस चिड़िया को छत्तीसगढ़ शासन ने वर्ष 2002 में राजकीय पक्षी का दर्जा दिया। लेकिन 18 साल बीत जाने के बावजूद भी इस पक्षी के अस्तित्व पर अब भी संकट मंडरा रहा है। पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि तोते और कठफोड़वा की तरह ही पहाड़ी मैना को विशाल पेड़ों की खोह में रहना पसंद है। सूखे साल के पेड़ों में कठफोड़वा द्वारा बनाए गए खोह में भी पहाड़ी मैना को रहते देखा जाता है। कांगेर घाटी में ऐसे 14 स्थान हैं जहां ये पक्षी फल लगने वाले मौसम में खाने और रहने के लिए आते हैं। जंगल की कटाई के साथ-साथ वन विभाग द्वारा जंगलों में न के बराबर गश्त की वजह से भी पक्षी की आबादी कम हो रही है। राज्य सरकार ने इनकी संख्या स्थिर रखने के लिए जगदलपुर स्थित संरक्षण केंद्र में पिंजड़े में प्रजनन की कोशिश चल रही है। पहाड़ी मैना भारत के अलावा इस पक्षी को चीन, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड आदि देशो में भी देखा जा सकता है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news