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छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भाई नहीं तो बहन
06-Dec-2022 5:13 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भाई नहीं तो बहन

भाई नहीं तो बहन 
बाबा भले ही सीएम बनने से रह गए, लेकिन उनकी सगी बहन आशा कुमारी सिंह हिमाचल प्रदेश की सीएम पद की दौड़ में हैं। एक-दो सर्वे रिपोर्ट में तो हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनने की प्रबल संभावना बताई जा रही है। ऐसे में आशा कुमारी को सीएम पद की मजबूत दावेदारों में गिना जा रहा है। वो डलहौजी विधानसभा सीट से लगातार 6 बार विधायक रही हैं, और इस बार फिर चुनाव मैदान में हैं। उनके अच्छे मार्जिंन से जीतने की संभावना जताई जा रही है। 

आशा कुमारी के पक्ष में एक बात यह है कि वो एआईसीसी की सचिव रह चुकी हैं साथ ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी भी रही हैं। आशा कुमारी प्रभारी थीं तब प्रदेश में अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार को हराकर कांग्रेस ने पंजाब में अपनी सरकार बनाई थी, और जब हटी तो सत्ता-संगठन में टकराव शुरू हो गया। बाद में सीएम कैप्टन अमरिन्दर सिंह को पार्टी छोडऩा पड़ा। कुल मिलाकर आशा कुमारी की छवि सबको साथ लेकर चलने वाली है।

वैसे तो आशा कुमारी के अलावा कई दिग्गज नेता सीएम पद की दौड़ में हैं। ऐसे में भाई की जगह हाईकमान बहन को कमान सौंप दें, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। फिलहाल तो 8 तारीख को चुनाव नतीजे का बेसब्री से इंतजार हो रहा है। 

कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना 
ईडी ने धमतरी के एक सीए को पूछताछ के लिए बुलाया, तो इसको लेकर काफी हलचल रही। सीए को एक आईएएस पति-पत्नी का काफी करीबी माना जाता है। सुनते हैं कि हफ्ते में कम से कम एक बार सीए और आईएएस दंपत्ति लंच या डिनर साथ लेते थे। अफसरों के पदस्थापना के दौरान अन्य पेशे से जुड़े लोगों के साथ कई बार व्यक्तिगत रिश्ते बन जाते हैं। पहली नजर में यह गलत भी नहीं है, लेकिन चर्चा है कि सीए के पास आईएएस दंपत्ति के आय-व्यय की फाइल भी है। 

बात यहीं खत्म नहीं होती है। सीए महोदय सरकार के एक निगम के बड़े पदाधिकारी के वित्तीय सलाहकार भी हैं। चर्चा है कि ईडी ने सीए से आईएएस दंपत्ति, और निगम पदाधिकारी के बारे में कुरेद-कुरेदकर पूछा है। इसमें ईडी के काम के लायक कुछ मिला है या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन इसको लेकर कई तरह के किस्से सुनने को मिल रहे हैं। इसमें सच्चाई कितनी है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। 

बिजूका की फसल
छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई कोयले और दूसरे किस्म के कारोबार से जुड़े हुए जुर्म पर तो चल ही रही है, जानकार लोगों का यह भी मानना है कि अगले चुनाव में राज्य के जो लोग आज की सत्तारूढ़ पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, उन्हें भी घेरा जा सकता है। और घेरने की वजह कोई नाजायज बहाना हो, यह भी जरूरी नहीं है, कुछ अफसरों को राजनीति करने की वजह से घेरा जा रहा है, और कुछ नेताओं को सरकारी कामकाज में दखल देकर कमाई करने के एवज में। अभी ताजा चर्चा यह है कि कुछ अफसर अगले चुनाव की रणनीति बनाने में लगे हुए थे, उनकी जानकारी राज्य के भाजपा नेताओं को थी, और अब आईटी-ईडी की जांच के दायरे में उन्हें भी लाने की कोशिश हो रही है। राज्य में चल रही ईडी की कार्रवाई बड़े रहस्य से घिरी हुई है, चूंकि कभी-कभार जारी होने वाला प्रेसनोट, और अदालत में पेश किया गया कागज ही ईडी से निकली औपचारिक जानकारी रहती है, इसलिए उसका नाम लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैलती रहती हैं। 

आज कुछ हजार रूपये से कोई समाचार पोर्टल बनाया जा सकता है, मनचाही बातें लिखी जा सकती है, अपनी हसरतों को हकीकत की तरह पेश किया जा सकता है, इसलिए वह काम धड़ल्ले से चल रहा है। और फिर लोग पढ़े-लिखे होने के बावजूद इस हद तक नासमझ हैं कि उन्हें सबसे विश्वसनीय समाचार माध्यम, और सबसे गैरजिम्मेदार न्यूज पोर्टल के बीच भी कोई फर्क नहीं दिखता है, और लोग बातचीत में एक ही अंदाज में कहते हैं कि न्यूज में ऐसा आया है। यह सिलसिला अफवाहों को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी ही उपजाऊ जमीन है, और छत्तीसगढ़ में इन दिनों खेतों में मानो किसान के गढ़े हुए पुतले, बिजूका की फसल लहलहा रही है। 

हिफाजत का तरीका 
वॉट्सऐप पर लोगों को मिलने वाले संदेश, फोटो, वीडियो कई बार गायब हो जाते हैं क्योंकि उन्हें भेजने वाले लोगों ने उनकी जिंदगी तय कर रखी है। कुछ लोग तो ऐसी तस्वीर भेजते हैं जिसे खोलकर बस एक बार देखा जा सकता है, और स्क्रीन से हटते ही वह हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। कुछ चतुर लोग ऐसी तस्वीर का स्क्रीनशॉट लेकर उसे कॉपी करके रख लेते हैं, लेकिन ऐसी चर्चा है कि वॉट्सऐप स्क्रीनशॉट लेने पर रोक लगाने जा रहा है। फिर भी आज तो लोगों ने जितने समय बाद संदेश मिट जाने की सेटिंग कर रखी है, उतने वक्त बाद आए हुए संदेश गायब हो जाते हैं। इससे बचने के लिए लोग अपने ही दूसरे नंबर पर मैसेज फॉरवर्ड करके उसे बचाकर रखना सीख रहे हैं। ऐसे बढ़ाए हुए संदेशों की कोई अदालती कीमत नहीं होती, वे सुबूत नहीं हो सकते, लेकिन आम जिंदगी में ऐसे सुबूतों की जरूरत भी नहीं रहती है। इन दिनों कई लोगों के पास एक से अधिक फोन या एक से अधिक वॉट्सऐप अकाउंट रहते हैं, और ऐसे में वे खुद के इंटरनल ग्रुप बनाकर उसमें संदेशों को भेजकर हिफाजत से रख सकते हैं। 

48 हजार की किताब में अपने बीच का लेखक
एल्सेवियर, शोध पर आधारित किताबें छापने वाली 1880 से स्थापित दुनिया की एक मशहूर कंपनी है, जिसका मुख्यालय तो एम्स्टर्डम में हैं पर दुनियाभर में इसका बाजार फैला है। किसी शोधकर्ता को यहां की किताबों में जगह मिलना एक बड़ी उपलब्धि है। इस प्रकाशन की एक किताब 26 नवंबर को आई है- फंक्शनल मटेरियल फ्रॉम कार्बन इन ऑर्गेनिक एंड ऑर्गेनिक सोर्सेस। कार्बन, कार्बनिक और अकार्बनिक स्रोतों से कार्यात्मक सामग्री पर किए गए शोध इसमें शामिल है। इस किताब का सबसे सस्ता संस्करण 217 डॉलर में उपलब्ध है, यानि करीब 18 हजार भारतीय रुपये में। यह राशि डिस्काउंट पर है। सबसे महंगे संस्करण की कीमत 580 डॉलर यानी लगभग 48 हजार रुपये है। वैश्विक स्तर पर ख्यातिलब्ध प्रकाशन संस्थान की किसी किताब की कीमत इतना होना खास बात नहीं है। खास यह है कि इसके चार लेखकों में एक छत्तीसगढ़ से हैं। जांजगीर-चांपा जिले के पामगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ. आशीष तिवारी। इनके अलावा तीन और लेखक हैं- संजय ढोबले नागपुर विश्वविद्यालय से, अमोल नंदे बल्लारपुर के गुरुनानक कॉलेज से और अब्दुल करीम कुआलालंपुर के मलाया विश्वविद्यालय से। करीम रिटायर्ड प्रोफेसर और मलेशिया से हैं। बाकी तीन भारत के प्राध्यापक। डॉ. तिवारी ने केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर से पी.एचडी की है। अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में उनके कई शोध प्रकाशित हो चुके हैं और कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। डॉ. तिवारी की इस अकादमिक उपलब्धि को सराहना तो मिलनी चाहिए।   

फेरबदल से खुशी और मायूसी
सन् 2018 के चुनाव में कई ऐसे कांग्रेस उम्मीदवार थे, जिनके नाम को प्रभारी महासचिव रहते हुए पीएल पुनिया ने फाइनल किया। प्रदेश के शीर्ष नेताओं की सिफारिश दूसरे नामों के लिए थी, इसके बावजूद। टिकट वितरण के बाद इसके चलते बगावत भी हुई, खुलेआम विरोध प्रदर्शन हुआ और केंद्रीय नेताओं के खिलाफ नारेबाजी भी। पुनिया को खुद गुस्से का शिकार होना पड़ा। पर चुनाव परिणाम आने के बाद सब शांत हो गया। पुनिया के सीधे हस्तक्षेप से जो टिकटें दी गई, उनमें से भी कई लोग जीतकर आ गए। चार साल तो आराम से कट गए लेकिन अचानक प्रभारी को बदल देने से उनका समीकरण गड़बड़ा गया। सन् 2023 में टिकट बचाये रखने को लेकर की चिंता घर कर रही है। दूसरी तरफ वे नेता मन ही मन खुश हैं जिनकी दावेदारी पर पुनिया की वजह से मुहर नहीं लग पाई। उन्हें यह लग रहा है कि कई मौजूदा विधायकों की टिकट कट जाएगी और उनको मौका मिल जाएगा। फिलहाल वे नई महासचिव कुमारी शैलजा के छत्तीसगढ़ दौरे का इंतजार कर रहे हैं।

शायद अब बच गए नेताम..।
भानुप्रतापपुर के भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम को झारखंड के टेल्को थाने में दर्ज रेप के मामले गिरफ्तार करने के लिए 800 किलोमीटर की दूरी तय करके वहां से पुलिस पहुंच तो गई लेकिन यहां पर उनके खुलेआम प्रचार करने के बाद भी गिरफ्तार करने से बचती रही। शायद उसे लगा कि छत्तीसगढ़ सरकार ही नहीं, चुनाव आयोग और अदालत को भी उन्हें जवाब देना न पड़ जाए। एक तरफ नेताम प्रचार करते रहे इधर झारखंड पुलिस खाली बैठी रही, मतदान खत्म होने की प्रतीक्षा करते हुए। मतदान के बाद जब वह सक्रिय हुई तो कुछ ही देर में उनके पास रांची हाईकोर्ट से मिली राहत का आदेश मिल गया। यानि भाजपा नेता यहां चुनाव प्रचार में अपने प्रत्याशी पर हो रहे विरोधी हमले का बचाव तो कर ही रहे थे, रांची में उनकी अलग टीम अदालत से राहत पाने के लिए लगी हुई थी। मतदान और चुनाव परिणाम के बाद अब नेताम कानूनी प्रक्रिया का तो सामना करेंगे पर यह अब राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया। लोगों में भी दिलचस्पी घट गई कि झारखंड पुलिस उनको पूछताछ के लिए भी बुलाएगी या नहीं।

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