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ब्याजदरें बढ़ाने से महंगाई थमने वाली नहीं, सरकार की नीतियों में बदलाव की दरकार
07-Dec-2022 5:34 PM
ब्याजदरें बढ़ाने से महंगाई थमने वाली नहीं, सरकार की नीतियों में बदलाव की दरकार

बढ़ती महंगाई से आम भारतीयों को निजात दिलाने ब्याजदरें बढ़ाने का निर्णय कितना सही है अथवा कितना सटीक निकलेगा ? यह तो समय बतायेगा लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में भारतीय रिजर्व बैंक का यह निर्णय अव्यावहारिक एवं असफल ही सिद्ध होगा क्योंकि इससे महंगाई रूकेगी नहीं अपितु विकासदर धीमी जरूर पड़ जायेगी। सारे कर्ज महंगे हो जाने से बाजार पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

 
-डॉ. लखन चौधरी

बढ़ती महंगाई से चिंतित भारतीयों को ढ़ांढ़स बधाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट यानि व्यावसायिक बैंकों को दी जाने वाली उधार की रकम की ब्याजदरों में 0.35 फीसदी का इजाफा कर दिया है। इससे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा व्यावसायिक बैंकों को दी जाने वाली उधारी या कर्ज की ब्याजदरें बढ़ जायेंगी। इसका मतलब है कि व्यावसायिक बैंकों द्वारा आम लोगों को दी जाने वाली उधारी या कर्ज पर भी ब्याजदरें बढ़ जायेंगी। महंगाई इससे कितनी रूकेगी, थमेगी या कम होगी ? इसके बारे में कोई सटीक आंकलन नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन इससे महंगाई जरूर बढ़ेगी। इसमें कोई दो मत नहीं है।

भारतीय रिजर्व बैंक की रेपो रेट अब 5.90 फीसदी से बढ़कर 6.25 फीसदी हो गई है। यानि तत्काल होम लोन से लेकर ऑटो, पर्सनल लोन सब कुछ महंगा हो जाएगा और अब आम आदमियों को इसके लिए ज्यादा ब्याजदरें चुकानी होगीं। इससे देश के करोड़ों आम लोगों का घर का बजट बिगड़ जायेगा। यह तय है, क्योंकि इसकी वजह से अब बहुत कुछ महंगी हो जाने वाली है। इधर भारतीय रिजर्व बैंक यह अनुमान लगाये बैठे है कि इससे महंगाई कम हो जायेगी।

उल्लेखनीय है कि इस वित्त वर्ष की पहली बैठक अप्रैल में हुई थी। तब भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 4 फीसदी पर स्थिर रखा था। बाद में भारतीय रिजर्व बैंक ने 2 और 3 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट को 0.40 फीसदी बढ़ाकर 4.40 फीसदी कर दिया था। 22 मई 2020 के बाद रेपो रेट में ये बदलाव हुआ था। इसके बाद 6 से 8 जून को हुई मीटिंग में रेपो रेट में 0.50 फीसदी इजाफा किया गया। इससे रेपो रेट 4.40 फीसदी से बढ़कर 4.90 फीसदी हो गई थी। फिर अगस्त में 0.50 फीसदी बढ़ाया गया, जिससे यह 5.40 फीसदी पर पहुंच गई, जिससे सितंबर में ब्याजदरें 5.90 फीसदी हो गई थी। अब इसमें .35 फीसदी की बढ़ोतरी फिर से कर दी गई है, जिससे ब्याजदरें 6.25 फीसदी पर पहुंच गई हैं। यानि आठ-नौ महिने में ही भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में सवा दो फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है।

इसके बावजूद अब महंगाई पर लगाम लग जायेगी ? इसकी कल्पना भी करना मूखर्ता से कम नहीं है। दूसरी बात यह है ब्याजदरों को लगातार इस तरह बढ़ाने से विकासदर यानि ग्रोथ पर भी इसका बुरा या विपरीत प्रभाव पड़ना लाजिमी है, क्योंकि इसके कारण होम, कार, पर्सनल सहित तमाम लोन महंगे हो जायेंगे। इसका विपरीत असर निवेश पर भी पडे़गा। महंगाई की वजह से व्यक्तिगत उपभोग, खपत एवं खर्चे पहले से ही बुरी तरह बाधित हैं। सरकारी खर्च एवं निवेश को सरकार ने पहले ही रोक रखा है। ऐसे हालात में बाजार पर इसका नकारात्मक असर होना स्वाभाविक है।

अर्थशास्त्र में मान्यता है कि किसी भी देश की केन्द्रीय बैंक के पास रेपो रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल या हथियार यानि उपाय रहता है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो केन्द्रीय बैंकें रेपो रेट बढ़ाकर अर्थव्यवस्था यानि इकोनॉमी में मुद्राप्रवाह यानि मनीफ्लो जिसे मुद्रा के लेनदेन की चलन गति कहते हैं; को कम करने की कोशिश करती हैं। इसका मतलब है कि रेपो रेट अधिक होने पर बैंकों को केन्द्रीय बैंकों से मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाता है। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए कर्ज, यानि ब्याजदरें या लोन महंगा कर देती हैं। इससे इकोनॉमी में मनीफ्लो कम हो जाता है, जिससे बाजार में मांग यानि डिमांड में कमी आ जाती है, और धीरे-धीरे महंगाई कम होने या घटने लगती है।

लेकिन यह एक सैद्धांतिक मान्यता है, जो भारत जैसे में लागू नहीं होता है। दरअसल में ब्याजदरें बढ़ाने भर से महंगाई रूकती नहीं हैं। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में भी ब्याजदरें बढ़ाने भर से महंगाई थमने वाली नहीं है। इसके लिए सरकार की नीतियों एवं सोच में बदलाव की दरकार है, जिसके लिए सरकार तैयार नहीं है।

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