सामान्य ज्ञान
चिनगुन सराय जैसा कि नाम से जाहिर है, एक सराय है। यह सराय जम्मू शहर से 130 किलोमीटर दूर नौशेरा और राजौरी के बीच स्थित है। इसका निर्माण मुगल काल में किया गया था। इसे ईरान के एक आर्किटेक्ट ने बादशाह जहांगीर के शासन काल में बनाया था।
मुगल शासन के दौरान लगभग 200 वर्षों तक यह सराय मुगल कारवां के ठहरने को उपयुक्त स्थान के रूप में बनी रही। अपनी बनावट और संरचना से यह सराय अपने महत्व को स्थापित करती है। चिनगुस शब्द पारसी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है- गुत या आंत।
वर्ष 1627 में मुगल शासक जहांगीर जब राजौरी के खानपुर गांव से गुजर रहे थे तब वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गये और चल बसे। बादशाह के साथ उपस्थित रानी नूरजहां ने उत्तराधिकार की संभावित लड़ाई से बचने के लिए इस खबर को छुपाने का फैसला लिया। यह तय हुआ कि मृत शरीर को लाहौर में दफनाया जाएगा। बादशाह जहांगीर के शव को यात्रा के दौरान खराब होने की संभावना से, शरीर से विसरा अलग करने और यात्रा शिविर के पास ही दफनाने का निर्णय लिया गया। शरीर के भीतरी भाग को दफनाने के बाद ही इस सराय का नाम चिनगुस पड़ गया तब से ही खानपुर गांव को चिनगुस नाम से जाना जाता है। बादशाह की मौत को छुपाने के लिए शव को एक हाथी पर रख दिया गया और दफनाने के लिए लाहौर ले जाया गया। ऐसी धारणा है कि जिस वैद्य या चिकित्सक ने मृत शरीर से विसरा निकाला था उसे भी सराय में ही दफना दिया गया था।
इस सराय के बीचों-बीच एक छोटी मस्जिद है। मस्जिद के मार्ग में स्थित एक गलियारे में बादशाह की कब्र पर एक संगमरमर का गुम्बद बनाया गया है। किले की संरचना में बड़ी-बड़ी सेनाओं के ठहराने की व्यवस्था, अनेक घुड़शाला और भोजन स्थल इन ईटों की दीवारों के पीछे छुपे हैं। धीमी गति से ही सही अधिकारियों ने इस शाही सराय के महत्व को पुनर्जीवित करने का काम शानदार ढंग से पूरा किया है और इस प्राचीन मार्ग पर स्थित अन्य स्?मारकों का भी जीणोद्धार किया है।
जम्मू कश्मीर सरकार ने 1984 में चिनगुस सराय को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया। सरकार अब तक 93.80 करोड़ रुपये इसके नवीनीकरण और संरक्षण कार्यों पर खर्च कर चुकी है और शेष कार्यों को जल्द निपटाने का प्रयास किया जा रहा है। पर्यटन विभाग ने 1990 की शुरुआत में सराय के पास कुछ झोपडिय़ों का निर्माण कराया था। इनका प्रयोग पर्यटकों के लिए नहीं किया जा रहा है। पर्यटकों की रूचि बढऩे के साथ ही संबंधित अधिकारी इस स्थल के प्राचीन गौरव को वापस लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर पर्यटक विकास निगम ने पर्यटकों की रूचि बढ़ाने के लिए कारवां पर्यटन योजना शुरू की है, जिससे मुगल कालीन मार्ग के ऐतिहासिक गौरव को लौटाया जा सके।