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हिमाचल में जीती कांग्रेस, सरकार बदलने की परंपरा कायम
09-Dec-2022 1:03 PM
हिमाचल में जीती कांग्रेस, सरकार बदलने की परंपरा कायम

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने सरकार बदलने की परंपरा को कायम रखा है. बीजेपी हार की तरफ और कांग्रेस जीत की तरफ बढ़ रही है.

    डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय रजत शर्मा की रिपोर्ट-

ताजा नतीजे और रुझानों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश विधानसभा की कुल 68 सीटों में कांग्रेस 39 पर आगे है. सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 35 सीटों की जरूरत होती है. बीजेपी 26 सीटों पर आगे है, यानी पार्टी जादुई आंकड़े से 9 सीटें दूर है, लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हार स्वीकार कर ली है और कांग्रेस को जीत की बधाई दी है. तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार आगे चल रहे हैं.

2017 के चुनावों में बीजेपी ने 44 सीटें हासिल कर सरकार बनाई थी. कांग्रेस के हाथ 21 सीटें लगी थीं. राज्य में हर चुनावों में मतदाताओं द्वारा सरकार को बदल देने का इतिहास रहा है. 1990 में बीजेपी जीती थी तो 1993 में कांग्रेस, 1998 में बीजेपी तो 2003 में फिर कांग्रेस और 2007 में बीजेपी तो 2012 में फिर कांग्रेस.

इस बार के चुनावों में एक महत्वाकांक्षी चुनाव अभियान करने के बावजूद आम आदमी पार्टी प्रदेश में अपना खाता खोलने में असफल रही है. पिछले चार दशकों में यह पहला मौका था जब कांग्रेस प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बिना चुनाव लड़ रही थी. भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही पार्टी का चेहरा थे.

हालांकि, कांग्रेस ने किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था और अपने प्रमुख नेताओं को चुनाव के अलग-अलग आयाम की जिम्मेदारी दी थी. शक्तियों के बंटवारे की नीति कांग्रेस के काम आई.

कांग्रेस ने मंडी से सांसद और वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. प्रतिभा सिंह ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा. अन्य प्रमुख नेता मुकेश अग्निहोत्री पांच साल तक सदन में विपक्ष के नेता रहे और विपक्ष का चेहरा रहे. वहीं पूर्व  प्रदेश अध्यक्ष  सुखविंदर सिंह सुक्खू को इस बार चुनाव प्रचार समिति की कमान दी गई थी.

नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान कम दिखी. चुनाव में कांग्रेस ने जनता को 10 गारंटियां दी थीं. इनमें सभी महिलाओं को 1500 रुपये मासिक भत्ता, 300 यूनिट मुफ्त बिजली, मोबाइल क्लीनिक और स्टार्टअप फंड जैसे वादे शामिल थे, लेकिन असली मुद्दा बनी पुरानी पेंशन योजना.

हिमाचल में करीब 3 लाख सरकारी कर्मचारी हैं. कर्मचारी और उनके परिवारों का वोट हर चुनाव में बड़ा अंतर पैदा करता आया है. इस बार कांग्रेस ने वादा किया था कि मंत्रिमंडल की पहली बैठक में नई पेंशन स्कीम धारक कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दी जाएगी. हिमाचल की हर विधानसभा सीट पर इस वादे का असर दिखा.

इस वादे ने भाजपा को असहज भी किया. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सार्वजनिक मंचों से कहा कि वह भी पुरानी पेंशन के मामले पर कुछ करना चाहते हैं लेकिन देश के अन्य राज्यों में भी भाजपा की सरकार है, इसलिए वह अकेले फैसला नहीं ले सकते.

कांग्रेस के पास 35 सीटों के बहुमत से 5 सीटें ही ज्यादा हैं. कांग्रेस के लिए पार्टी में बिना किसी बिखराव के नया मुख्यमंत्री चुनना अगली बड़ी चुनौती होगी. कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि वहां गोवा या महाराष्ट्र जैसे राजनैतिक हालात बनें. (dw.com)

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